आजकल गर्मी है ..है और अब गर्मी भी इक्सवी सदी की है .और इस ज़माने में घर को वातुनुकुलित किया जाता है.. उनके द्वारा जो इस देश के संभ्रात हैं .धनी है .इसलिए अब मोसम की गर्मी का एहसास इस एयर कंडीशन के ज़माने भले ही उतना हो ना हो जितना ..सडक पर मिटटी डालते या किसी बिल्डिंग के चोथे माले पर सर पर ईंटे उठा कर ले जाने वाले मजदूरों को लगती है ..
मुझे भी गर्मी लगती है ..में भी इच्छुक हूँ की गर्मी दूर करने का कोई जुगाड़ हो ..में छोटा था तब गाँव में कुए के कुंड में जाकर पड़े रहते थे ..बिलकुल उसी तरह जेसे गर्मी में शहर के कुत्ते भरी दुपहरिया में मुंसीपाल्टी के गटर में पड़े रहते हैं ..पर अब में शहर में रहता हूँ ..आर्थिक लाचारियों ने मुझे और इस देश के कई युवाओं को गाँवों में टिकने ही नहीं दिया और वे पलायन कर शहर में किस्मत आजमाने आ गये ..कुछ मजदुर बन गए ..कुछ कबाड़ी ..कुछ दिहाड़ी मजदुर .कुछ चपरासी तो कुछ व्यवस्था से लाचार थे और बगावत के मूड में थे इस कार्य में शहर उनको चम्बल से ज्यादा अनुकूल लगा ..और वे पहले तो छोटे मोटे चोट्टे बने ..फिर सीढ़ी दर सीढ़ी प्रसिधी की सीढियाँ चढ़ते गए और फलाना पार्टी के टटपुन्जिये और गिरहकट मोसमी नेता बन गए ..यहाँ मोसमी नेता से तात्पर्य ..ये है की वे केवल चुनाव के दिनों में खद्दर पहन कर वोट मांगने के लिए बाहर से आने वाले उनके बड़े नेताओं के साथ शहर में और उसके आस पास के गाँवों में निकलते हैं ..बाकी समय में वे जमीन से लेकर आसमान तक की दलाली में मशगुल रहते हैं ..
चलो छोड़ो ये सब ,, में गर्मी की बात कर रहा था ..अब शहर में .. में ना तो घोड़े में था और ना ही गधे में था ..ये संकर नस्ल भी बड़ी अजीब होती है ..आदमी को कहीं का नहीं छोडती ..मेरी किस्म शहर के निम्न मध्यवर्ग की थी जो डेढ़ कमरे की तंग जगह में निवास करता है जो कमरे कम और जंगली जानवर की मांद ज्यादा लगते हैं .बस में भी कुछ इसी प्रकार का जीवन जी रहा हूँ इसलिए . मज़बूरी में गर्मी में ऊपर का बदन नंगा लिए ..स्लीपर चटकाए ..लुंगी लटकाए ..गर्मी से त्रस्त किसी शहरी सूअर की तरह आधी रात तक डोलता रहता हूँ ..आधी रात को जब थोडा मोसम ठंडा होता है ..तब जा कर कहीं उसे निद्रा रानी अपने आगोश में लेती है ..
ये तो भला हो ठंडा बेचने वाली कम्पनियों का जिनके विज्ञापन देख देख कर ही में ठंडा हुआ महसूस करता हूँ ..पर विज्ञापनों की प्रक्रति बड़ी ही गरमा गर्म है ..
अब एक विज्ञापन आता है ..जिसमे एक अति सुन्दर कोमलांगी ..जिसका सुकुमार सुडोल तन सांचे में ढला प्रतीत हो रहा है .मुझे प्रतीत इसलिए हो रहा है क्योंकि उस कोमलांगी के उन्ही सुकोमल अंगो को विज्ञापन में दर्शाया जा रहा है .विज्ञापन निर्माता ने दर्शकों की पसंद का खूब ध्यान रखा है ..अब दर्जी उस कोमलांगी के तन का फीते से नाप ले रहा है . और कोमलांगी ज्योंही दर्जी नाप लेता है वो गर्म गर्म आंहे भरने लग जाती है ..अब आंहे ठंडी तो होगी नहीं क्योंकि ठंडी आंहे तो हम जेसे कड़को और निम्न जीवन जीने वाले नालायक लोंगो के हिस्से में ही है .और दर्जी जो है आंहे भरती कोमलांगी का नाप मास्टर को जोर से चिल्ला कर बता रहा है ..वो नाप कापी में भी लिख सकता है ..पर वो चिल्ला रहा है ..और उस कोमलांगी के सुकोमल अंगो का नाप क्या है ..उसकी भोगोलिक स्थिति क्या है ..उसे पूरा देश सुन रहा है .देश को उसका नाप बताना जरुरी है क्योंकि ठंडा देश का ग्राहक ही पिएगा .इसलिए . उसके नाप क्या है ..ये तो आप सब ने सुन ही लिए होंगे ..मेने भी सुने ..सभी फलां ठन्डे पेय पदार्थ का गरमा गर्म विज्ञापन देख कर ..इस गर्मी में और भी गर्म हो रहे हैं ..
पर अब करे क्या ..कोमलांगी तो आग लगा कर चली गई ....टी वी पर '''''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र ..''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र''''''' नामक कभी ना खत्म होने वाला धारावाहिक आ जाता है ,,,अब .पुरे देश में हाहाकार मच गया है ..तापक्रम अचानक से बढ़ गया है ..विज्ञापन एक मिनट का होगा ..पर कभी ना उतरने वाली गर्मी चढ़ा कर गया है ..अब एक ही इलाज है ..वो फलां ठंडा पेय खरीद लो पर पी कर ठन्डे ठन्डे सो जाओ ..बढ़िया तरीका है ठंडा बेचने का ..अच्छा लगा ..
एक और है ..
एक लड़का अपनी प्रेयसी से मिलने उसके घर गया ..दोनों मुहब्बत की बातें करे ही की ..लड़की का बाप आ जाता है ..छोरा छिप जाता है ..बाप देखभाल कर वापस चला जाता है ..लड़का डीप फ्रिज़ में कुल्फी खा रहा है ..में जब भी ये विज्ञापन देखता हूँ ..मुझे वेसे ही ठण्ड लगने लग जाती है ..उस लड़के ने ये केसे संभव किया होगा .. जबकि लड़की भी बाहर थी ..हद हो गई रे बेवकूफ बनाने की ..कम से कम फीज़ में दों प्यार करने वालों को तो साथ दिखाते तो थोडा व्यवहारिक लगता ..
एक और है ..
उसमे कुछ अति सुन्दर सखियां स्विमिंगपुल में कुल जमा दों अति अल्प और सिमित वस्त्रों में जो वस्त्र कम बल्कि धज्जियाँ ज्यादा लग रहे थे .धारण कर जल क्रीडा और केलि किल्लोल कर रही है ..ये धज्जियाँ बड़ी मुश्किल से उनके सुकोमल तन पर लगभग राम भरोसे लटकी या अटकी थी ..ज्यों ही वो उछलती ..मुझे डर लगने लग जाता की कहीं संस्क्रती का जनाजा नहीं निकल जाए.. पर .ये तो भला हो हमारे देश के कानूनों का और संस्क्रती के पेरोकारों का जिनके मजबूत पंजे इन धज्जियों को हवा में उड़ने नहीं दे रहे हैं ..क्योंकि अमेरिका में तो ये भरी ठण्ड में ही वहां के कानूनों के लचीलेपन का लाभ उठा कर हवा में लहराने लग जाती है ..
वे सभी सखियां फलां किस्म का ठंडा पेय पी रही है और अपनी लुभावनी भाव भंगिमाओ से पुरे देश के ठंडा पीने के तलबगार उपभोक्ताओं को पीने के लिए प्रेरित कर रही है ..और सब उनके मार्गदर्शन अनुसार जेब कटवा रहे हैं और वो ठंडा पी कर ठन्डे हो रहे हैं जो एक रुप्प्ली का ठंडा मीठा पानी है .क्योंकि .इन रूपसियों के अर्धनग्न सुडोल तन ने सबकी मति हर ली है ..अन्यथा वो लस्सी नहीं पीते छाछ नहीं पीते ..दही नहीं खाते ..पर क्या करें ..इस देश में इन ठंडा बेचने वालों को भी ठंडा करने की जरुरत होगी ..
Sunday, April 10, 2011
Saturday, April 2, 2011
क्रिकेट में नारी सोन्दर्य का बाजारी तड़का ..
खेल कई हैं और उन्हें खेलने वाले एक से बढ़ कर खिलाडी और सितारें भी हैं .पर इस देश के मध्यवर्ग की नासमझ देशभक्ति अशिकंश्तः केवल क्रिकेट में ही दिखती है.ये उसी का नतीजा है की इस खेल ने सब खेलों को निगल लिया है ,,
पूनम पाण्डेय जेसी भद्र षोडशी इसमें बड़ी बेदर्दी से रूचि ले और इंडिया के फाइनल जितने की ख़ुशी वानखेड़े स्टेडियम में हजारों दर्शकों की मौजूदगी में वो प्राकतिक अवस्था में मार्च पास्ट कर के ज़ाहिर करे तो हम इसे क्या संज्ञा देंगे हांलाकि अभी यह महज लफ्फाजी और सम्भावना ही दिख रही है पर सनकी पन के इस दौर में हमें इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण नज़ारे कई और भी देखने को मिल सकते हैं ..हो सकता है कल कोई और पूनम पाण्डेय अपने ऐलान को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए तिरंगे की अंगिया और चड्डी सिला कर पहन ले और उसका सार्वजानिक प्रदर्शन कर ले तो कई कथित नासमझ देश भक्त वाह वाह और अश अश , मरहबा मरहबा कर उठेंगे ..और अगर वो बीच मैदान में इन दों अतिअल्प वस्त्रों को भी उतार दे और मैदान में उसे झंडे के तरह लहरा दे तो कोई हर्ज़ नहीं की पूनम जी की इस क़ुरबानी के आगे अब तक हुए कई शहीदों की कुरबानिया भी शायद इनकी नज़र में फीकी पड़ जायेगी ..मैदान में भूचाल आ जायेगा ..मुंबई समुद्र के किनारे है अतः सुनामी भी आ सकती है सभी दर्शक सावधान रहें और सरकार चिकित्सा का पूरा प्रबंध कर के रखें .. चाँद की तरफ अब तक चकोर आकर्षित होते रहें हैं पर इस दशा में चाँद कहीं इस चकोरी का दर्शन लाभ लेने धरती पर गाज की तरह नहीं आ पड़े ..दर्शक इसका भी ध्यान रखें ..इस प्रकार की आपदा का बिमा नहीं होता .
इतिहास रहा है की इतिहास दोहराया जाता है क्योंकि सत्तर के दशक में प्रोतिमा बेदी ने मुंबई के जुहू बीच पर संपूर्ण प्राकतिक अवस्था में दोड़ लगा दी थी ..ये प्रसंग कई पुराने खलीफाओं को आज भी ताज़ा होगा जो सोंदर्य रस के पान में इन सुंदरियों द्वारा की गई इस प्रकार की वीरता के रस का तड़का भी खूब पसंद करते हैं ..और उन्हें ये उपक्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं...इनमे कई भद्र व्यापारी . अंगिया और अधोवस्त्र और सोन्दर्य सामग्री जेसे एक क्रीम जो एक सप्ताह में ही काली को गोरी बनाती है.. और अधरों को कातिल बनाने के लिए लिपस्टिक के निर्माण का कार्य करते हैं वे इस प्रकार की गतिविधियाँ संचालित कर बाज़ार में इन्हें विक्रय करने का कार्य करतें हैं ताकि अत्यधिक धन अर्जित किया जा सके और दों चार कोडी की अंगिया को डालर के भाव बेचा जा सके ..बाज़ार में अल्प्वास्त्रों में खड़े हुस्न के दीदार के कई चाहने वाले हैं ..कई द्रस्टी दोष के मरीज इस प्रकार के अल्प वस्त्रों में खड़ी नायिकाओं के दर्शन लाभ से आरोग्य प्राप्त कर लेते हैं उनके जरुरत से ज्यादा नज़र आने लगता है ,,
भारत में भी इसका सुभारम्भ लगभग हो चुका है .कुमारी पूनम पाण्डेय का नाम आधुनिक और मध्य वर्गीय शहरी युवा भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा ..
अमेरिका में तो ये आम चलन है .. होलीवूड की कई नायिकाओं ने इस प्रकार के उपक्रमों से कई बार लोंगो के दिलों को जीता है होलीवुड की फिल्मों में अमिरीकी झंडे की अंगिया और चड्डी पहने नायिका पिस्टल चलाती है और देश के दुश्मनों का नाश करती है.. पूनम पाण्डेय पिस्टल चला कर देश के दुश्मनों का नाश फ़िल्मी अंदाज़ में नहीं करेगी पर ये तय है अपने मीन चक्षुओं के तीरों से कई युवाओं को घायल करेगी और कई युवाओं को अल्प आयु में ही हिरदय घात का रोगी बना देगी ...फ़्रांस और चीनी ताइपे और अन्य पश्चिमी देशों के चुनावो में तो फिल्मो और मोडलिंग जगत से जुडी कई सोंदर्य साम्रागियों ने अपनी अथाह रूप राशी को बड़ी ही उदारता से अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सड़क पर पानी की तरह बहाया ..और मतदाताओं ने भी उनके रूप रस का पान कर अपने आप को उनके प्रति कृतग्य किया . और मत दे कर अपने आप को बड़ी ही मुश्किल से उनके इस कभी ना उतारे जाने वाले ऋण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया ..पर जब तक वे नायिकाए युवा रही तब तक वे कभी ऋण मुक्त नहीं हो सके और उन नायिकाओं के प्रोढ़ा अवस्था में पहुँचने तक कंगाल ही बने रहे ..अब भी वे उनकी पुरानी फिल्मे देख कर अपने आप को बहलाने का जतन करते रहते हैं और साथ में वे गाते रहे की ;; तेरे हुस्न का हुक्का बुझ चुका फिर भी पुराने आशिक हैं इसलिए हम इसे गुडगुडा रहे हैं ....इस क्रम में में कुछ महान नायिकाओं का यहाँ से आदर से नाम लूँगा ..आदरणीय प्रात; स्मरणीय सुश्री मर्लिन मुनरों इसमें प्रथम श्रेणी में स्थान रखती है उसके बाद सांद्रा बुलोक, उर्सला एंड्रूज; पामेला एंडरसन सहित कई हस्तीया शामिल हैं
पूनम पाण्डेय के हाहाकारी और इंकलाबी तेवरों के चलते भारत में भी ये कमी दूर हो जायेगी जो अरसे से महसूस की जा रही थी ..में तो कहता हूँ की उनके इस साहसी कदम की अंतर्मन से मुखर हो कर सराहना की जानी चहिये और इस प्रकार कदम उठाने वाली पहली भारतीय नहीं मेरा मतलब इंडिया की पहली महिला होने का गोरव पाने के लिए किसी बड़े सार्वजानिक आयोजन में इनका शाल ओढा कर सम्मान ....शाल नहीं.. शाल की क्या जरुरत है ..जिस हालत में वो होगी उसी हालत में उनका सम्मान करना चहिये ..कम ओन इंडिया कम ओन ..दिखा दों सबको ..सब देखने के लिए मरे जा रहे हैं में भी चश्मा और दूरबीन दोनों लेकर आता हूँ ताकि दूर और पास दोनों ही प्रकार से उस अकूत विपुल रूप राशी के दर्शन का लाभ उठा सकूँ ..
पूनम पाण्डेय जेसी भद्र षोडशी इसमें बड़ी बेदर्दी से रूचि ले और इंडिया के फाइनल जितने की ख़ुशी वानखेड़े स्टेडियम में हजारों दर्शकों की मौजूदगी में वो प्राकतिक अवस्था में मार्च पास्ट कर के ज़ाहिर करे तो हम इसे क्या संज्ञा देंगे हांलाकि अभी यह महज लफ्फाजी और सम्भावना ही दिख रही है पर सनकी पन के इस दौर में हमें इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण नज़ारे कई और भी देखने को मिल सकते हैं ..हो सकता है कल कोई और पूनम पाण्डेय अपने ऐलान को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए तिरंगे की अंगिया और चड्डी सिला कर पहन ले और उसका सार्वजानिक प्रदर्शन कर ले तो कई कथित नासमझ देश भक्त वाह वाह और अश अश , मरहबा मरहबा कर उठेंगे ..और अगर वो बीच मैदान में इन दों अतिअल्प वस्त्रों को भी उतार दे और मैदान में उसे झंडे के तरह लहरा दे तो कोई हर्ज़ नहीं की पूनम जी की इस क़ुरबानी के आगे अब तक हुए कई शहीदों की कुरबानिया भी शायद इनकी नज़र में फीकी पड़ जायेगी ..मैदान में भूचाल आ जायेगा ..मुंबई समुद्र के किनारे है अतः सुनामी भी आ सकती है सभी दर्शक सावधान रहें और सरकार चिकित्सा का पूरा प्रबंध कर के रखें .. चाँद की तरफ अब तक चकोर आकर्षित होते रहें हैं पर इस दशा में चाँद कहीं इस चकोरी का दर्शन लाभ लेने धरती पर गाज की तरह नहीं आ पड़े ..दर्शक इसका भी ध्यान रखें ..इस प्रकार की आपदा का बिमा नहीं होता .
इतिहास रहा है की इतिहास दोहराया जाता है क्योंकि सत्तर के दशक में प्रोतिमा बेदी ने मुंबई के जुहू बीच पर संपूर्ण प्राकतिक अवस्था में दोड़ लगा दी थी ..ये प्रसंग कई पुराने खलीफाओं को आज भी ताज़ा होगा जो सोंदर्य रस के पान में इन सुंदरियों द्वारा की गई इस प्रकार की वीरता के रस का तड़का भी खूब पसंद करते हैं ..और उन्हें ये उपक्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं...इनमे कई भद्र व्यापारी . अंगिया और अधोवस्त्र और सोन्दर्य सामग्री जेसे एक क्रीम जो एक सप्ताह में ही काली को गोरी बनाती है.. और अधरों को कातिल बनाने के लिए लिपस्टिक के निर्माण का कार्य करते हैं वे इस प्रकार की गतिविधियाँ संचालित कर बाज़ार में इन्हें विक्रय करने का कार्य करतें हैं ताकि अत्यधिक धन अर्जित किया जा सके और दों चार कोडी की अंगिया को डालर के भाव बेचा जा सके ..बाज़ार में अल्प्वास्त्रों में खड़े हुस्न के दीदार के कई चाहने वाले हैं ..कई द्रस्टी दोष के मरीज इस प्रकार के अल्प वस्त्रों में खड़ी नायिकाओं के दर्शन लाभ से आरोग्य प्राप्त कर लेते हैं उनके जरुरत से ज्यादा नज़र आने लगता है ,,
भारत में भी इसका सुभारम्भ लगभग हो चुका है .कुमारी पूनम पाण्डेय का नाम आधुनिक और मध्य वर्गीय शहरी युवा भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा ..
अमेरिका में तो ये आम चलन है .. होलीवूड की कई नायिकाओं ने इस प्रकार के उपक्रमों से कई बार लोंगो के दिलों को जीता है होलीवुड की फिल्मों में अमिरीकी झंडे की अंगिया और चड्डी पहने नायिका पिस्टल चलाती है और देश के दुश्मनों का नाश करती है.. पूनम पाण्डेय पिस्टल चला कर देश के दुश्मनों का नाश फ़िल्मी अंदाज़ में नहीं करेगी पर ये तय है अपने मीन चक्षुओं के तीरों से कई युवाओं को घायल करेगी और कई युवाओं को अल्प आयु में ही हिरदय घात का रोगी बना देगी ...फ़्रांस और चीनी ताइपे और अन्य पश्चिमी देशों के चुनावो में तो फिल्मो और मोडलिंग जगत से जुडी कई सोंदर्य साम्रागियों ने अपनी अथाह रूप राशी को बड़ी ही उदारता से अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सड़क पर पानी की तरह बहाया ..और मतदाताओं ने भी उनके रूप रस का पान कर अपने आप को उनके प्रति कृतग्य किया . और मत दे कर अपने आप को बड़ी ही मुश्किल से उनके इस कभी ना उतारे जाने वाले ऋण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया ..पर जब तक वे नायिकाए युवा रही तब तक वे कभी ऋण मुक्त नहीं हो सके और उन नायिकाओं के प्रोढ़ा अवस्था में पहुँचने तक कंगाल ही बने रहे ..अब भी वे उनकी पुरानी फिल्मे देख कर अपने आप को बहलाने का जतन करते रहते हैं और साथ में वे गाते रहे की ;; तेरे हुस्न का हुक्का बुझ चुका फिर भी पुराने आशिक हैं इसलिए हम इसे गुडगुडा रहे हैं ....इस क्रम में में कुछ महान नायिकाओं का यहाँ से आदर से नाम लूँगा ..आदरणीय प्रात; स्मरणीय सुश्री मर्लिन मुनरों इसमें प्रथम श्रेणी में स्थान रखती है उसके बाद सांद्रा बुलोक, उर्सला एंड्रूज; पामेला एंडरसन सहित कई हस्तीया शामिल हैं
पूनम पाण्डेय के हाहाकारी और इंकलाबी तेवरों के चलते भारत में भी ये कमी दूर हो जायेगी जो अरसे से महसूस की जा रही थी ..में तो कहता हूँ की उनके इस साहसी कदम की अंतर्मन से मुखर हो कर सराहना की जानी चहिये और इस प्रकार कदम उठाने वाली पहली भारतीय नहीं मेरा मतलब इंडिया की पहली महिला होने का गोरव पाने के लिए किसी बड़े सार्वजानिक आयोजन में इनका शाल ओढा कर सम्मान ....शाल नहीं.. शाल की क्या जरुरत है ..जिस हालत में वो होगी उसी हालत में उनका सम्मान करना चहिये ..कम ओन इंडिया कम ओन ..दिखा दों सबको ..सब देखने के लिए मरे जा रहे हैं में भी चश्मा और दूरबीन दोनों लेकर आता हूँ ताकि दूर और पास दोनों ही प्रकार से उस अकूत विपुल रूप राशी के दर्शन का लाभ उठा सकूँ ..
Saturday, March 19, 2011
विज्ञापन में नारी देह का भौंडा प्रदर्शन
मेने एक सीमेंट का विज्ञापन देखा ..उसमे एक सुडोल शरीर की मालकिन अर्धनग्न कन्या जो सुन्दरता के कथित सभी मापदंडों को पूरा करती प्रतीत हो रही थी ..(जेसा की उसके तन से उजागर हो रहा था) ..
वो विज्ञापन के उस विशाल होर्डिंग में खड़ी हुई दर्शाई गई थी वहीँ दूसरी और उक्त सीमेंट से बनी बिल्डिंग ...और उस बोर्ड पर लिखा था ..
'''''एक अटूट विश्वास,, सोलिड माल,, जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा ..एक बार जरुर उपयोग करें .......''
मेरी समझ में ये नहीं आया की सोलिड क्या है ...? में इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं करूँगा ...
विह्यापन सड़क के ऐसे मोड़ पर लगाया गया की उस पर नज़र पड़े बिना रह ही नहीं सकती ..
एक विज्ञापन और जो ..किसी कार का था ...
उसमे एक अति सुंदर अल्प वस्त्रधारिणी कन्या ..उसके शरीर पर कपडे इस प्रकार थे की जो अंग छिपाने थे वे तो नहीं छिप रहे थे.. और जो नहीं छिपाने थे उनको छिपाने की जरुरत ही नहीं होने के कारण नहीं छिपाया गया ..वो उस कार के बोनट पर झुकी हुई थी ..बोर्ड पर लिखा हुआ था ..
''''''क्या बाडी है..कितनी आरामदायक .और स्पीड के तो कहने ही क्या ..इसका माइलेज गज़ब ..सबसे अलग...''''''
में कनफुज्य की बेचा किसको जा रहा है ...मानव बिक्री पर तो क़ानूनी रोक है ..और विज्ञापन से तो ऐसा ही लग रहा था की कार को नहीं ..बेच के ..
अब में आगे नहीं कहूँगा ,,,,,,,,
एक गोरी बनाने की क्रीम का विज्ञापन ...लड़की की शादी नहीं हो पा रही है ..जो भी लड़का आया उसने उसे रिजेक्ट किया ..लड़की ने तत्काल गोरी होने का नुस्खा आजमाया ..
इस क्रम में लड़की को पहले दिन काली बताया ...सातवें दिन ..वो फुलमून नज़र आने लगी .. उसके पुरे मुहल्ले के लड़के उसके घर के सामने शादी का प्रस्ताव लेकर लाइन में खड़े थे ..अब लड़की तय करेगी की उसे किसके साथ शादी करनी है .. जो लड़का देखने आया है ..वो लड़की की असीम सुन्दरता के आगे गद गद है ..
प्रेशर कुकर का विज्ञापन ...............''''
पतिदेव का प्रमोशन रुका हुआ है ..
शाम को बोस को खाने पर बुलाया ..पत्नी ने फलां प्रेशर कुकर में खाना पकाया.. बोस को खिलाया ..बोस ने खाने की तारीफ की (छुपे तौर पर उसकी पत्नी की) पत्नी मुस्कराई बोस ने उसी वक्त प्रमोशन कर दिया ,,पति बोला जय हो फलां कुकर देव की ...अब प्रमोशन कुकर ने करवाया या उसकी पत्नी की कातिल मुस्कराहट ने ..ये तो विज्ञापन बनानेवाले ही जाने ..
पुरुष के अंडर गारमेंट ..का विज्ञापन ..
पुरुष एक चड्डी में आता है ..और चड्डी में ही 7 - 8 गुंडों से लड़ता है ..और लड़की को बचा लेता है ...लड़की उसका शुक्रिया अदा करने के भावों से उसे निहारती है ...और उसकी तरफ बड़े ही कातिलाना अंदाज़ से बढती है ...अब बचो ...तुम्हें कौन बचाएगा ..पर बचना भी कौन चाहता है ...बढ़िया ..
एक विज्ञापन परफ्यूम स्प्रे का ..
एक शादीशुदा सधस्नाता सुंदर पतिव्रता भारतीय नारी ..सामने दूसरी और की बालकनी में एक मेट्रोसेक्सुअल इंडियन यंगबोय जो फलां परफ्यूम स्प्रे लगाये हुए हुए है ..उसकी खुशबु ज्योंही स्त्री तक पहुँचती है उसके पग पथभ्रष्ट होने लगे है ..वो परफ्यूम लगाये युवक की और आकर्षित होने लगती है ..
में सोच रहा हूँ ये कौनसा सन्देश है देश वासियों को ..
इसके एक दुसरे विज्ञापन में पुरे शहर की लड़कियां उस युवक के पीछे भाग रही है जिसने उक्त स्प्रे लगा रखी है ..जेसे मक्खियाँ गुड के पीछे हो ..
लिफ्ट में एक लड़का और लड़की साथ में है लड़का लिफ्ट से बाहर आता है तो उसे ऐसा दिखाया जाता है जेसे उसकी इज्ज़त लुट चुकी हो ..मानों उसने वो परफ्यूम लगा कर ही गलती कर दी और उधर लड़की ऐसे संतोष के भाव चहेरे पर लाकर लिफ्ट से निकलती है मानों बिल्ली मलाई चाट कर निकली हो ,,परम संतोष के भाव ..
महिलाओं का इतना घटिया और भौंडा प्रदर्शन इन विज्ञापनों में ..बर्दास्त के बाहर है ..मुझे पूरा विश्वास है भारत की महिला अभी इतनी आगे नहीं है की उनकी वजह से पुरुषों की इज्ज़त खतरे में हो ..भारत क्या दुनिया में भी ऐसा नहीं है ..महिला का ये चित्रण पूरी तरह से नकली है .
एक टायर का विज्ञापन .........''
लड़की और टायर दोनों खड़े हैं बोर्ड में ....टायर काला कलूटा है,, अकेले टायर को कौन देखेगा और किसी को भी जरुरत है तो वेसे ही खरीद लेगा ..पर विज्ञापन है ..काले कलूटे टायर के साथ में एक गोरी षोडशी खड़ी है ...काला कुरूप टायर अपने नसीब पर रश्क कर रहा है ..की उसे एक शानदार खुबसूरत लड़की का साथ प्राप्त है ..मेने सोचा इस बार में भी यही टायर खरीदूंगा और जब तक पहले वाले टायर घिस नहीं जाते में रोज इस विज्ञापन के दर्शन करूँगा तथा साथ ही प्रार्थना करूँगा की मेरे टायर जल्दी घिसे ..
एक मोटर साइकल का विज्ञापन ...........'''
लड़की मोटर साइकल के पास में खड़ी है ...........बोर्ड पर लिखा है ,,..'' गज़ब का दम..शानदार पिकप ...एक शानदार सवारी ..फ्री ट्रायल के लिए हमारे शोरुम पर पधारें ....मेरे साथ चल रहे साथी ने कहा आज ही जाता हूँ ...लड़का मोटर साइकल पर सवार है और स्पीड से बढ़ा जा रहा है ..क्या सवारी है ..कल्पना में लड़की दिखाई जा रही है ....
एक चाकलेट का विज्ञापन ......''
लड़का स्वादिस्ट चाकलेट का रेपर उतार रहा है ...और कल्पना में एक लड़की है ...'''
मेने अपना माथा ठोक लिया ...हद हो गई ....
एक और विज्ञापन में लड़की रात को गाडी खराब होने के कारण रास्ते में एक लड़के के यहाँ रुकना चाह रही है ..लड़का गोली खा कर तरकीब लडाता है की लड़की उसके कमरे में रुक जाए ...यानि चाकलेट खाते ही दिमाग में शैतान जाग गया ...
कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन ....'''''
लड़का कोल्ड ड्रिंक घटक रहा है ..और लड़की के मुहँ से लार टपक रही है ....
एक वाशिंग पाउडर का विज्ञापन ....
विज्ञापन में महिला को महिला का विरोधी बताया है क्योंकि ..उसकी साड़ी उससे ज्यादा सफेद है ..जो उसे बर्दास्त नहीं है ..''
में ये कह रहा हूँ की ..महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन कोई लड़की करे तो समझ में आता है ..पर पुरुषों के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन लड़की करे ...ये मेरी तो समझ के बाहर है ..असल में महिला आज भी बिकाऊ है उसे पुराने ज़माने की तरह सीधे तौर पर जबरिया नहीं बेचा जा रहा है पर उसकी देह के खरीदार आज के सभ्य समाज में भी है ..बस तरीके बदल दिए गए है ..अन्यथा स्त्री आज भी बाज़ार में बिक रही है किसी वस्तु या मवेशी की तरह ...
वो विज्ञापन के उस विशाल होर्डिंग में खड़ी हुई दर्शाई गई थी वहीँ दूसरी और उक्त सीमेंट से बनी बिल्डिंग ...और उस बोर्ड पर लिखा था ..
'''''एक अटूट विश्वास,, सोलिड माल,, जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा ..एक बार जरुर उपयोग करें .......''
मेरी समझ में ये नहीं आया की सोलिड क्या है ...? में इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं करूँगा ...
विह्यापन सड़क के ऐसे मोड़ पर लगाया गया की उस पर नज़र पड़े बिना रह ही नहीं सकती ..
एक विज्ञापन और जो ..किसी कार का था ...
उसमे एक अति सुंदर अल्प वस्त्रधारिणी कन्या ..उसके शरीर पर कपडे इस प्रकार थे की जो अंग छिपाने थे वे तो नहीं छिप रहे थे.. और जो नहीं छिपाने थे उनको छिपाने की जरुरत ही नहीं होने के कारण नहीं छिपाया गया ..वो उस कार के बोनट पर झुकी हुई थी ..बोर्ड पर लिखा हुआ था ..
''''''क्या बाडी है..कितनी आरामदायक .और स्पीड के तो कहने ही क्या ..इसका माइलेज गज़ब ..सबसे अलग...''''''
में कनफुज्य की बेचा किसको जा रहा है ...मानव बिक्री पर तो क़ानूनी रोक है ..और विज्ञापन से तो ऐसा ही लग रहा था की कार को नहीं ..बेच के ..
अब में आगे नहीं कहूँगा ,,,,,,,,
एक गोरी बनाने की क्रीम का विज्ञापन ...लड़की की शादी नहीं हो पा रही है ..जो भी लड़का आया उसने उसे रिजेक्ट किया ..लड़की ने तत्काल गोरी होने का नुस्खा आजमाया ..
इस क्रम में लड़की को पहले दिन काली बताया ...सातवें दिन ..वो फुलमून नज़र आने लगी .. उसके पुरे मुहल्ले के लड़के उसके घर के सामने शादी का प्रस्ताव लेकर लाइन में खड़े थे ..अब लड़की तय करेगी की उसे किसके साथ शादी करनी है .. जो लड़का देखने आया है ..वो लड़की की असीम सुन्दरता के आगे गद गद है ..
प्रेशर कुकर का विज्ञापन ...............''''
पतिदेव का प्रमोशन रुका हुआ है ..
शाम को बोस को खाने पर बुलाया ..पत्नी ने फलां प्रेशर कुकर में खाना पकाया.. बोस को खिलाया ..बोस ने खाने की तारीफ की (छुपे तौर पर उसकी पत्नी की) पत्नी मुस्कराई बोस ने उसी वक्त प्रमोशन कर दिया ,,पति बोला जय हो फलां कुकर देव की ...अब प्रमोशन कुकर ने करवाया या उसकी पत्नी की कातिल मुस्कराहट ने ..ये तो विज्ञापन बनानेवाले ही जाने ..
पुरुष के अंडर गारमेंट ..का विज्ञापन ..
पुरुष एक चड्डी में आता है ..और चड्डी में ही 7 - 8 गुंडों से लड़ता है ..और लड़की को बचा लेता है ...लड़की उसका शुक्रिया अदा करने के भावों से उसे निहारती है ...और उसकी तरफ बड़े ही कातिलाना अंदाज़ से बढती है ...अब बचो ...तुम्हें कौन बचाएगा ..पर बचना भी कौन चाहता है ...बढ़िया ..
एक विज्ञापन परफ्यूम स्प्रे का ..
एक शादीशुदा सधस्नाता सुंदर पतिव्रता भारतीय नारी ..सामने दूसरी और की बालकनी में एक मेट्रोसेक्सुअल इंडियन यंगबोय जो फलां परफ्यूम स्प्रे लगाये हुए हुए है ..उसकी खुशबु ज्योंही स्त्री तक पहुँचती है उसके पग पथभ्रष्ट होने लगे है ..वो परफ्यूम लगाये युवक की और आकर्षित होने लगती है ..
में सोच रहा हूँ ये कौनसा सन्देश है देश वासियों को ..
इसके एक दुसरे विज्ञापन में पुरे शहर की लड़कियां उस युवक के पीछे भाग रही है जिसने उक्त स्प्रे लगा रखी है ..जेसे मक्खियाँ गुड के पीछे हो ..
लिफ्ट में एक लड़का और लड़की साथ में है लड़का लिफ्ट से बाहर आता है तो उसे ऐसा दिखाया जाता है जेसे उसकी इज्ज़त लुट चुकी हो ..मानों उसने वो परफ्यूम लगा कर ही गलती कर दी और उधर लड़की ऐसे संतोष के भाव चहेरे पर लाकर लिफ्ट से निकलती है मानों बिल्ली मलाई चाट कर निकली हो ,,परम संतोष के भाव ..
महिलाओं का इतना घटिया और भौंडा प्रदर्शन इन विज्ञापनों में ..बर्दास्त के बाहर है ..मुझे पूरा विश्वास है भारत की महिला अभी इतनी आगे नहीं है की उनकी वजह से पुरुषों की इज्ज़त खतरे में हो ..भारत क्या दुनिया में भी ऐसा नहीं है ..महिला का ये चित्रण पूरी तरह से नकली है .
एक टायर का विज्ञापन .........''
लड़की और टायर दोनों खड़े हैं बोर्ड में ....टायर काला कलूटा है,, अकेले टायर को कौन देखेगा और किसी को भी जरुरत है तो वेसे ही खरीद लेगा ..पर विज्ञापन है ..काले कलूटे टायर के साथ में एक गोरी षोडशी खड़ी है ...काला कुरूप टायर अपने नसीब पर रश्क कर रहा है ..की उसे एक शानदार खुबसूरत लड़की का साथ प्राप्त है ..मेने सोचा इस बार में भी यही टायर खरीदूंगा और जब तक पहले वाले टायर घिस नहीं जाते में रोज इस विज्ञापन के दर्शन करूँगा तथा साथ ही प्रार्थना करूँगा की मेरे टायर जल्दी घिसे ..
एक मोटर साइकल का विज्ञापन ...........'''
लड़की मोटर साइकल के पास में खड़ी है ...........बोर्ड पर लिखा है ,,..'' गज़ब का दम..शानदार पिकप ...एक शानदार सवारी ..फ्री ट्रायल के लिए हमारे शोरुम पर पधारें ....मेरे साथ चल रहे साथी ने कहा आज ही जाता हूँ ...लड़का मोटर साइकल पर सवार है और स्पीड से बढ़ा जा रहा है ..क्या सवारी है ..कल्पना में लड़की दिखाई जा रही है ....
एक चाकलेट का विज्ञापन ......''
लड़का स्वादिस्ट चाकलेट का रेपर उतार रहा है ...और कल्पना में एक लड़की है ...'''
मेने अपना माथा ठोक लिया ...हद हो गई ....
एक और विज्ञापन में लड़की रात को गाडी खराब होने के कारण रास्ते में एक लड़के के यहाँ रुकना चाह रही है ..लड़का गोली खा कर तरकीब लडाता है की लड़की उसके कमरे में रुक जाए ...यानि चाकलेट खाते ही दिमाग में शैतान जाग गया ...
कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन ....'''''
लड़का कोल्ड ड्रिंक घटक रहा है ..और लड़की के मुहँ से लार टपक रही है ....
एक वाशिंग पाउडर का विज्ञापन ....
विज्ञापन में महिला को महिला का विरोधी बताया है क्योंकि ..उसकी साड़ी उससे ज्यादा सफेद है ..जो उसे बर्दास्त नहीं है ..''
में ये कह रहा हूँ की ..महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन कोई लड़की करे तो समझ में आता है ..पर पुरुषों के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन लड़की करे ...ये मेरी तो समझ के बाहर है ..असल में महिला आज भी बिकाऊ है उसे पुराने ज़माने की तरह सीधे तौर पर जबरिया नहीं बेचा जा रहा है पर उसकी देह के खरीदार आज के सभ्य समाज में भी है ..बस तरीके बदल दिए गए है ..अन्यथा स्त्री आज भी बाज़ार में बिक रही है किसी वस्तु या मवेशी की तरह ...
Tuesday, March 15, 2011
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए ....
मुन्नी ही बदनाम क्यों होती है , ये मुन्ना क्यों नहीं होता ..
मेरे पड़ोस की मुन्नी ..पड़ोस के मुन्ने के साथ पिछली रात को मां बाप को सोते छोड़ खिड़की से कूद कर भाग गई .. शंका पहले से रही होगी क्योंकि उनकी मुहब्बत का चर्चा आम था ..पर जो होना था वही हुआ ..जेसे भेंस चोरी होने के बाद खाली तबेले में अपने सर पिटते मुन्नी के माँ बाप घर में मातम मना रहे थे ...
वहीँ बाहर मुझे बाजु वाले महाशय ...मुहल्ले की चाय की पटरी पर मिले ..लोकल अख़बार में झांकते हुए... और मुझे आता देख वो चेहरे पर नकली दुःख का आवरण चढ़ा कर मुझसे मुखातिब होकर बड़े चुटीले अंदाज़ में बोले ..हें भई..जानते हो .?.अपनी गली के लास्ट घर के पहले वाले घर में जो छोकरी नहीं थी ..मेने जान बुज कर कहा कौनसी ...?
वो बोले अरे आप नहीं जानते वो जींस पहने स्कूटी चलाती थी और लटर पटर करती रहती थी ..चश्मा लगाती थी और मुहँ पर पूरा कपड़ा ढंक के निकलती थी .. मेने कहा अच्छा..वो लड़की जो जब भी राह में मिलते प्रणाम करती थी ..वो ..?
अरे हाँ वो मुन्नी .. वही पर.. वो मुझे प्रणाम नहीं करती थी ....वो उसके घर के ऐन सामने वाले घर में रहने वाले मुन्ने के साथ भाग गई ...
उनका ड्रामा इस कदर का था मानों इनकी लड़की भाग गई हो .. मेने सोचा इनको प्रणाम नहीं करती थी क्या इसलिए कसर निकल रहे हैं ..
अब में पूर्वाग्रहों से ग्रसित इस सामाजिक व्यवस्था के बारे सोच रहा था की ..लोग लड़की के भागने को ही इश्यु क्यों बनाते है ..अरे भई मुन्ना भी तो भागा है ..उसके लिए इस प्रकार टिप्पणी कर क्यों नहीं कहा जा रहा है ..
मेने यही बात निन्दारत निंदक महाशय से कही ..वो बोले ..अरे भई लड़के का क्या है ...उसके क्या फर्क पड़ेगा ..जिंदगी तो लड़की की बर्बाद होगी ना ..
मेने सोचा ...हमेशा लड़की की जिंदगी खराब होगी ये रट्टा सबके सामने मार मार के ही उसकी बदनामी कर देते है ..फिर तो जिन्दगी बर्बाद होनी ही है .
मुन्ने के माँ बाप कह रहे थे ..अरे छोरी का क्या है ..उसके माँ बाप का तो शादी का खर्चा बचा ..जीवन तो हमारे मुन्ने का ख़राब हुआ हमारा हुआ हाय रे......!!!! बिरादरी में नाक कटवा दी.. कमाने लायक छोरा हाथ से निकल गया ..अरे ना जाने क्या जादू कर दिया उस छोकरी ने हमारे मुन्ने पर ..सत्यानाश जाए उसका ..और उसको पैदा करने वालों का ..
कुल मिला कर सारा दोष लड़की का ...लड़की सुंदर हो तो ये आरोप की उसने लड़के पर जादू कर दिया और भगा ले गई
गरीब हो तो ये आरोप की लड़की के माँ बाप का शादी का खर्चा बचा ..
प्रगतिशील हो तो ये आरोप की ..अरे भई कोई जात बिरादरी भी कोई चीज होती है या नहीं ..पता नहीं किस खानदान से हैं .
पुलिस में जाओ तो थानेदार बड़े चुटीले अंदाज़ में कहेगा ,,,,हैं भई किसी के साथ चक्कर होगा ..आपने टाइम से शादी क्यों नहीं करवा दी ..होती तो आज ये नौबत नहीं आती ..और पुलिस वाले ..हमदर्दी की बजाय अपना इस बारे में ज्ञान बांटने लग जाते है ...मेरी गारंटी है ..इनका पुराना चक्कर होगा ..
अरे में सब जानता हूँ ..आजकल की लड़कियों को ..और कुछ करे नहीं करे पर बॉयफ्रेंड पहली फुर्सत में बना लेती है ..शाम को झील किनारे चले जाओ ..पता लग जाएगा ..की शहर से कितनी लड़कियां भगने वाली है ..
मेने सोचा ,,अरे क्यों मुन्नी के पीछे पड़े हो ..क्यों उसे ही बदनाम करते हो ..मुन्नी बेचारी सदियों से बदनाम होती आ रही है इन सब मुन्नों के लिए ..मुन्ने के साथ भागने से मुन्नी को मिलता क्या है ..केवल जिल्लत, रुसवाई, बदनामी ..पर मुन्नी इसलिए बदनाम होती है क्योंकि वो अपने मुन्ने को दिल की गहराईयों से टूट कर बेइन्तहा चाहती है ..कोई मुन्नी की भावनाओं को कोई समझेगा ,,क्या ..?
मेरे पड़ोस की मुन्नी ..पड़ोस के मुन्ने के साथ पिछली रात को मां बाप को सोते छोड़ खिड़की से कूद कर भाग गई .. शंका पहले से रही होगी क्योंकि उनकी मुहब्बत का चर्चा आम था ..पर जो होना था वही हुआ ..जेसे भेंस चोरी होने के बाद खाली तबेले में अपने सर पिटते मुन्नी के माँ बाप घर में मातम मना रहे थे ...
वहीँ बाहर मुझे बाजु वाले महाशय ...मुहल्ले की चाय की पटरी पर मिले ..लोकल अख़बार में झांकते हुए... और मुझे आता देख वो चेहरे पर नकली दुःख का आवरण चढ़ा कर मुझसे मुखातिब होकर बड़े चुटीले अंदाज़ में बोले ..हें भई..जानते हो .?.अपनी गली के लास्ट घर के पहले वाले घर में जो छोकरी नहीं थी ..मेने जान बुज कर कहा कौनसी ...?
वो बोले अरे आप नहीं जानते वो जींस पहने स्कूटी चलाती थी और लटर पटर करती रहती थी ..चश्मा लगाती थी और मुहँ पर पूरा कपड़ा ढंक के निकलती थी .. मेने कहा अच्छा..वो लड़की जो जब भी राह में मिलते प्रणाम करती थी ..वो ..?
अरे हाँ वो मुन्नी .. वही पर.. वो मुझे प्रणाम नहीं करती थी ....वो उसके घर के ऐन सामने वाले घर में रहने वाले मुन्ने के साथ भाग गई ...
उनका ड्रामा इस कदर का था मानों इनकी लड़की भाग गई हो .. मेने सोचा इनको प्रणाम नहीं करती थी क्या इसलिए कसर निकल रहे हैं ..
अब में पूर्वाग्रहों से ग्रसित इस सामाजिक व्यवस्था के बारे सोच रहा था की ..लोग लड़की के भागने को ही इश्यु क्यों बनाते है ..अरे भई मुन्ना भी तो भागा है ..उसके लिए इस प्रकार टिप्पणी कर क्यों नहीं कहा जा रहा है ..
मेने यही बात निन्दारत निंदक महाशय से कही ..वो बोले ..अरे भई लड़के का क्या है ...उसके क्या फर्क पड़ेगा ..जिंदगी तो लड़की की बर्बाद होगी ना ..
मेने सोचा ...हमेशा लड़की की जिंदगी खराब होगी ये रट्टा सबके सामने मार मार के ही उसकी बदनामी कर देते है ..फिर तो जिन्दगी बर्बाद होनी ही है .
मुन्ने के माँ बाप कह रहे थे ..अरे छोरी का क्या है ..उसके माँ बाप का तो शादी का खर्चा बचा ..जीवन तो हमारे मुन्ने का ख़राब हुआ हमारा हुआ हाय रे......!!!! बिरादरी में नाक कटवा दी.. कमाने लायक छोरा हाथ से निकल गया ..अरे ना जाने क्या जादू कर दिया उस छोकरी ने हमारे मुन्ने पर ..सत्यानाश जाए उसका ..और उसको पैदा करने वालों का ..
कुल मिला कर सारा दोष लड़की का ...लड़की सुंदर हो तो ये आरोप की उसने लड़के पर जादू कर दिया और भगा ले गई
गरीब हो तो ये आरोप की लड़की के माँ बाप का शादी का खर्चा बचा ..
प्रगतिशील हो तो ये आरोप की ..अरे भई कोई जात बिरादरी भी कोई चीज होती है या नहीं ..पता नहीं किस खानदान से हैं .
पुलिस में जाओ तो थानेदार बड़े चुटीले अंदाज़ में कहेगा ,,,,हैं भई किसी के साथ चक्कर होगा ..आपने टाइम से शादी क्यों नहीं करवा दी ..होती तो आज ये नौबत नहीं आती ..और पुलिस वाले ..हमदर्दी की बजाय अपना इस बारे में ज्ञान बांटने लग जाते है ...मेरी गारंटी है ..इनका पुराना चक्कर होगा ..
अरे में सब जानता हूँ ..आजकल की लड़कियों को ..और कुछ करे नहीं करे पर बॉयफ्रेंड पहली फुर्सत में बना लेती है ..शाम को झील किनारे चले जाओ ..पता लग जाएगा ..की शहर से कितनी लड़कियां भगने वाली है ..
मेने सोचा ,,अरे क्यों मुन्नी के पीछे पड़े हो ..क्यों उसे ही बदनाम करते हो ..मुन्नी बेचारी सदियों से बदनाम होती आ रही है इन सब मुन्नों के लिए ..मुन्ने के साथ भागने से मुन्नी को मिलता क्या है ..केवल जिल्लत, रुसवाई, बदनामी ..पर मुन्नी इसलिए बदनाम होती है क्योंकि वो अपने मुन्ने को दिल की गहराईयों से टूट कर बेइन्तहा चाहती है ..कोई मुन्नी की भावनाओं को कोई समझेगा ,,क्या ..?
Saturday, March 5, 2011
चापलूसी कैसे करें ..आदर्श चापलूस संहिता
चापलूसी का रिवाज हमारे देश में पुराने समय से ही चला आ रहा है .
और आज के इस गला काट प्रतिस्पर्धा के समय में आप अगर कहीं टिक सकते हैं तो वो दो तरीकों से
पहला ये की आप इतने लायक हो की आपके आला अधिकारीयों को यानि बोस को आपकी योग्यता के आगे सभी नालायक लगे .
दूसरा तरीका ये है की आप अपने वरिस्ट जनों की इतनी चापलूसी, चमचागिरी करें की वो इसका लोह...ा मान जाएँ और उनको ये लगने लग जाए की दफ्तर में काम नहीं होगा तो चलेगा पर चापलूसी नहीं हुई तो कम्पनी डूब जायेगी .. यानि सारा नफा नुकसान चापलूसी पर निर्भर हो जाएँ
आपको वफादारी और चापलूसी के वो झंडे गाड़ने होंगे की सभी चापलूस आपकी चापलूसी और वफादारी के आगे मुहँ छुपाते फिरे ..
और
इस बात की आपसे ट्यूशन करने पर मजबूर हो जाएँ..
मेने चापलूसी के बारे में एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग कहीं पढ़ा था जो ...हमारे वर्तमान में सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अपने वरिस्ट जनों की चापलूसी करने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत है ..
बात अंग्रेजी शासन काल की है जब ..मध्यप्रदेश के किसी जिले में कोई अंग्रेज जिला कलक्टर हुआ करते थे ..सभी कर्मचारी, अधिकारी उनकी जी भर के चापलूसी करके अपनी वफादारी साबित करने के भरपूर प्रयास करते रहते थे.
एक दिन उन्होंने एक थाली में कुछ वस्तुएं रख के उस थाली पर रुमाल ढँक दिया और सभी चापलूसों से पूछा की बताओ इस थाली में क्या है ..सभी चापलूस समवेत बोले ..हजूर इसमें गोल बैंगन हैं ..कलक्टर ने कहा बैंगन तो हैं पर गोल नहीं लम्बे वाले हैं . तो सब चापलूस बोले जी हाँ लम्बे वाले ही हैं ..अब कलक्टर को गुस्सा आया और बोला ..में जो कह रहा हूँ उसकी हाँ में हाँ क्यों मिला रहे हो अपनी भी तो राय दो ..इस पर सभी चापलूस बड़ी ही बेशर्मी से खिसिया कर बोले हजूर हम तो आपके पीछे हैं आप कहेंगे गोल हैं तो गोल ही होंगे और आप कहेंगे लम्बे हैं तो लम्बे ही होंगे ..इसे अंग्रेजी के सायीकोफेंसी कहते हैं ..
चापलूस तो आज के ज़माने की अधिसंख्य आबादी हो गई है ..किसी भी दफ्तर में चापलूसी करना आजकल शिस्टाचार और सदाचार की श्रेणी में आता है.. पर मुद्दे की बात तो ये की कौन सबसे बड़ा चापलूस और वफादार है ..इसको अपने बोस के आगे प्रमाणित करना सबसे अहम् कार्य है .. और आजकल रातदिन इसी की होड़ लगी रहती है ..
कोई अपने बोस के बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने आप को सबसे बड़ा चापलूस साबित करने का प्रयास करता है, तो कोई सब्जी तरकारी ला कर, तो कोई बोस के घर अपने गाँव से शुद्ध घी का डब्बा ला कर, तो कोई बिजली पानी के बिल जमा करवा के ..
में कभी कभी ये सोचता हूँ की अब किसी के माथे पर तो ये नहीं लिखा है की फलाना अपने बोस का सबसे लाडला वाफ्दर चापलूस है या ढिमका है..
और इसका समाधान ढूंढने के लिए में सोचता हूँ की अब ईश्वर को भी नहीं पता था की ग़ुलामी और शुद्रता के कलयुग में मापदंड ही बदल जायेंगे और मानव रूपी चापलूस प्राणी को अपनी चापलूसी और वफादारी को साबित करने के लिए कठिनाई आने लग जायेगी और इस कार्य में भी बनावटीपन और फर्जीवाडा होने की आशंका हो जायेगी ..क्योंकि बोस किसी के मन में क्या है ये तो नहीं जान सकते ..तो फिर असली चापलूस और वफादार कौन है है ये रहस्य आसानी से खुल नहीं पायेगा ..
मेरे मन में इसका समाधान सुझा वो ये था की अगर भगवान सबके पूंछ उगा दे तो इसका हल निकल आएगा ..भगवान नहीं भी उगा सके तो सभी चापलूस सर्जरी करवा कर पूंछ उगवा सकते हैं ..इससे फायदा ये होगा की सभी चापलूसों में पालतू कुत्तों के गुणधर्म विकसित हो जायेंगे.. दफ्तर में कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने और अच्छे कर्मयोगी चापलूसों का पता लगाने या उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी द्वारा पूंछ की सर्जरी के लिए मेडिकल एड भी दिए जाने का प्रावधान हो सकता है ..और पूंछ का घाव भरे तब तक के मेडिकल अवकाश की व्यवस्था भी ..इसके लिए अलग से हेड भी सृजित किया जा सकता है ..
सुबह दस बजे ज्योंही सभी बोस दफ्तर पहुंचेंगे सभी चापलूसों की पूंछे स्वत स्फूर्त यानि जिस प्रकार मालिक को देख कर कुत्ते की पूंछ स्वाभविक तौर पर हिलने लगती है उसी भाव से सभी चापलूसों की पूंछे भी हिलने लग जायेगी ..
इस स्वामिभक्त आचरण से सभी मालिक स्वत ही समझ जायेंगे की उनके समक्ष दूम हिलाने वाले चापलूस वास्तव में चापलूसी कर अपनी वफादारी का परिचय दे रहें हैं या नाटक कर रहें हैं ..
चापलूसी के इस अभिनव उपक्रम में जिसकी पूंछ सतत और तेजी से हिलती दुलती रहेगी वो उच्च स्तर का चापलूस प्रमाणित होगा..जिसे बोस दफ्तर के वार्षिक आयोजन पर अपने उल्लेखनीय कार्यों और नवाचार प्रयासों का उपयोग कर प्रगति कर दफ्तर को नवीनतम ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए पदोन्नत और सम्मानित कर सकेंगे..और जो सतत पूंछ हिलाने में असफल रहेंगे उनके बारे में ये मान लिया जाएगा की उनका आचरण दफ्तर के अनुशासन के विरुद्ध है इस कारण दफ्तर के कार्यों का नुकसान हुआ है अतः क्यों ना ऐसे कर्मियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए..
मुझे लगता है की इसके बाद सभी चापलूसों में इस बात की होड़ लग जायेगी की कौन कितनी देर तक अपनी पूंछ हिला कर बोस को अपनी चापलूसी और वफादारी का प्रमाण दे सकता है ..इस क्रम में कई चापलूस इस कार्य में इतने माहिर हो जायेंगे की उनको कई अन्य विभागों के बोस अपनी सरपरस्ती में लेने के लिए तेयार हो जायेंगे .
होगा ये की किसी कम्पनी के छोटे बोस के पास ज्यादा चापलूसी करने वाला चापलूस होगा तो बड़ा बोस अपने छोटे बोस से कहेगा ..यार शर्मा तेरा ये चापलूस तो बड़ी गज़ब की चापलूसी करता है यार ..अब देख ना में आधे घंटे से तेरे केबिन में बैठा हूँ ,,मेरे आते ही चाय नाश्ते का इंतजाम तो इसने किया ही पर इसने मेरे जूते उतार कर अपने रुमाल से चमकाए और तभी से लगातार अपनी पूंछ मेरे सामने हिला रहा है ..भई में तो इसकी चापलूसी का कायल हो गया ..में तेरे प्रमोशन का बंदोबस्त करवा देता हूँ तू मुझे तेरे इस चापलूस को मेरे यहाँ भेज दे ..अरे यार मेरे वाले को कोई तमीज़ ही नहीं है जब आता हु तो एक बार पूंछ हिला कर बेठ जाता है अरे भी कोई बात हुई ..पूंछ है किसलिए अरे भई अपने बोस को देख के हिलाने के लिए ही तो है..
कई चापलूस जो अपनी पत्नियों से थर्राते हैं उनकी तो डबल ड्यूटी हो जायेगी दफ्तर में बोस के आगे पूंछ हिलाओ तो घर जाते ही पत्नी के आगे ..
मुहल्ले की सभी पत्नियाँ जब कभी एक साथ बैठेंगी तो अपने अपने पतियों की पूंछ हिलाने की रफ्तार के बारे में चर्चा कर अभिभूत होंगी तो कोई अपने पति को कोसेगी की उसका पति बराबर पूंछ नहीं हिलाने के कारण टाइम से प्रमोशन नहीं पा सका ..
और आज के इस गला काट प्रतिस्पर्धा के समय में आप अगर कहीं टिक सकते हैं तो वो दो तरीकों से
पहला ये की आप इतने लायक हो की आपके आला अधिकारीयों को यानि बोस को आपकी योग्यता के आगे सभी नालायक लगे .
दूसरा तरीका ये है की आप अपने वरिस्ट जनों की इतनी चापलूसी, चमचागिरी करें की वो इसका लोह...ा मान जाएँ और उनको ये लगने लग जाए की दफ्तर में काम नहीं होगा तो चलेगा पर चापलूसी नहीं हुई तो कम्पनी डूब जायेगी .. यानि सारा नफा नुकसान चापलूसी पर निर्भर हो जाएँ
आपको वफादारी और चापलूसी के वो झंडे गाड़ने होंगे की सभी चापलूस आपकी चापलूसी और वफादारी के आगे मुहँ छुपाते फिरे ..
और
इस बात की आपसे ट्यूशन करने पर मजबूर हो जाएँ..
मेने चापलूसी के बारे में एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग कहीं पढ़ा था जो ...हमारे वर्तमान में सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अपने वरिस्ट जनों की चापलूसी करने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत है ..
बात अंग्रेजी शासन काल की है जब ..मध्यप्रदेश के किसी जिले में कोई अंग्रेज जिला कलक्टर हुआ करते थे ..सभी कर्मचारी, अधिकारी उनकी जी भर के चापलूसी करके अपनी वफादारी साबित करने के भरपूर प्रयास करते रहते थे.
एक दिन उन्होंने एक थाली में कुछ वस्तुएं रख के उस थाली पर रुमाल ढँक दिया और सभी चापलूसों से पूछा की बताओ इस थाली में क्या है ..सभी चापलूस समवेत बोले ..हजूर इसमें गोल बैंगन हैं ..कलक्टर ने कहा बैंगन तो हैं पर गोल नहीं लम्बे वाले हैं . तो सब चापलूस बोले जी हाँ लम्बे वाले ही हैं ..अब कलक्टर को गुस्सा आया और बोला ..में जो कह रहा हूँ उसकी हाँ में हाँ क्यों मिला रहे हो अपनी भी तो राय दो ..इस पर सभी चापलूस बड़ी ही बेशर्मी से खिसिया कर बोले हजूर हम तो आपके पीछे हैं आप कहेंगे गोल हैं तो गोल ही होंगे और आप कहेंगे लम्बे हैं तो लम्बे ही होंगे ..इसे अंग्रेजी के सायीकोफेंसी कहते हैं ..
चापलूस तो आज के ज़माने की अधिसंख्य आबादी हो गई है ..किसी भी दफ्तर में चापलूसी करना आजकल शिस्टाचार और सदाचार की श्रेणी में आता है.. पर मुद्दे की बात तो ये की कौन सबसे बड़ा चापलूस और वफादार है ..इसको अपने बोस के आगे प्रमाणित करना सबसे अहम् कार्य है .. और आजकल रातदिन इसी की होड़ लगी रहती है ..
कोई अपने बोस के बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने आप को सबसे बड़ा चापलूस साबित करने का प्रयास करता है, तो कोई सब्जी तरकारी ला कर, तो कोई बोस के घर अपने गाँव से शुद्ध घी का डब्बा ला कर, तो कोई बिजली पानी के बिल जमा करवा के ..
में कभी कभी ये सोचता हूँ की अब किसी के माथे पर तो ये नहीं लिखा है की फलाना अपने बोस का सबसे लाडला वाफ्दर चापलूस है या ढिमका है..
और इसका समाधान ढूंढने के लिए में सोचता हूँ की अब ईश्वर को भी नहीं पता था की ग़ुलामी और शुद्रता के कलयुग में मापदंड ही बदल जायेंगे और मानव रूपी चापलूस प्राणी को अपनी चापलूसी और वफादारी को साबित करने के लिए कठिनाई आने लग जायेगी और इस कार्य में भी बनावटीपन और फर्जीवाडा होने की आशंका हो जायेगी ..क्योंकि बोस किसी के मन में क्या है ये तो नहीं जान सकते ..तो फिर असली चापलूस और वफादार कौन है है ये रहस्य आसानी से खुल नहीं पायेगा ..
मेरे मन में इसका समाधान सुझा वो ये था की अगर भगवान सबके पूंछ उगा दे तो इसका हल निकल आएगा ..भगवान नहीं भी उगा सके तो सभी चापलूस सर्जरी करवा कर पूंछ उगवा सकते हैं ..इससे फायदा ये होगा की सभी चापलूसों में पालतू कुत्तों के गुणधर्म विकसित हो जायेंगे.. दफ्तर में कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने और अच्छे कर्मयोगी चापलूसों का पता लगाने या उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी द्वारा पूंछ की सर्जरी के लिए मेडिकल एड भी दिए जाने का प्रावधान हो सकता है ..और पूंछ का घाव भरे तब तक के मेडिकल अवकाश की व्यवस्था भी ..इसके लिए अलग से हेड भी सृजित किया जा सकता है ..
सुबह दस बजे ज्योंही सभी बोस दफ्तर पहुंचेंगे सभी चापलूसों की पूंछे स्वत स्फूर्त यानि जिस प्रकार मालिक को देख कर कुत्ते की पूंछ स्वाभविक तौर पर हिलने लगती है उसी भाव से सभी चापलूसों की पूंछे भी हिलने लग जायेगी ..
इस स्वामिभक्त आचरण से सभी मालिक स्वत ही समझ जायेंगे की उनके समक्ष दूम हिलाने वाले चापलूस वास्तव में चापलूसी कर अपनी वफादारी का परिचय दे रहें हैं या नाटक कर रहें हैं ..
चापलूसी के इस अभिनव उपक्रम में जिसकी पूंछ सतत और तेजी से हिलती दुलती रहेगी वो उच्च स्तर का चापलूस प्रमाणित होगा..जिसे बोस दफ्तर के वार्षिक आयोजन पर अपने उल्लेखनीय कार्यों और नवाचार प्रयासों का उपयोग कर प्रगति कर दफ्तर को नवीनतम ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए पदोन्नत और सम्मानित कर सकेंगे..और जो सतत पूंछ हिलाने में असफल रहेंगे उनके बारे में ये मान लिया जाएगा की उनका आचरण दफ्तर के अनुशासन के विरुद्ध है इस कारण दफ्तर के कार्यों का नुकसान हुआ है अतः क्यों ना ऐसे कर्मियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए..
मुझे लगता है की इसके बाद सभी चापलूसों में इस बात की होड़ लग जायेगी की कौन कितनी देर तक अपनी पूंछ हिला कर बोस को अपनी चापलूसी और वफादारी का प्रमाण दे सकता है ..इस क्रम में कई चापलूस इस कार्य में इतने माहिर हो जायेंगे की उनको कई अन्य विभागों के बोस अपनी सरपरस्ती में लेने के लिए तेयार हो जायेंगे .
होगा ये की किसी कम्पनी के छोटे बोस के पास ज्यादा चापलूसी करने वाला चापलूस होगा तो बड़ा बोस अपने छोटे बोस से कहेगा ..यार शर्मा तेरा ये चापलूस तो बड़ी गज़ब की चापलूसी करता है यार ..अब देख ना में आधे घंटे से तेरे केबिन में बैठा हूँ ,,मेरे आते ही चाय नाश्ते का इंतजाम तो इसने किया ही पर इसने मेरे जूते उतार कर अपने रुमाल से चमकाए और तभी से लगातार अपनी पूंछ मेरे सामने हिला रहा है ..भई में तो इसकी चापलूसी का कायल हो गया ..में तेरे प्रमोशन का बंदोबस्त करवा देता हूँ तू मुझे तेरे इस चापलूस को मेरे यहाँ भेज दे ..अरे यार मेरे वाले को कोई तमीज़ ही नहीं है जब आता हु तो एक बार पूंछ हिला कर बेठ जाता है अरे भी कोई बात हुई ..पूंछ है किसलिए अरे भई अपने बोस को देख के हिलाने के लिए ही तो है..
कई चापलूस जो अपनी पत्नियों से थर्राते हैं उनकी तो डबल ड्यूटी हो जायेगी दफ्तर में बोस के आगे पूंछ हिलाओ तो घर जाते ही पत्नी के आगे ..
मुहल्ले की सभी पत्नियाँ जब कभी एक साथ बैठेंगी तो अपने अपने पतियों की पूंछ हिलाने की रफ्तार के बारे में चर्चा कर अभिभूत होंगी तो कोई अपने पति को कोसेगी की उसका पति बराबर पूंछ नहीं हिलाने के कारण टाइम से प्रमोशन नहीं पा सका ..
Wednesday, March 2, 2011
राजस्थान की जन कल्याणकारी सरकारी की नीति . 87 % माल को 1 % उड़ा रहे हैं ,,, 13 माल आ रहा है 99 % आमजनता के ..वाह रे सामाजिक न्याय
राजस्थान के कुल बजट का 87 % भाग राज्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन या अन्य सुविधाओं में ही खर्च हो जाता है. बचे हुए 13 % भाग से राज्य का विकास कैसे हो. सीधी गणित ये है की एक तरफ राज्य की कुल आबादी के केवल 1 % कर्मचारी, नेता राज्य के सालाना बजट की 87 % राशी डकार रहें है वहीँ 99 % आमजन के हिस्से में केवल 13 % राशी आ रही है..अब इस हालत में कैसे गरीबी बेरोजगारी दूर हो कैसे मजदुर किसान खुश रहे.
राज्य की आबादी लगभग 6 करोड़ है इनमें से कर्मचारियों की संख्या महज 6 लाख है.
ये जनता के साथ धोखा है, ये सरकारी लुट है, हमने जिन्हें राज्य के खजाने की जिम्मेदारी दी वे ही उसमे सेंध लगा रहें हैं .इनको शर्म ही नहीं आ रही है ..
साल के कुल 365 दिनों में से ये कर्मचारी 183 दिन की छुट्टी की मौज भी उड़ा रहे हैं ..दफ्तरों में अधिकांश कर्मचारी काम से जी चुराते हैं और रिश्वत खाते हैं वो और अलग से जनता पर सितम है ..
राज्य की आबादी लगभग 6 करोड़ है इनमें से कर्मचारियों की संख्या महज 6 लाख है.
ये जनता के साथ धोखा है, ये सरकारी लुट है, हमने जिन्हें राज्य के खजाने की जिम्मेदारी दी वे ही उसमे सेंध लगा रहें हैं .इनको शर्म ही नहीं आ रही है ..
साल के कुल 365 दिनों में से ये कर्मचारी 183 दिन की छुट्टी की मौज भी उड़ा रहे हैं ..दफ्तरों में अधिकांश कर्मचारी काम से जी चुराते हैं और रिश्वत खाते हैं वो और अलग से जनता पर सितम है ..
Saturday, February 26, 2011
पतझड़ सावन बसंत बहार एक बरस के मोसम चार ,पांचवा मोसम प्यार का,
पतझड़ सावन बसंत बहार एक बरस के मोसम चार ,पांचवा मोसम प्यार का, बसंतोत्सव/ मदनोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ
आहा.... जेसे प्रतीत हो रहा है मदनोत्सव का ओपचारिक रूप से श्री गणेश हो चुका है ,,
इस गीत के मुखड़े ने जेसे प्रक्रति के सुन्दर अप्रितम नेसर्गिक सोंदर्य का बखान किया हो ... जो आजकल सुन्दर पोस्टरों में दिखाई देती है ,,असली का तो मानव ने बैंड बजा दिया ..सब पेड़ काट डाले और नदिया गन्दी कर दी और सुखा दी ..
आहा ..
सुविधाभोगी मनुष्य जिसे वातानुकूलित वातावरण में निवास करना पसंद है के लिए इस गीत के लेखक ने चारों ऋतुओं को प्यार के लायक नहीं समझा और अपनी तरफ से पांचवे मोसम का सृजन किया जो प्यार करने के लिए पूर्ण वातानुकूलित है ...जबकि ये ही चारों ऋतुये इस रूमानी ख्याल को मन में लाने की जिम्मेदार है ..
असली ऋतुएँ मानव के लालच मी भेंट चढ़ चुकी है ...आहा इसी कारण गीतकार ने पांचवी ऋतू का सर्जन किया है...
आहा ..... मन मयूर नाच उठा है ....
बसंत बहार सोसायटी की सभी सखियों के हर्दय मन ने मदनोस्तव को मनाने का निर्णय लिया ..
ये विचार आने के बाद सभी सखियों ने पीत वस्त्र धारण किये ..
वातानुकूलित फ्लेटों का तापक्रम एसी चलवा कर अनुकूल किया .. तदनुसार ..
एक सखी दूसरी सखी से बोली ,,है सखी इस ऋतू का यही तो आनंद है की न तो इसमें सर्दी लगती है और न ही गर्मी ..इसी कारण इसे महसूस करने के लिए एसी चलवाया है ..
(हकीकत में तो आजकल बसंत ऋतू में ही गर्मी के मारे पसीने छुट जाते है)
आहा ..पीत वस्त्र धारण कर सभी सखिया शोपिंग माल में भ्रमण कर रही है ताकि मदनोत्सव के इस रूमानी क्षण में अपने मनमीत को कोई उपहार देकर इसे अविस्मरनीय बनाया जा सके ..
आहा .. सभी ने इस समय की प्रासंगिकता को देखते हुए प्लास्टिक के पीले फूल वाले गुलदस्ते ख़रीदे ..जिनमे खुशबु का सर्वथा अभाव है पर उसके पीछे भावनाओं की खुशबु का समंदर ठाठे मार रहा है ..
उनके पति भी इस अवसर पर पीछे नहीं हैं उन्होंने इस समय को यादगार बनाने के लिए ..अपनी जीवन संगिनियों के लिए उपहार ख़रीदे हैं ..
अधिकांश सखियों ने सरसों के खेत वाले पोस्टर खरीदे हैं ताकि कमरे में लगा कर उत्सव को सजीव किया जा सके ..
असली सरसों के खेत में तो कुछ सखियों के पति जो प्रोपर्टी डीलर हैं उन्होंने प्लाट काट दिए इस कारण अब सरसों के खेत बड़ी बड़ी मल्टी स्टोरी बिल्डिंगों में बदल गए हैं ..
आहा ... जब असली सरसों के खेत थे तब भी इतना आनंद नहीं आता था ..क्योंकि कर्ज़ में डूबे किसानो को बसंत बहार काटने को दोड़ती थी .. पर जब से उन्होंने अपनी जमीन बेचीं और तब से वे भी इस उत्सव को जोरशोर से मना रहें हैं .. आहा सभी किसानों ने अपनी गायें भेंसे बेच दी है और देश की मुख्य धारा में आ गए हैं ...आहा और वे भी मुख्य धारा में हैं इसे साबित करने के लिए सभी ने अब पामेरियन कुत्ते खरीद लिए है ..
आहा .... कितना आनन्द आ रहा है इन कुत्तों के साथ प्रातकाल में भ्रमण करना ...आहा ..
कुछ किसानों ने इंटीरिअर डेकोरेसन की दुकाने खोल दी और वे नकली फूल बेच रहें हैं और असली फूलों से ज्यादा लाभ कमा रहें हैं ..
आहा ...मेरा मन मयूर भी इस उत्सव के प्रति आसक्त हो रहा है ..में भी अपनी जमीन किसी दलाल को बेच कर इस उत्सव में शामिल हो जाऊं ..
आहा ...भले ही खेत असली नहीं हो सरसों के फूल असली नहीं हो ....
आहा ..पर नोट असली है जिसके कारण बिना सरसों के खेत के ही इस मदनोत्सव का आनंद प्रतीत हो रहा है .. आहा कितना आसान है दलाली करना और कितना मुश्किल है खेती करना ..
आहा ...पांचवा मोसम प्यार का इंतज़ार का .. किसी दलाली का ..
आहा.... जेसे प्रतीत हो रहा है मदनोत्सव का ओपचारिक रूप से श्री गणेश हो चुका है ,,
इस गीत के मुखड़े ने जेसे प्रक्रति के सुन्दर अप्रितम नेसर्गिक सोंदर्य का बखान किया हो ... जो आजकल सुन्दर पोस्टरों में दिखाई देती है ,,असली का तो मानव ने बैंड बजा दिया ..सब पेड़ काट डाले और नदिया गन्दी कर दी और सुखा दी ..
आहा ..
सुविधाभोगी मनुष्य जिसे वातानुकूलित वातावरण में निवास करना पसंद है के लिए इस गीत के लेखक ने चारों ऋतुओं को प्यार के लायक नहीं समझा और अपनी तरफ से पांचवे मोसम का सृजन किया जो प्यार करने के लिए पूर्ण वातानुकूलित है ...जबकि ये ही चारों ऋतुये इस रूमानी ख्याल को मन में लाने की जिम्मेदार है ..
असली ऋतुएँ मानव के लालच मी भेंट चढ़ चुकी है ...आहा इसी कारण गीतकार ने पांचवी ऋतू का सर्जन किया है...
आहा ..... मन मयूर नाच उठा है ....
बसंत बहार सोसायटी की सभी सखियों के हर्दय मन ने मदनोस्तव को मनाने का निर्णय लिया ..
ये विचार आने के बाद सभी सखियों ने पीत वस्त्र धारण किये ..
वातानुकूलित फ्लेटों का तापक्रम एसी चलवा कर अनुकूल किया .. तदनुसार ..
एक सखी दूसरी सखी से बोली ,,है सखी इस ऋतू का यही तो आनंद है की न तो इसमें सर्दी लगती है और न ही गर्मी ..इसी कारण इसे महसूस करने के लिए एसी चलवाया है ..
(हकीकत में तो आजकल बसंत ऋतू में ही गर्मी के मारे पसीने छुट जाते है)
आहा ..पीत वस्त्र धारण कर सभी सखिया शोपिंग माल में भ्रमण कर रही है ताकि मदनोत्सव के इस रूमानी क्षण में अपने मनमीत को कोई उपहार देकर इसे अविस्मरनीय बनाया जा सके ..
आहा .. सभी ने इस समय की प्रासंगिकता को देखते हुए प्लास्टिक के पीले फूल वाले गुलदस्ते ख़रीदे ..जिनमे खुशबु का सर्वथा अभाव है पर उसके पीछे भावनाओं की खुशबु का समंदर ठाठे मार रहा है ..
उनके पति भी इस अवसर पर पीछे नहीं हैं उन्होंने इस समय को यादगार बनाने के लिए ..अपनी जीवन संगिनियों के लिए उपहार ख़रीदे हैं ..
अधिकांश सखियों ने सरसों के खेत वाले पोस्टर खरीदे हैं ताकि कमरे में लगा कर उत्सव को सजीव किया जा सके ..
असली सरसों के खेत में तो कुछ सखियों के पति जो प्रोपर्टी डीलर हैं उन्होंने प्लाट काट दिए इस कारण अब सरसों के खेत बड़ी बड़ी मल्टी स्टोरी बिल्डिंगों में बदल गए हैं ..
आहा ... जब असली सरसों के खेत थे तब भी इतना आनंद नहीं आता था ..क्योंकि कर्ज़ में डूबे किसानो को बसंत बहार काटने को दोड़ती थी .. पर जब से उन्होंने अपनी जमीन बेचीं और तब से वे भी इस उत्सव को जोरशोर से मना रहें हैं .. आहा सभी किसानों ने अपनी गायें भेंसे बेच दी है और देश की मुख्य धारा में आ गए हैं ...आहा और वे भी मुख्य धारा में हैं इसे साबित करने के लिए सभी ने अब पामेरियन कुत्ते खरीद लिए है ..
आहा .... कितना आनन्द आ रहा है इन कुत्तों के साथ प्रातकाल में भ्रमण करना ...आहा ..
कुछ किसानों ने इंटीरिअर डेकोरेसन की दुकाने खोल दी और वे नकली फूल बेच रहें हैं और असली फूलों से ज्यादा लाभ कमा रहें हैं ..
आहा ...मेरा मन मयूर भी इस उत्सव के प्रति आसक्त हो रहा है ..में भी अपनी जमीन किसी दलाल को बेच कर इस उत्सव में शामिल हो जाऊं ..
आहा ...भले ही खेत असली नहीं हो सरसों के फूल असली नहीं हो ....
आहा ..पर नोट असली है जिसके कारण बिना सरसों के खेत के ही इस मदनोत्सव का आनंद प्रतीत हो रहा है .. आहा कितना आसान है दलाली करना और कितना मुश्किल है खेती करना ..
आहा ...पांचवा मोसम प्यार का इंतज़ार का .. किसी दलाली का ..
है देवियों और सज्जनों ...गरीबी कायम रहे ..तभी पुण्य का प्रताप रहेगा
है देवियों और सज्जनों ....
शास्त्रों में वर्णित है की ...
विद्यादान महादान ...अर्थात ..समाज में ...मूर्खों का कायम रहना आवशयक है ताकि इस पुण्य का लाभ अर्जित किया जा सके .
वस्त्रदान महादान ,,,.अर्थात ..समाज में नंगों और फकीरों का कायम रहना आवशयक है ताकि इस पुण्य का लाभ अर्जित किया जा सके .
अन्नदान महादान ,,,.अर्थात ..समाज में भूखों का कायम रहना आवशयक है ताकि इस पुण्य का लाभ अर्जित किया जा सके .
अर्थात ...
गरीबी विद्यमान रहेगी तभी पुण्य का प्रताप रहेगा .. ये चिंता की बात नहीं है ये पुण्य करने का सुअवसर है ..
गरीबी कायम रहे ..
ये हमारे देश की कंगाली ,तंगहाली और गरीबी का ही प्रताप है जिसके कारण सरकार कई प्रकार की योजनाये चला रही है ताकि चपरासी की जेब, बाबु की टेबल की दराज, अफसर की तिजोरी और नेता का लोकर और स्विस बैंक भर सके ..
हमारे ये सभी जनसेवक गरीबों की सेवा करने के लिए रात-दिन प्रयत्नशील हैं ,,इनके अनुपम प्रयासों के कारण ही गरीबी बनी हुई है और इन्हें दरिद्र नारायण की सेवा करने का सुअवसर मिला हुआ है ..
में कभी कभी चिंतित हो उठता हूँ की कभी गरीब नहीं रहे तो इस पुण्य का लाभ केसे अर्जित करेंगे .?
मुझे चिंतित देख हमारे माननीय ने कहा चिंता की बात नहीं हमने इस प्रकार की व्यवस्था कर रखी है गरीबी कभी दूर नहीं होगी.... और जब तक चाँद और सूरज हैं इस पुण्य का लाभ हमें मिलता रहेगा और हमारा इस लोक के साथ साथ परलोक भी सुधरता रहेगा ..
दरिद्र नारायण हमारे देश में बहुताय में पाया जाने वाला जंतु है ,,इस प्रजाति के जंतु अन्य देशों में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में नहीं पाए जाते हैं... इसी कारण इसके दर्शन लाभ लेने के लिए विदेशी जातरू भी हमारे देश में समय समय पर आते रहते हैं .. इनकी इतनी भारी संख्या होने का मुख्य कारण यहाँ की इनके कायम रहने वाली अनुकूल आर्थिक और सामाजिक परिस्थतियाँ हैं जो अन्य देशों में पाई नहीं जाती ... इस प्रकार ये जंतु इस विशाल अभ्यारण्य में निडर हो कर विचरण करते हैं ....
विदेशी जातरू भी पुण्य कमाने के लिए दरिद्र नारायण की दान पेटी में चढावा चढाते हैं ....इन दान पेटियों के तालों की चाबियाँ सरकारी पंडो के जिम्मे रहती है
जिस प्रकार भगवान के मंदिर का चढावा खाने से सभी पण्डे गोलमटोल और फुल कर कुप्पे बने रहते हैं और उनके मुखमंडल पर सदेव प्रसन्नता और संतोष के भाव रहते हैं ठीक उसी भांति दरिद्र नारायण का चढावा खाने से यही भाव सरकारी पंडो के मुखमंडल पर रहते हैं ..
हमारे देश के दरिद्र नारायण की ये विशेषता है की वो संकट में भी हँसता रहता है और गरीब होने का दोष सरकार को नहीं देता, वो किस्मत को देता है जो की उसकी फूटी हुई है और जब कभी वो सरकार को उसकी फूटी किस्मत दिखाता है, सरकार उसको रिपेयर करने के असफल प्रयास करती रहती है .. और वो इन असफल प्रयत्नों से ही अभिभूत रहता है की सरकार उनका विकास कर रही है ..
मेने इस बार 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस पर बच्चों में बांटी जाने वाली मिठाई के टोकरे में हलवाई की दुकान पर ही सरकारी पण्डे को मुहँ मारते देखा तब मेरा विश्वास और भी पक्का हो गया की गरीबी कायम रहेगी ताकि सतत रूप से पुण्य अर्जित किया जा सके क्योंकि पुण्य कमाने के आशार्थी सरकारी पण्डे छोटे से छोटा अवसर भी नहीं चुक रहे हैं ..
क्या आप नहीं कमाना चाहेंगे पुण्य के प्रताप का लाभ उठाना ..
शास्त्रों में वर्णित है की ...
विद्यादान महादान ...अर्थात ..समाज में ...मूर्खों का कायम रहना आवशयक है ताकि इस पुण्य का लाभ अर्जित किया जा सके .
वस्त्रदान महादान ,,,.अर्थात ..समाज में नंगों और फकीरों का कायम रहना आवशयक है ताकि इस पुण्य का लाभ अर्जित किया जा सके .
अन्नदान महादान ,,,.अर्थात ..समाज में भूखों का कायम रहना आवशयक है ताकि इस पुण्य का लाभ अर्जित किया जा सके .
अर्थात ...
गरीबी विद्यमान रहेगी तभी पुण्य का प्रताप रहेगा .. ये चिंता की बात नहीं है ये पुण्य करने का सुअवसर है ..
गरीबी कायम रहे ..
ये हमारे देश की कंगाली ,तंगहाली और गरीबी का ही प्रताप है जिसके कारण सरकार कई प्रकार की योजनाये चला रही है ताकि चपरासी की जेब, बाबु की टेबल की दराज, अफसर की तिजोरी और नेता का लोकर और स्विस बैंक भर सके ..
हमारे ये सभी जनसेवक गरीबों की सेवा करने के लिए रात-दिन प्रयत्नशील हैं ,,इनके अनुपम प्रयासों के कारण ही गरीबी बनी हुई है और इन्हें दरिद्र नारायण की सेवा करने का सुअवसर मिला हुआ है ..
में कभी कभी चिंतित हो उठता हूँ की कभी गरीब नहीं रहे तो इस पुण्य का लाभ केसे अर्जित करेंगे .?
मुझे चिंतित देख हमारे माननीय ने कहा चिंता की बात नहीं हमने इस प्रकार की व्यवस्था कर रखी है गरीबी कभी दूर नहीं होगी.... और जब तक चाँद और सूरज हैं इस पुण्य का लाभ हमें मिलता रहेगा और हमारा इस लोक के साथ साथ परलोक भी सुधरता रहेगा ..
दरिद्र नारायण हमारे देश में बहुताय में पाया जाने वाला जंतु है ,,इस प्रजाति के जंतु अन्य देशों में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में नहीं पाए जाते हैं... इसी कारण इसके दर्शन लाभ लेने के लिए विदेशी जातरू भी हमारे देश में समय समय पर आते रहते हैं .. इनकी इतनी भारी संख्या होने का मुख्य कारण यहाँ की इनके कायम रहने वाली अनुकूल आर्थिक और सामाजिक परिस्थतियाँ हैं जो अन्य देशों में पाई नहीं जाती ... इस प्रकार ये जंतु इस विशाल अभ्यारण्य में निडर हो कर विचरण करते हैं ....
विदेशी जातरू भी पुण्य कमाने के लिए दरिद्र नारायण की दान पेटी में चढावा चढाते हैं ....इन दान पेटियों के तालों की चाबियाँ सरकारी पंडो के जिम्मे रहती है
जिस प्रकार भगवान के मंदिर का चढावा खाने से सभी पण्डे गोलमटोल और फुल कर कुप्पे बने रहते हैं और उनके मुखमंडल पर सदेव प्रसन्नता और संतोष के भाव रहते हैं ठीक उसी भांति दरिद्र नारायण का चढावा खाने से यही भाव सरकारी पंडो के मुखमंडल पर रहते हैं ..
हमारे देश के दरिद्र नारायण की ये विशेषता है की वो संकट में भी हँसता रहता है और गरीब होने का दोष सरकार को नहीं देता, वो किस्मत को देता है जो की उसकी फूटी हुई है और जब कभी वो सरकार को उसकी फूटी किस्मत दिखाता है, सरकार उसको रिपेयर करने के असफल प्रयास करती रहती है .. और वो इन असफल प्रयत्नों से ही अभिभूत रहता है की सरकार उनका विकास कर रही है ..
मेने इस बार 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस पर बच्चों में बांटी जाने वाली मिठाई के टोकरे में हलवाई की दुकान पर ही सरकारी पण्डे को मुहँ मारते देखा तब मेरा विश्वास और भी पक्का हो गया की गरीबी कायम रहेगी ताकि सतत रूप से पुण्य अर्जित किया जा सके क्योंकि पुण्य कमाने के आशार्थी सरकारी पण्डे छोटे से छोटा अवसर भी नहीं चुक रहे हैं ..
क्या आप नहीं कमाना चाहेंगे पुण्य के प्रताप का लाभ उठाना ..
कुत्ता विहीन क़स्बा
हमारे कसबे की नगरपालिका ने निर्णय लिया है की पुरे कसबे को जल्दी ही कुत्ता विहीन कर देगी. यानि अब कुछ समय बाद पुरे कस्बे के सभी कुत्ते गधे के सींग की भांति कस्बे से गायब हो जायेंगे .. उक्त कुत्ता पकड़ो अभियान पशुपालन विभाग की सहायता से चलाया जाएगा.जो पकडे गए सभी नर कुत्तों की नसबंदी करके जंगल में छोड़ देंगे..
उक्त निर्णय कहने को तो कस्बे में कुत्तों की दादागिरी और मनमानी के चलते गणमान्य नागरिकों के बार बार नगरपलिका को आग्रह करने के बाद लिया गया.
इस बारे में इन गणमान्यों का कहना है की इन कुत्तों ने पुरे कस्बे का वातावरण बिगाड़ रखा है कई राहगीरों को काट खाया है. पर मुझे हमारे माननीय महोदय जी के एक मुहँ लगे चमचे ने कान में बताया की माननीय के एक रिश्तेदार को इनके घर आते समय रात को एक कुत्ते ने काट खाया, इसलिए माननीय जी ने कुत्तों का इस कस्बे से नामोनिशान मिटा देने की कसम खाई है..
में समझ गया की रात को देर से माननीय जी का रिश्तेदार इनके घर आया होगा तो गली के कुत्तों ने उसको काला चोर समझ के काट खाया होगा..
खेर कारण जो भी हो पर इस निर्णय से मुझे बड़ी चिंता हुई की कुता विहीन कस्बा तो बड़ा ही अजीब हो जाएगा...
सबसे पहला संकट तो मेरे सामने ही खड़ा हो जाएगा ...में प्रय्तेक मंगलवार हनुमान जी का व्रत रखता हूँ. व्रत खोलने के बाद में कुत्ते को रोटी डालता हूँ ऐसा करने के लिए पंडित ने मुझे ताकीद किया है..मेरे मुहल्ले की कई धार्मिक प्रवर्ती की महिलाएं विभिन्न वर त्योहारों पर व्रत रखती है और कुत्तों को रोटी खिलाती है...
कुत्ते भी ज्योंही व्रत खोलने का समय होता है और वे अपने तयशुदा घरों के सामने जाकर दूम हिलाने लग जाते हैं. महिलाएं भी पुण्य का लाभ अर्जित करने के लिए कुत्तों को बड़े ही प्रेम से रोटी खिलाती है ,,
कहते हैं इन्सान का सबसे अच्छा और वफादार मित्र कुत्ता ही होता है..और कुत्ते भी इसे समय समय पर रात को किसी आशंका या चोरों के आने पर जोर जोर से भोंक कर अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं..
मेने माननीय जी के चमचे से पूछा भाई ये तो बताओ केवल सर्वहारा कुत्तों (परम आदरणीय हरिशंकर जी परसाई ने अपने प्रसिद्ध व्यंग एक मध्यवर्गीय कुत्ते में इसका उल्लेख किया था) यानि सडकिया कुत्तों को ही पकड़ा जाएगा या घरों में निवास करने वाले सुविधासंपन्न कुत्तों को भी पकड़ा जायेगा.
उन्होंने उत्तर दिया..महाशय आप भी कमाल की बात करते हैं, अरे भई..जो पालतू कुत्ते हैं उनको थोड़े ही पकड़ेंगे.. मेने सोचा आजकल किसी का भी पालतू बन जाओ तो कोई नहीं पकड़ेगा ..मुझे अच्छी तरह याद है माननीय जी के एक परम पिट्ठू पालतू चमचे के मंजले छोकरे को कालेज जाती छोकरी को छेड़ने के आरोप में पुलिस ने धर लिया तो उनके एक फोन पर छोड़ दिया और उलटे उस लड़की को लताड़ पिलाई की इतने बदन दिखाऊ वस्त्र धारण कर सडक पर निकलोगी तो कोई छेड़ेगा नहीं तो क्या करेगा ,,,लड़की बेचारी रुआंसी हो गई और उसके बाप ने भी इज्जत बचाने के चक्कर में बात आगे नहीं बढाई..
में कुत्ता विहीन कस्बे के भविष्य के बारे में गंभीर हो कर सोचने लगा की अब तक तो जब कभी रात को चोर आते हैं तो पहले सडक के कुत्ते भोंकते हैं और इनकी आवाज़ में फिर ये घरों में रहने वाले सुविधा सम्पन्न कुत्ते भी सुर मिलाते हैं ..असल में अगर सडक के कुत्ते नहीं भोंके तो ये तो अपने बिस्तेर में ही पड़े रहे और आये दिन घरों में चोरियां होती रहे.. अब ना जाने क्या होगा ..? हमे सडक के कुत्तों का शुक्रिया अदा करना चहिए की उनके कारण अभी तक कई घर चोरों से बचे रहें हैं..
कुत्ता विहीन कस्बा कितना अजीब लगेगा ..
में आये दिन देखता हूँ की कभी हमारे बाजू वाले मुहल्ले का कोई कुत्ता हमारे मुहल्ले में आ जाता है तो सभी कुत्ते संगठित होकर उसपर हमला कर देते हैं और उसे सीमापार खदेड़ कर ही दम लेते हैं ..उनके इस कार्य को देख कर मेने कई बार सोचा की ये जितने अपने मुहल्ले की सीमाओं की रखवाली अपना परम कर्तव्य समझ के करते हैं उसकी आधी भी अगर हमारे देश की सीमा पर तेनात सिपाही करे तो देश में आतंकवादी नहीं घुस पायेंगे..
मुहल्ले के सभी कुत्ते मुहल्ले की सीमाओं की रक्षा रात और दिन चाक चौबंद हो कर ड्यूटी बदल -बदल कर करते हैं ..गोया ये की दुश्मन किसी भी सूरत में अंदर ना आने पायें ..ये अपने मुहल्ले की संप्रभुता को अक्षुण बनाये के लिए सदेव तत्पर रहते हैं ..
सुबह सुबह सभी कुत्ते कुश्ती लड़ते हैं, दौड़ लगते हैं ,,व्यायाम करते हैं और हमे हमारे स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने का सन्देश देते हैं ..
आत्मरक्षा करने के नायब तरीके कोई इनसे सीखे ..में सर्दी के दिनों में अक्सर देखता हूँ की कुत्ते हमारे मुहल्ले की होटलों और ढाबों की भट्टियों से सुबह सुबह अपने बदन से राख झाड़ते हुए निकलते हैं ,,,ये उनका सर्दी से बचने का अपना इजाद किया हुआ तरीका है ..
ये सफाई पसंद भी बहुत है कई बार कोई जानवर सडक पर मर जाता है तो मुन्सीपालटी से मृत जानवर उठाने वाली गाड़ी आये उसे पहले ये उसकी दावत उड़ा जाते हैं ..हम इस बारे में सोचते भी हैं की अगर कुत्ते नहीं हो तो पूरा क़स्बा सड़ने लग जाए ..
मुझे कई बाते कुत्तों के सम्बन्ध में याद आ रही है ..की अगर हमारे समाज में कुत्ते नहीं हो तो मानव का जीवन संकट में पड़ जाएगा .....
सड़क छाप कुत्तों का अपना महत्त्व है इनका निस्वार्थ भाव से सामाजिक सेवा में पूरा योगदान है ..
आपका का क्या विचार है इस बारे में आपकी राय आमंत्रित है ...
मेरा संस्कारित मध्यवर्गीय सपना
जीवन में सफल होना सबका सपना होता है ,,मेरा भी है ..
सपने भी बड़े ही वर्गीय होते हैं...अमीर का सपना अलग होता है वहीँ गरीब का अलग
अंधे का सपना आँख मिल जाने का होता है ..ये अलग बात है की आंख मिल जाने के बाद वो संतोष से रह पायेगा या वो नए सपने देखने लग जाएगा ..कई बार उसकी नींद हराम होने का भी कारक हो सकते हैं ..
मध्यवर्ग के सपनों का वर्ग भी अलग दृष्टीकोण का होता है .. वो आमतौर पर डाक्टर इंजिनियर टीचर एकाउंटेंट आदि बनने के सपने पालता है ..
कुवारी कन्या अच्छे वर का सपना देखती है इसकी चाहत इतनी प्रबल होती है की कई बार उस सपने को माँ बाप की अनुमति के पूर्व ही साकार कर लेती है ..
उसके लिए सोमवार का व्रत रखती है .उसका और उसके माता पिता का यही सपना होता है की वो संभावित वर सारी बलाएँ अपने सर ओढ़ ले ..
नेता टिकट मिलने का टिकट मिलने पर चुनाव जितने का चुनाव जितने के बाद मंत्री पद मिलने का और मंत्री पद मिलने के बाद चुनाव में जितने में खर्च हुए धन की वसूली केसे हो तथा कमीशन और कमसिन का जुगाड़ कैसे हो इसके सपने देखता है ...
सपने के एक अच्छी बात ये होती है की उसे देखने का पैसा नहीं लगता इसलिए कोई भी परंपरागत कंगाल भी किसी भी प्रकार के सपने देखने के लिए स्वतंत्र है ...और यही हमारे लोकतंत्र का मूलमंत्र है.. हम स्वतंत्र हैं इसका सही आभास सपने में ही होता है ...हमारे माननीय भी हमे राष्ट्र निर्माण के सपने देखने के लिए प्रेरित करते रहते हैं ... हम राष्ट्र निर्माण के सपने देखते हैं तब तक हमारे माननीय उनके लिए घरों बंगलों और हवेलियों का निर्माण कर लेतें है ..
यानि जनता बिना छेद वाली चुसनी इस आशा में चूसती रहती है की कभी रस आएगा पर रस उपर से ही चूस लिया जाता है ..
में भी सपने देखता रहता हूँ और इसका में भयंकर रूप से आदि हूँ .. मेने अपने जीवन कई प्रकार के सपने देखे हैं...में अक्सर जल्दी करोडपति बनने के सपने देखता हूँ ..और इसे साकार करने के लिए प्रयत्नशील भी हूँ ..मेरे कुछ मित्र इसे साकार करने में सफल हुए हैं ...
पर मेरा ये सपना साकार अभी तक साकार नहीं हुआ..
,,उसका मुख्य कारण मेरे मध्यवर्गीय संस्कार जो मुझे घोषित, अधिकारित, और व्यवसायिक तौर पर बेईमान नहीं बनने देते ..में इन कथित संस्कारों को छोड़ कर धनवान बनना चाहता हूँ और इसके लिए थोडा बेईमान भी बनने के लिए तत्पर हूँ , पर ये संस्कार मेरे साथ साए की तरह हमेशा रहते हैं ..
मेने कई बार सोचा की पैसा कमाने के लिए कोई छोटा मोटा चिंदी चोर ही बन जाऊं ...इसलिए रात को एक दो बार मेने एक दो मकानों में भी झाँका की कोई माल हो तो ले उड़ू..पर अन्दर बंधे पालतू कुत्ते ने जब मुझे घुर कर देखा तो मेरी हिम्मत पस्त हो गई और चोर बनने का ख्याल त्याग दिया ..
मुझे इस बात का ज्ञान है और मेरा अर्थशास्त्र कहता है की जिन घरों में विदेशी नस्ल के कुत्ते होते हैं ..उन्ही घरों में माल होने की सम्भावना ज्यादा होती है ..भारत के बिना कुत्तो वाले घरों में तो कई बार आटे के डब्बे भी खाली मिलते है ..और इसी कारण इस प्रकार के घरों के मालिक बड़े ही धार्मिक प्रवर्ती के होते है क्योंकि आधे से उपवास रखने से अनाज कम खत्म होता है ..हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी उपवास रखने के लिया आव्हान किया था ..
गाँधी जी को तो पता था की देश चोट्टो के हाथों में जा रहा है इसलिए जनता आधे समय भूखे मरेगी..इसीलिए उन्होंने देश की जनता को पहले से ही उपवास का मानव जीवन में कितना महत्त्व है बता दिया था ..
मेने सफल होने के और भी प्रयास किये ...मेने एक बार एक आदमी को नोकरी लगाने का गच्चा देकर कुछ राशी झटक ली ...थोड़े दिन इंतजार करने के बाद वो एक दिन घर आ गया ...
मेने मेरे लड़के से कहा ..जा उसको बोल दे में घर नहीं हूँ ....लड़का भी आखिर मेरी ही ओलाद ..उसने उन महाशय से कहा पापा घर नहीं है ..तो उसने कहा तो फिर तुम्हारे पापा कहाँ है ..? मेरे सुपुत्र ने कहा जी वो घर में है ..मेने अपना माथा पीट लिया ...
में झूठ भी ढंग से नहीं बोल सकता झूठ बोलू तो काला कोवा काटे उससे पहले तो मेरी दिल की धड़कन तेज हो जाती है ...और गला खुश्क हो जाता है ...और सामने वाला एक मिनट में ताड़ जाता है .. और काटने के लिए कोवे की जरुरत ही नहीं रहती ..
एक बार मुझे सिनेमा में दो लुच्चों ने रगड़ दिया ..कारण ये की वो एक अति सुन्दर महिला के साथ संस्क्रती के विरुद्ध आचरण कर रहे थे ...मेने मना किया तो ....
कुछ लोग बोले भई एक दो तो तुम भी जमाते ..मेने कहा अरे वो तो में उनको छटी का दूध याद दिला देता पर में झगड़ा नहीं बढ़ाना चाहता था ..असल में मेरी हिम्मत ही नहीं है झगड़ा करने ..बस यूँही शेखी बघार रहा था ..ताकि मेरी कथित इज्ज़त बची रहे ..
कुल जमा बात ये की में भी उन मध्यवर्गीय लोगो में से हूँ जो अपनी ठुकाई हो जाए तो भी संस्कारवान होने का बहाना कर लेते हैं ..और घर आ जाते है और सूजे हुए थोबड़े के बारे में बाइक से नीचे गिरने का कारण बता देते हैं .. खेर जो भी अपनी इज्ज़त और संस्कृति बचाने में जरुर सफल हूँ ..हांलाकि इससे मुझे घाटा होता है ...पिता जी ने इज्ज़त रूपी बैल की पूंछ पकड़ा दी उसे छोड़ नहीं सकता चाहे वो मुझे जब चाहे घसीटे ..यही मेरी विरासत है ...
दुकान पर सामन लेने जाता हूँ दुकानदार खुल्ले नहीं होने का बहाना कर माचिस और टॉफी पकड़ा देता है ,,,विरोध करने पर वो मुझे घूर कर देखता है ..में चुपचाप रवाना हो जाता हूँ ..
केवल सपने देखता हूँ और खुश रहता हूँ ..
ख्याली घोड़े दोड़ा कर ही संतोष में हूँ .. दफ्तर के लोग जब कभी हड़ताल करते हैं में जुलुस में सबसे पीछे रहता हूँ ताकि कोई देख नहीं ले ...
एक बार तो मुझे डाकू बनने का ख्याल आया ...पर एक दिन टीवी पर एक डाकू का एनकाउंटर देखा जिसमे वो सडक पर मरे कुत्ते की तरह पड़ा था ..तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई ...
में अपने जीवन में सफल होने के लिए तय ही नहीं कर पाया की क्या करूँ ..मेरा मन था की में गायक बनू तो पिताजी ने कहा ..भांड बनोगे ..इतने कुलीन घराने के हो कर ऐसे सोचते हो ....
फिर ध्यान में आया की आजकल खिलाडी रातो रात अमीर बन रहे हैं ..तो मेने क्रिकेट खेलना शुरू किया ..तो पिताजी ने कहा ये धोबी का धोवना छोड़ो और पढाई करो ..
एक लड़की सामने वाले घर में रहती थी मुझे देख कर वो मुस्कराती थी ...अब मुझे ये पता नहीं था की वो मेरी मुर्खता या लल्लूपन पर मुस्कराती है या मुझ पर आसक्ति से मुस्कराती है ...
में डर और झिझक के मारे उससे कभी पूछ ही नहीं पाया ..मुझे याद है की एक बार मेरे मुहल्ले के एक शोहदे ने एक कन्या का रास्ते में हाथ पकड़ कर प्रेम निवेदन किया ..उसे ऐसा करते कुछ लोंगो ने देख लिया ..उन्होंने उसकी वो धुनाई की ..बस पूछो मत ..वो मंज़र मुझे आज भी ताज़ा था ..और ये ताज़ा ही रहा और लड़की की शादी हो गई ..
खेर शादी मेरी भी हुई और भाग्य से पत्नी भी सुन्दर मिली ...संस्कारों के कारण नहीं बल्कि उसे कोई टपोरी छेड़े नहीं ,या कोई सज्जन घूरे नहीं में बाहर कम ही लेजाता हूँ ..
आजकल शराफत के भी पैमाने बदल गए हैं ...इस कारण कोई भी व्यक्ति किसी सुन्दर महिला को घूरे तो इसे बुरा नहीं माना जाता ..घूरने का अधिकार तो आजकल शास्वत हो गया है ..सभी घूरते हैं
छेड़ना टपोरी का काम है ..और ये संख्या भी बहुताय में हो गई है ..
एक बार एक सज्जन ने मेरी पत्नी को घूरा.. मेने कहा उधर मत देखो ...पत्नी बोली घूर ही तो रहा है ...मेने सोचा कल को कोई टपोरी छेड़ेगा तो कह देगी छेड़ ही तो रहा है ..बलात्कार तो नहीं कर रहा है ..पर में संस्कार वान हूँ इसलिए चुपचाप उसे घर ले आया ...और शुक्र मनाया की ..तीसरे प्रकार की दुर्घटना नहीं हुई ...अन्यथा
मेरे संस्कारों का जुलुस निकल जाता ..
कुल मिला कर मेने घर की इज्ज़त बचाने के लिए अपने सभी सपनो को कुर्बान कर दिया ,,,जब भी किसी सपने को साकार करने आगे कदम बढ़ाता तो ..मेरे संस्कार मुझे रोक लेते ..
में अपने जीवन में ना घोडा बन सका ...और ना ही गधा बन सका ... दिन में संस्कार साए की तरह साथ में रहते हैं और रात में सपने बन कर ....
सपने भी बड़े ही वर्गीय होते हैं...अमीर का सपना अलग होता है वहीँ गरीब का अलग
अंधे का सपना आँख मिल जाने का होता है ..ये अलग बात है की आंख मिल जाने के बाद वो संतोष से रह पायेगा या वो नए सपने देखने लग जाएगा ..कई बार उसकी नींद हराम होने का भी कारक हो सकते हैं ..
मध्यवर्ग के सपनों का वर्ग भी अलग दृष्टीकोण का होता है .. वो आमतौर पर डाक्टर इंजिनियर टीचर एकाउंटेंट आदि बनने के सपने पालता है ..
कुवारी कन्या अच्छे वर का सपना देखती है इसकी चाहत इतनी प्रबल होती है की कई बार उस सपने को माँ बाप की अनुमति के पूर्व ही साकार कर लेती है ..
उसके लिए सोमवार का व्रत रखती है .उसका और उसके माता पिता का यही सपना होता है की वो संभावित वर सारी बलाएँ अपने सर ओढ़ ले ..
नेता टिकट मिलने का टिकट मिलने पर चुनाव जितने का चुनाव जितने के बाद मंत्री पद मिलने का और मंत्री पद मिलने के बाद चुनाव में जितने में खर्च हुए धन की वसूली केसे हो तथा कमीशन और कमसिन का जुगाड़ कैसे हो इसके सपने देखता है ...
सपने के एक अच्छी बात ये होती है की उसे देखने का पैसा नहीं लगता इसलिए कोई भी परंपरागत कंगाल भी किसी भी प्रकार के सपने देखने के लिए स्वतंत्र है ...और यही हमारे लोकतंत्र का मूलमंत्र है.. हम स्वतंत्र हैं इसका सही आभास सपने में ही होता है ...हमारे माननीय भी हमे राष्ट्र निर्माण के सपने देखने के लिए प्रेरित करते रहते हैं ... हम राष्ट्र निर्माण के सपने देखते हैं तब तक हमारे माननीय उनके लिए घरों बंगलों और हवेलियों का निर्माण कर लेतें है ..
यानि जनता बिना छेद वाली चुसनी इस आशा में चूसती रहती है की कभी रस आएगा पर रस उपर से ही चूस लिया जाता है ..
में भी सपने देखता रहता हूँ और इसका में भयंकर रूप से आदि हूँ .. मेने अपने जीवन कई प्रकार के सपने देखे हैं...में अक्सर जल्दी करोडपति बनने के सपने देखता हूँ ..और इसे साकार करने के लिए प्रयत्नशील भी हूँ ..मेरे कुछ मित्र इसे साकार करने में सफल हुए हैं ...
पर मेरा ये सपना साकार अभी तक साकार नहीं हुआ..
,,उसका मुख्य कारण मेरे मध्यवर्गीय संस्कार जो मुझे घोषित, अधिकारित, और व्यवसायिक तौर पर बेईमान नहीं बनने देते ..में इन कथित संस्कारों को छोड़ कर धनवान बनना चाहता हूँ और इसके लिए थोडा बेईमान भी बनने के लिए तत्पर हूँ , पर ये संस्कार मेरे साथ साए की तरह हमेशा रहते हैं ..
मेने कई बार सोचा की पैसा कमाने के लिए कोई छोटा मोटा चिंदी चोर ही बन जाऊं ...इसलिए रात को एक दो बार मेने एक दो मकानों में भी झाँका की कोई माल हो तो ले उड़ू..पर अन्दर बंधे पालतू कुत्ते ने जब मुझे घुर कर देखा तो मेरी हिम्मत पस्त हो गई और चोर बनने का ख्याल त्याग दिया ..
मुझे इस बात का ज्ञान है और मेरा अर्थशास्त्र कहता है की जिन घरों में विदेशी नस्ल के कुत्ते होते हैं ..उन्ही घरों में माल होने की सम्भावना ज्यादा होती है ..भारत के बिना कुत्तो वाले घरों में तो कई बार आटे के डब्बे भी खाली मिलते है ..और इसी कारण इस प्रकार के घरों के मालिक बड़े ही धार्मिक प्रवर्ती के होते है क्योंकि आधे से उपवास रखने से अनाज कम खत्म होता है ..हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी उपवास रखने के लिया आव्हान किया था ..
गाँधी जी को तो पता था की देश चोट्टो के हाथों में जा रहा है इसलिए जनता आधे समय भूखे मरेगी..इसीलिए उन्होंने देश की जनता को पहले से ही उपवास का मानव जीवन में कितना महत्त्व है बता दिया था ..
मेने सफल होने के और भी प्रयास किये ...मेने एक बार एक आदमी को नोकरी लगाने का गच्चा देकर कुछ राशी झटक ली ...थोड़े दिन इंतजार करने के बाद वो एक दिन घर आ गया ...
मेने मेरे लड़के से कहा ..जा उसको बोल दे में घर नहीं हूँ ....लड़का भी आखिर मेरी ही ओलाद ..उसने उन महाशय से कहा पापा घर नहीं है ..तो उसने कहा तो फिर तुम्हारे पापा कहाँ है ..? मेरे सुपुत्र ने कहा जी वो घर में है ..मेने अपना माथा पीट लिया ...
में झूठ भी ढंग से नहीं बोल सकता झूठ बोलू तो काला कोवा काटे उससे पहले तो मेरी दिल की धड़कन तेज हो जाती है ...और गला खुश्क हो जाता है ...और सामने वाला एक मिनट में ताड़ जाता है .. और काटने के लिए कोवे की जरुरत ही नहीं रहती ..
एक बार मुझे सिनेमा में दो लुच्चों ने रगड़ दिया ..कारण ये की वो एक अति सुन्दर महिला के साथ संस्क्रती के विरुद्ध आचरण कर रहे थे ...मेने मना किया तो ....
कुछ लोग बोले भई एक दो तो तुम भी जमाते ..मेने कहा अरे वो तो में उनको छटी का दूध याद दिला देता पर में झगड़ा नहीं बढ़ाना चाहता था ..असल में मेरी हिम्मत ही नहीं है झगड़ा करने ..बस यूँही शेखी बघार रहा था ..ताकि मेरी कथित इज्ज़त बची रहे ..
कुल जमा बात ये की में भी उन मध्यवर्गीय लोगो में से हूँ जो अपनी ठुकाई हो जाए तो भी संस्कारवान होने का बहाना कर लेते हैं ..और घर आ जाते है और सूजे हुए थोबड़े के बारे में बाइक से नीचे गिरने का कारण बता देते हैं .. खेर जो भी अपनी इज्ज़त और संस्कृति बचाने में जरुर सफल हूँ ..हांलाकि इससे मुझे घाटा होता है ...पिता जी ने इज्ज़त रूपी बैल की पूंछ पकड़ा दी उसे छोड़ नहीं सकता चाहे वो मुझे जब चाहे घसीटे ..यही मेरी विरासत है ...
दुकान पर सामन लेने जाता हूँ दुकानदार खुल्ले नहीं होने का बहाना कर माचिस और टॉफी पकड़ा देता है ,,,विरोध करने पर वो मुझे घूर कर देखता है ..में चुपचाप रवाना हो जाता हूँ ..
केवल सपने देखता हूँ और खुश रहता हूँ ..
ख्याली घोड़े दोड़ा कर ही संतोष में हूँ .. दफ्तर के लोग जब कभी हड़ताल करते हैं में जुलुस में सबसे पीछे रहता हूँ ताकि कोई देख नहीं ले ...
एक बार तो मुझे डाकू बनने का ख्याल आया ...पर एक दिन टीवी पर एक डाकू का एनकाउंटर देखा जिसमे वो सडक पर मरे कुत्ते की तरह पड़ा था ..तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई ...
में अपने जीवन में सफल होने के लिए तय ही नहीं कर पाया की क्या करूँ ..मेरा मन था की में गायक बनू तो पिताजी ने कहा ..भांड बनोगे ..इतने कुलीन घराने के हो कर ऐसे सोचते हो ....
फिर ध्यान में आया की आजकल खिलाडी रातो रात अमीर बन रहे हैं ..तो मेने क्रिकेट खेलना शुरू किया ..तो पिताजी ने कहा ये धोबी का धोवना छोड़ो और पढाई करो ..
एक लड़की सामने वाले घर में रहती थी मुझे देख कर वो मुस्कराती थी ...अब मुझे ये पता नहीं था की वो मेरी मुर्खता या लल्लूपन पर मुस्कराती है या मुझ पर आसक्ति से मुस्कराती है ...
में डर और झिझक के मारे उससे कभी पूछ ही नहीं पाया ..मुझे याद है की एक बार मेरे मुहल्ले के एक शोहदे ने एक कन्या का रास्ते में हाथ पकड़ कर प्रेम निवेदन किया ..उसे ऐसा करते कुछ लोंगो ने देख लिया ..उन्होंने उसकी वो धुनाई की ..बस पूछो मत ..वो मंज़र मुझे आज भी ताज़ा था ..और ये ताज़ा ही रहा और लड़की की शादी हो गई ..
खेर शादी मेरी भी हुई और भाग्य से पत्नी भी सुन्दर मिली ...संस्कारों के कारण नहीं बल्कि उसे कोई टपोरी छेड़े नहीं ,या कोई सज्जन घूरे नहीं में बाहर कम ही लेजाता हूँ ..
आजकल शराफत के भी पैमाने बदल गए हैं ...इस कारण कोई भी व्यक्ति किसी सुन्दर महिला को घूरे तो इसे बुरा नहीं माना जाता ..घूरने का अधिकार तो आजकल शास्वत हो गया है ..सभी घूरते हैं
छेड़ना टपोरी का काम है ..और ये संख्या भी बहुताय में हो गई है ..
एक बार एक सज्जन ने मेरी पत्नी को घूरा.. मेने कहा उधर मत देखो ...पत्नी बोली घूर ही तो रहा है ...मेने सोचा कल को कोई टपोरी छेड़ेगा तो कह देगी छेड़ ही तो रहा है ..बलात्कार तो नहीं कर रहा है ..पर में संस्कार वान हूँ इसलिए चुपचाप उसे घर ले आया ...और शुक्र मनाया की ..तीसरे प्रकार की दुर्घटना नहीं हुई ...अन्यथा
मेरे संस्कारों का जुलुस निकल जाता ..
कुल मिला कर मेने घर की इज्ज़त बचाने के लिए अपने सभी सपनो को कुर्बान कर दिया ,,,जब भी किसी सपने को साकार करने आगे कदम बढ़ाता तो ..मेरे संस्कार मुझे रोक लेते ..
में अपने जीवन में ना घोडा बन सका ...और ना ही गधा बन सका ... दिन में संस्कार साए की तरह साथ में रहते हैं और रात में सपने बन कर ....
Tuesday, February 1, 2011
लाठी एक लाभ अनेक
मित्रों जिसकी लाठी उसकी भेंस की कहावत बड़ी ही आम है, किसी जमाने में इस कहावत का उदभव लाठी का प्रयोग कर किसी की भेंस हांक ले जाने के परिणामस्वरूप ही हुआ होगा और कालांतर में लाठी अपने इन्ही गुणों के कारण शक्ति का प्रतिक बन गई, , लाठी अगर हाथ में हो तो अगला आदमी आपसे विनम्र व्यवहार करता है, लाठी सदभावना की प्रतिक है लाठी हाथ में हो तो आपके सभी दुर्गुण भी सदगुणों में परिवर्तित हो जाते हैं, हाथ में लाठी हो तो अगला इन्सान आपको बड़ी श्रद्धा और आत्मीयता से देखता है अगर आप उसे कोई कार्य करने को कहें तो वो फ़ौरन से पेश्तर करता है, लाठी धारकों के आदेश की अवहेलना कोई नहीं कर सकता, लाठी धारक सामर्थ्यवान होता है और इसी कारण वो समस्त दोषों से मुक्त रहता है, तभी तो तुलसीदास जी ने कहा था ''समरथ को नहीं दोष गुसाई'' लाठी हाथ में आते ही किसी भी व्यक्ति में साहस और शक्ति के संचार में आशातीत वृद्धी हो जाती है वह स्वयं को सक्षम और सबल महसूस करने लग जाता है और यही विश्वास आत्मनिर्भरता का प्रतिक है, लाठी हाथ में हो और तेवर जीवन में कुछ कर गुजरने के हो तो किसी भी व्यवसाय को बिना पूंजी के ही तुरंत शुरू किया जा सकता है, मेरे पड़ोस के भीमराज जी के मंजले लड़के ने तो हाथ में लाठी लेकर बनिए की डूबत उगाही का कार्य आरंभ क्या तो इतनी सफलता साथ लगी की कुछ सालों में उनकी स्वयं की फाइनेस कम्पनी खड़ी हो गई, वे इस सफलता का पूरा श्रेय केवल और केवल लाठी को देते हैं,
लाठी धारकों का शुमार मोतबिरों में हो जाता है , वो अघोषित पंच सरपंच हो जाते हैं , लाठी हाथ में हो तो आप असफल नही हो सकते, लाठी हाथ में हो तो कुत्ता भी नहीं काट सकता, लाठी में बहूत गुण हैं, लाठी मानव का पुरातन और बुनियादी हथियार है, लाठी बलवानों, पहलवानों, और लठेतों की शोभा रही हैं जिनकी सामाजिक परिवर्तन में बहूत मुख्य भूमिका रही हैं, गाँधी जी ने भी इन्ही गुणों के कारण ही लाठी को जीवनपर्यंत के लिए अपना हमसफ़र बनाया था, लाठी धारक जन्मजात नेतृत्वकर्ता लगता है,उसके नेतृत्व का सभी लोहा मानते हैं, एक बार की सहारा देने से आपकी ओलादें धोखा दे दे , पर लाठी सहारा देने के मामले में धोखा नहीं दे सकती शायद इसी लिए राजस्थान सरकार ने तो लाठी धारक वृद्धों को भी विकलांग का दर्जा देने की घोषणा की है, इस आदेश के बाद सरकारी लाभ लेने के लिए कई वृद्धजन जो बिना लाठी के भी चलफिर सकते हैं वे लाठियां थाम लेंगे, सरकार का ये आदेश लाठी के बाज़ार में फिर तेजी ले आएगा,
मेने कई लाठी धारकों के पास बड़ी ही सुन्दर लाठिया देखी है, मेरे मिलने वाले एक लाठीधारक अपनी प्रिय लाठी के रखरखाव पर काफी खर्चा करते हैं, वे समय समय पर उसे तेल पिलाते हैं, और उसे कई रेशमी धागों से सजा कर रखते हैं, उन्होंने अपनी लाठी को लोहे के छल्ले भी पहना रखे हैं, उनका कहना है की इससे प्रतिध्वन्धी में सदेव भय व्याप्त रहता है, वो हमेशा इस भय से थर्राया रहता है की कहीं लाठी मेरे सिर को तरबूज की भांति नहीं फोड़ दे, इस कारण वो सदेव लाठी धारक के प्रति श्रद्धा का भाव लिए रहता है, तो मित्रों लाठी के इन गुणों के बारे में जितना लिखा जाये कम है, और में सोच रहा हूँ की एक अदद लाठी में भी खरीद लूँ, पर मेरे मन एक बात और आ रही है लाठी तो 20
-30 रूपये में आ जाएगी पर अभी तक लाठी को चलाने के लिए जिस होंसले की दरकार होती है वो दुकान अभी दुनिया में नहीं खुली है, ये सोच कर मेने लाठी के लाख गुणों के बावजूद भी उसे खरीदने का इरादा त्याग दिया, किसी मित्र में ये क्षमता हो तो इसमें लाभ ही लाभ है,
लाठी धारकों का शुमार मोतबिरों में हो जाता है , वो अघोषित पंच सरपंच हो जाते हैं , लाठी हाथ में हो तो आप असफल नही हो सकते, लाठी हाथ में हो तो कुत्ता भी नहीं काट सकता, लाठी में बहूत गुण हैं, लाठी मानव का पुरातन और बुनियादी हथियार है, लाठी बलवानों, पहलवानों, और लठेतों की शोभा रही हैं जिनकी सामाजिक परिवर्तन में बहूत मुख्य भूमिका रही हैं, गाँधी जी ने भी इन्ही गुणों के कारण ही लाठी को जीवनपर्यंत के लिए अपना हमसफ़र बनाया था, लाठी धारक जन्मजात नेतृत्वकर्ता लगता है,उसके नेतृत्व का सभी लोहा मानते हैं, एक बार की सहारा देने से आपकी ओलादें धोखा दे दे , पर लाठी सहारा देने के मामले में धोखा नहीं दे सकती शायद इसी लिए राजस्थान सरकार ने तो लाठी धारक वृद्धों को भी विकलांग का दर्जा देने की घोषणा की है, इस आदेश के बाद सरकारी लाभ लेने के लिए कई वृद्धजन जो बिना लाठी के भी चलफिर सकते हैं वे लाठियां थाम लेंगे, सरकार का ये आदेश लाठी के बाज़ार में फिर तेजी ले आएगा,
मेने कई लाठी धारकों के पास बड़ी ही सुन्दर लाठिया देखी है, मेरे मिलने वाले एक लाठीधारक अपनी प्रिय लाठी के रखरखाव पर काफी खर्चा करते हैं, वे समय समय पर उसे तेल पिलाते हैं, और उसे कई रेशमी धागों से सजा कर रखते हैं, उन्होंने अपनी लाठी को लोहे के छल्ले भी पहना रखे हैं, उनका कहना है की इससे प्रतिध्वन्धी में सदेव भय व्याप्त रहता है, वो हमेशा इस भय से थर्राया रहता है की कहीं लाठी मेरे सिर को तरबूज की भांति नहीं फोड़ दे, इस कारण वो सदेव लाठी धारक के प्रति श्रद्धा का भाव लिए रहता है, तो मित्रों लाठी के इन गुणों के बारे में जितना लिखा जाये कम है, और में सोच रहा हूँ की एक अदद लाठी में भी खरीद लूँ, पर मेरे मन एक बात और आ रही है लाठी तो 20
-30 रूपये में आ जाएगी पर अभी तक लाठी को चलाने के लिए जिस होंसले की दरकार होती है वो दुकान अभी दुनिया में नहीं खुली है, ये सोच कर मेने लाठी के लाख गुणों के बावजूद भी उसे खरीदने का इरादा त्याग दिया, किसी मित्र में ये क्षमता हो तो इसमें लाभ ही लाभ है,
सुन्दरता के बाजारू मापदंड और समाज
सुंदर होना अथवा नहीं होना ये प्रक्रति और भोगोलिकता पर निर्भर है , गोरा रंग बिकाऊ है इसी कारण हप्ते में गोरा बनाने का धंधा जोरों पर है और इस धंधे ने अब कुटीर उद्योग का स्वरूप ले लिया है गली गली में ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं.
दुनिया की सबसे पहली सुन्दरता का बाजारू प्रतिनिधित्व करने वाली बार्बी गुडिया भी गोरे रंग की ही थी, अगर कोई अफ्रीका में पैदा हो जाए तो उसमे उसका क्या कुसूर, और अगर कोई अमेरिका में तो उसका भी क्या कुसूर....
कुसूर मानसिकता का है,
अव्वल तो ये की कोई सुंदर है या नहीं इसकी राय किसी की भी उसकी निजी हो सकती है.
पर बाजारवाद के इस दौर में सुन्दरता को बेचने वालों ने इसके कुछ मापदंड गढ़ लिए हैं.
और इस कथित मापदंड की सुन्दरता से संपन्न कन्याएं विलुप्त प्रजाति के सामान हैं, और
मुझे लगता है की इस प्रकार की दुर्लभ कन्याएं आजकल मोडलिंग, फिल्म और टीवी धारवाहिकों में ही नज़र आती है, इस कारण इनकी मांग और पूर्ति का संतुलन बिगड़ा हुआ है.
मेरे पड़ोस में एक सज्जन के लड़के को सुन्दर पत्नी चहिए थी, पर जिस मापदंड की लड़की चहिए थी, उस प्रकार की मिल नहीं रही थी , लड़का आये दिन अच्छी भली, शिक्षित, सुसंस्कृत, और अच्छे परिवारों की लड़कियों को देखने के बाद मना कर देता, लड़का भी अपनी सूरत को लेकर बड़ा ही अंदेशे में रहता था, क्योंकि किसी सयाने मसखरे ने उसके साथ मसखरी कर के उसके दिमाग में ये बेठा दिया की उसकी सूरत फलां फिल्म के हीरो से मिलती है, लड़के ने अपनी सूरत को शीशे में देखा होगा तो सयाने की बात में दम लगा होगा, कुछ कमी अगर महसूस हुई होगी तो उसने उस हीरो की स्टाइल के बाल कटवा कर और उसके जेसी वेशभूषा धारण कर पूरी कर ली,
भगवान किसी दुश्मन के साथ भी ऐसा नहीं करे, एक दिन वो कहीं से लड़की देख कर आ रहा था और चलती बाइक पर ही अपने बाल संवार रहा था की बाइक से नीचे मुहं के बल गिर गया और सामने के चारों दांत टूट गए, सूरत हीरो से विलेन जेसी हो गई, हालत ये हो गई की कोई भी लड़की उससे शादी करने को राज़ी नहीं,,
खेर अब एक और सज्जन जो लड़के की इच्छा अनुसार काफी ढूंडढांड कर आसमान से उतरी परी जेसी कन्या को अपने घर की बहु बना कर लाये, लड़का सुन्दर पत्नी को को पा कर फुला नहीं समाता था, उसकी पूरी मित्रमंडली में उसकी धाक हो गई, आये दिन किसी भी पार्टी या फंक्शन में अपनी पत्नी की सुन्दरता का प्रदर्शन करने का अवसर नहीं चुकता, लड़की बेचारी परेशान उसे ये सब अच्छा नहीं लगता,
धीरे धीरे गली मुहल्ले और पान की दुकान और नुक्कड़ो पर उसकी सुन्दरता के चर्चे होने लगे, हालात ये बन गए की मुहल्ले के शोहदे और लुच्चे उसके घर के आमने सामने सारे दिन डेरा जमाये रहते की कब एक बार दीदार हो जाए, ज्योंही कभी शाम को लड़का उसको लेकर निकलता पूरी फौज उनके पीछे लग जाती और ठेठ उनकी मंजिल तक पहुंचा कर आती, कोई कोई शोहदा तो वही धुनी रमा लेता और प्रोग्राम ख़त्म होने पर वापसी में भी घर की फाटक तक छोड़ कर जाता, अब लुच्चों के कौन मुहँ लगे और पुलिस में भी क्या कह के शिकायत करें, घर की बदनामी का भी बेठे बिठाये डर,
लड़की की कोई सहेली अपने पति या भाई के साथ कभी उसे मिलने आते तो सहेली के भाई और पति भी उसकी सुन्दरता की तारीफ करने लगते, परिणाम ये की सज्जनों की भी सज्जनता संदेह के घेरे में आ गई, ठीक बात भी है मेनका ने विश्वामित्र का ईमान भी खराब कर दिया तो साधारण मानव का खराब होत्ते देर ही क्या लगे हैं....
इन सब हालातों के कारण लड़का भी अपनी पत्नी की अतिसुन्दरता से आजिज़ आ गया, एक दिन उसने अखबार में किसी रिसर्च के बारे में पढ़ा जिसमे बताया गया की सुन्दर पत्नियों के पति हार्ट अटेक के शिकार ज्यादा होते हैं, उसी दिन से उसे भी मारे शंका या रिसर्च की बात सही होगी इस कारण वो भी अपने सीने में थोडा थोडा दर्द महसूस करने लगा, पर अब किया क्या जा सकता था भुगतो अब,
प्रशंगवश में एक अनुभव और बाँटना चाहता हूँ, मेरे पडोसी के लड़के ने एक अति सुन्दर कन्या से विवाह किया, चाँद सा मुखड़ा पर अक्ल में थोड़ी पैदल, पर लड़के को कोई शिकवा नहीं, लड़की सुन्दर है तो काफी है जेसे घरगरस्थी चलाना गौण हो और नस्ल सुधार प्रमुख, लड़की सारे दिन लटरपटर कर चलती फुदकती रहती थी , इस क्रम में एक दिन घर की सीढियों से गिर गई, चाँद से मुखड़े पर पुरे पंद्रह टांके आये, एक दांत पूरा और एक आधा टूट गया, लड़के को उसी दिन बुखार आ गया,
अब लड़कों को या उन लड़कियों या उन माँ बापों को कौन बताये की सुन्दर होना सब कुछ नहीं है, इन्सान के गुण मायने रखते है, सुन्दरता बहूत क्षणिक होती है सुन्दरता छलावा है, वो अस्थाई है
सुन्दरता को छु नहीं सकते केवल महसूस किया जाता है, ये तो आपकी मनोस्थति पर निर्भर करता है की आप किसे सुन्दर मानेंगे.
कहते है लेला सांवली थी पर मजनू के लिए वो सबसे सुन्दर थी, पर आजकल सुन्दरता के बाजारू मापदंडो ने उन सभी लड़कियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है जो इन कथित मापदंडो के दायरे में नहीं आती, उनकी शादी समय पर नहीं हो पाती, और भी कई समस्याएँ होंगी जो यहाँ उल्लेखित करना उचित नहीं, एक दिन एक सज्जन पान की दुकान पर मिल गए और लड़की की शादी का रोना रोने लगे, उनकी पीड़ा ये की उनकी इतनी सुसंस्कृत, पढ़ी लिखी लड़की को कोई पसंद नहीं कर रहा क्योंकि लड़की जरा सांवली है, मेने अपना माथा पीट लिया, हम कोनसे ज़माने में जी रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं,
दुनिया की सबसे पहली सुन्दरता का बाजारू प्रतिनिधित्व करने वाली बार्बी गुडिया भी गोरे रंग की ही थी, अगर कोई अफ्रीका में पैदा हो जाए तो उसमे उसका क्या कुसूर, और अगर कोई अमेरिका में तो उसका भी क्या कुसूर....
कुसूर मानसिकता का है,
अव्वल तो ये की कोई सुंदर है या नहीं इसकी राय किसी की भी उसकी निजी हो सकती है.
पर बाजारवाद के इस दौर में सुन्दरता को बेचने वालों ने इसके कुछ मापदंड गढ़ लिए हैं.
और इस कथित मापदंड की सुन्दरता से संपन्न कन्याएं विलुप्त प्रजाति के सामान हैं, और
मुझे लगता है की इस प्रकार की दुर्लभ कन्याएं आजकल मोडलिंग, फिल्म और टीवी धारवाहिकों में ही नज़र आती है, इस कारण इनकी मांग और पूर्ति का संतुलन बिगड़ा हुआ है.
मेरे पड़ोस में एक सज्जन के लड़के को सुन्दर पत्नी चहिए थी, पर जिस मापदंड की लड़की चहिए थी, उस प्रकार की मिल नहीं रही थी , लड़का आये दिन अच्छी भली, शिक्षित, सुसंस्कृत, और अच्छे परिवारों की लड़कियों को देखने के बाद मना कर देता, लड़का भी अपनी सूरत को लेकर बड़ा ही अंदेशे में रहता था, क्योंकि किसी सयाने मसखरे ने उसके साथ मसखरी कर के उसके दिमाग में ये बेठा दिया की उसकी सूरत फलां फिल्म के हीरो से मिलती है, लड़के ने अपनी सूरत को शीशे में देखा होगा तो सयाने की बात में दम लगा होगा, कुछ कमी अगर महसूस हुई होगी तो उसने उस हीरो की स्टाइल के बाल कटवा कर और उसके जेसी वेशभूषा धारण कर पूरी कर ली,
भगवान किसी दुश्मन के साथ भी ऐसा नहीं करे, एक दिन वो कहीं से लड़की देख कर आ रहा था और चलती बाइक पर ही अपने बाल संवार रहा था की बाइक से नीचे मुहं के बल गिर गया और सामने के चारों दांत टूट गए, सूरत हीरो से विलेन जेसी हो गई, हालत ये हो गई की कोई भी लड़की उससे शादी करने को राज़ी नहीं,,
खेर अब एक और सज्जन जो लड़के की इच्छा अनुसार काफी ढूंडढांड कर आसमान से उतरी परी जेसी कन्या को अपने घर की बहु बना कर लाये, लड़का सुन्दर पत्नी को को पा कर फुला नहीं समाता था, उसकी पूरी मित्रमंडली में उसकी धाक हो गई, आये दिन किसी भी पार्टी या फंक्शन में अपनी पत्नी की सुन्दरता का प्रदर्शन करने का अवसर नहीं चुकता, लड़की बेचारी परेशान उसे ये सब अच्छा नहीं लगता,
धीरे धीरे गली मुहल्ले और पान की दुकान और नुक्कड़ो पर उसकी सुन्दरता के चर्चे होने लगे, हालात ये बन गए की मुहल्ले के शोहदे और लुच्चे उसके घर के आमने सामने सारे दिन डेरा जमाये रहते की कब एक बार दीदार हो जाए, ज्योंही कभी शाम को लड़का उसको लेकर निकलता पूरी फौज उनके पीछे लग जाती और ठेठ उनकी मंजिल तक पहुंचा कर आती, कोई कोई शोहदा तो वही धुनी रमा लेता और प्रोग्राम ख़त्म होने पर वापसी में भी घर की फाटक तक छोड़ कर जाता, अब लुच्चों के कौन मुहँ लगे और पुलिस में भी क्या कह के शिकायत करें, घर की बदनामी का भी बेठे बिठाये डर,
लड़की की कोई सहेली अपने पति या भाई के साथ कभी उसे मिलने आते तो सहेली के भाई और पति भी उसकी सुन्दरता की तारीफ करने लगते, परिणाम ये की सज्जनों की भी सज्जनता संदेह के घेरे में आ गई, ठीक बात भी है मेनका ने विश्वामित्र का ईमान भी खराब कर दिया तो साधारण मानव का खराब होत्ते देर ही क्या लगे हैं....
इन सब हालातों के कारण लड़का भी अपनी पत्नी की अतिसुन्दरता से आजिज़ आ गया, एक दिन उसने अखबार में किसी रिसर्च के बारे में पढ़ा जिसमे बताया गया की सुन्दर पत्नियों के पति हार्ट अटेक के शिकार ज्यादा होते हैं, उसी दिन से उसे भी मारे शंका या रिसर्च की बात सही होगी इस कारण वो भी अपने सीने में थोडा थोडा दर्द महसूस करने लगा, पर अब किया क्या जा सकता था भुगतो अब,
प्रशंगवश में एक अनुभव और बाँटना चाहता हूँ, मेरे पडोसी के लड़के ने एक अति सुन्दर कन्या से विवाह किया, चाँद सा मुखड़ा पर अक्ल में थोड़ी पैदल, पर लड़के को कोई शिकवा नहीं, लड़की सुन्दर है तो काफी है जेसे घरगरस्थी चलाना गौण हो और नस्ल सुधार प्रमुख, लड़की सारे दिन लटरपटर कर चलती फुदकती रहती थी , इस क्रम में एक दिन घर की सीढियों से गिर गई, चाँद से मुखड़े पर पुरे पंद्रह टांके आये, एक दांत पूरा और एक आधा टूट गया, लड़के को उसी दिन बुखार आ गया,
अब लड़कों को या उन लड़कियों या उन माँ बापों को कौन बताये की सुन्दर होना सब कुछ नहीं है, इन्सान के गुण मायने रखते है, सुन्दरता बहूत क्षणिक होती है सुन्दरता छलावा है, वो अस्थाई है
सुन्दरता को छु नहीं सकते केवल महसूस किया जाता है, ये तो आपकी मनोस्थति पर निर्भर करता है की आप किसे सुन्दर मानेंगे.
कहते है लेला सांवली थी पर मजनू के लिए वो सबसे सुन्दर थी, पर आजकल सुन्दरता के बाजारू मापदंडो ने उन सभी लड़कियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है जो इन कथित मापदंडो के दायरे में नहीं आती, उनकी शादी समय पर नहीं हो पाती, और भी कई समस्याएँ होंगी जो यहाँ उल्लेखित करना उचित नहीं, एक दिन एक सज्जन पान की दुकान पर मिल गए और लड़की की शादी का रोना रोने लगे, उनकी पीड़ा ये की उनकी इतनी सुसंस्कृत, पढ़ी लिखी लड़की को कोई पसंद नहीं कर रहा क्योंकि लड़की जरा सांवली है, मेने अपना माथा पीट लिया, हम कोनसे ज़माने में जी रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं,
सदाचारी (दुराचारी ) और उनका सदाचार (दुराचार )
प्रभावशाली (बलशाली), सज्जनों (दुर्जनों) का हमारे समाज में सदेव से ही आदर रहा है, महाबलियों की अपने क्षेत्र में धाक रहती है,हनमान जी और लक्ष्मी जी के कृपा पात्र इन महानुभावों को निर्बलजन श्रद्धा भाव से देखते हैं और कई आशाएं इनको लेकर वे अपने मन में रखते हैं, निर्बलजन इनकी संगत के लिए सदा ही लालायित रहते हैं, किसी की लड़की भाग गई हो, या किसी व्यापारी को अपनी डूबत राशी वसूल करनी हो, या किसी लुच्चे की छेड़छाड़ से तंग कन्या को उससे पीछा छुडवाना हो, इन सभी कामों को करने के लिए ये भद्रजन सदेव तत्पर रहते हैं, इस प्रकार के वर्ग में आने वाले किसी राजनितिक दल के छुटभैये नेता भी होते हैं, जो इनके आभामंडल को और अभामंडित करता है. इनके घर पर किसी भी प्रकार का आयोजन हो, निर्बलजन अपनी मुफ्त सेवाएं देते हैं,
हमारे मुहल्ले में भी कुछ मसलपावर रखने वाले सज्जन हैं , में इनमे से कुछ प्रमुख व्यक्तित्वों की चर्चा यहाँ करूँगा,
मुझे याद है हमारे पास में रहने वाले एक पहलवान जी के लड़के की शादी थी, पुरे मुहल्ले के लड़के सारी रात नाचे, जेसे उनकी खुद की शादी हो रही हो..उनके शांति पूर्ण व्यवहार (आतंक पूर्ण ) के कारण केटरिंग वाला, घोड़ी और बेंड वाला, किराने वाला, तेली, माली, नाई सभी ने घर का काम समझ कर किया और नेग और सेवा शुल्क के बदले केवल उनकी कृपा का आशीर्वाद माँगा..
उन्होंने दिया भी, और वे सभी धन्य हो गए,
एक प्रभावशाली सज्जन बड़े ही मिलनसार हैं, उनके घर मिलने वालों का ताँता लगा रहता हैंउसमे नगर के प्रमुख लोग होते हैं जो उनके कुछ निजी काम करवाने आते हैं,इन कामों में प्रमुख काम वो होते हैं जो कई बार सरकारी उदासीनता के कारण या कानून के दायरे के बाहर होने के कारण वे इनसे करवाते हैं, उनकी धाक का आलम ये है की उनकी अतिसुन्दर बहन मुहल्ले के सभी लुच्चों की भी बड़ी बहिन है, मजाल है जो कोई लुच्चा अपने मन में भी उसके प्रति कोई बुरा ख्याल लाये. राखी के दिन सभी महाबली जी के घर उनकी बहन से राखी बंधवाने लाइन में खड़े रहते हैं.
इनका एक लड़का भी है जो उसकी उम्र के सभी लड़कों का आदर्श है, क्योंकि आगामी समय में अपने पिता का स्थान वही लेगा,
मेने सोचा की निर्बल का तो आज के ज़माने में बेडा ही गर्क है, मेरे पड़ोस में एक सज्जन रहते हैं, सीधे साधे मध्यवर्गीय नोकरी पेशा व्यक्ति, उनकी पीड़ा ये है की उनके एक लड़की है जो शोहदों की छेड़खानी से त्रस्त हैं, वो बेचारी शाम के बाद तो घर से भी नहीं निकल सकती ...
वहीँ एक सज्जन और हैं, जिनके चार मुस्टंडे जेसे लठेत साइज के लड़के हैं जो उस इलाके में घटने वाली लगभग हर वारदात में लिप्त रहते हैं, बड़े वाले का तो फोटो भी थाने में लगा हुआ है जो उनके गोरव में और बढ़ोतरी ही नहीं करता बल्कि इससे उनकी इस क्षेत्र में मार्केट वेल्यु मेंटेन भी रहती है, उनके एक बड़ी ही सुन्दर लड़की है वो आधी रात को भी कहीं आये जाए किसी को कोई परेशानी नहीं, सभी शोहदे उसे अपनी दीदी मानते हैं. और उनकी पत्नी को अपनी मां,
पास के तबेले से दुधिया बगैर कहे 7 - 8 लीटर दूध रोज दे जाता है.. क्योंकि उसकी भेंसे पुरे इलाके में बेखोफ घुमती है काईन हॉउस वाले पहलवान जी के डर से पकड़ते ही नहीं, और भेंसे पूरी सब्जी मंडी में इधर उधर मुहँ मार के आ जाती है पर मजाल है कोई किसी भेंस को छड़ी भी मार दे..
एक बार हमारे मुहल्ले में एक ही रात में कई निर्बलजनों के घरों में चोरी हो गयी और ताले टूटे, पर मजाल है की किसी बलशाली के यहाँ से सुई भी हिली हो..
चोरों की हिम्मत ही नहीं की वो इनके घर की फाटक के पास भी आ जाये..
मुहल्ले में कोई मंत्री नेता आता है तो स्वागत ये ही करते हैं, पिछले दिनों हमारे मुहल्ले में हनुमान जी के मंदिर के अन्नकूट महोत्सव में सम्मिलित होने मंत्री जी आये, तब उनके साथ मंच पर महाबली आसीन हुए और सभी निर्बल नीचे.
हनुमान जी वेसे तो सबके भगवान है, पर इन पर उनकी विशेस कृपा रहती है, में मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर जाता हूँ, देखने में आता है की महाबली जी को बिना लाइन में लगे तुरंत दर्शन करवा दिए जाते हैं, दर्शन के वक्त पुजारी की भाव भंगिमा देखते ही बनती है, वो उनकी तरफ बड़ी ही आशा से देखता है, गनीमत है की अन्य भक्तों की उपस्थिति के कारण महाबली जी द्वारा लाई माला वो उन्हें ही नहीं पहना देता और हनुमान जी की बजाय उनके पांव में नहीं लोट जाता,, वो इस ज्ञान से भली भांति परिचित है की आज के ज़माने में मुसीबत पता नहीं कब किस शक्ल में आ जाए और तब हनुमान जी आये या नहीं पर ये गारंटी है की ये तुरंत आ सकते हैं.
मुहल्ले में एक पहलवान जी का लड़का उनके पिता जेसा पहलवान तो नहीं बन सका पर उसने अपने पिता साख के नाम पर श;शुल्क सामाजिक सेवा का कार्य आरम्भ किया तो उसमे काफी नाम कमाया, पेसे का हिसाब तो वो नहीं रखता, वो कहता है की पैसा तो हाथ का मेल है, आता जाता रहता है, उसने कई बेरोजगार युवाओं को अपनी सामाजिक संस्था (गिरोह) में शामिल कर उनको रोज़गार उपलब्ध कराया. उसकी इन अभिनव सेवाओं से इलाके के सभी सूदखोर, दलाल, और जल्दी से धन अर्जित करने के इच्छुक सभी नागरिक इस युवा समाज सेवक और उद्यमी को इस बार 26 जनवरी को सम्मानित करवाने के लिए मंत्री जी से आग्रह कर रहें है, हमे भी पूरा विश्वास है की इन्हें ही सम्मानित किया जायेगा, क्योंकि इनसे बड़े ये गोरव पहले ही प्राप्त कर चुके है सो इस बार इनका चांस पक्का है...
हमारे मुहल्ले में भी कुछ मसलपावर रखने वाले सज्जन हैं , में इनमे से कुछ प्रमुख व्यक्तित्वों की चर्चा यहाँ करूँगा,
मुझे याद है हमारे पास में रहने वाले एक पहलवान जी के लड़के की शादी थी, पुरे मुहल्ले के लड़के सारी रात नाचे, जेसे उनकी खुद की शादी हो रही हो..उनके शांति पूर्ण व्यवहार (आतंक पूर्ण ) के कारण केटरिंग वाला, घोड़ी और बेंड वाला, किराने वाला, तेली, माली, नाई सभी ने घर का काम समझ कर किया और नेग और सेवा शुल्क के बदले केवल उनकी कृपा का आशीर्वाद माँगा..
उन्होंने दिया भी, और वे सभी धन्य हो गए,
एक प्रभावशाली सज्जन बड़े ही मिलनसार हैं, उनके घर मिलने वालों का ताँता लगा रहता हैंउसमे नगर के प्रमुख लोग होते हैं जो उनके कुछ निजी काम करवाने आते हैं,इन कामों में प्रमुख काम वो होते हैं जो कई बार सरकारी उदासीनता के कारण या कानून के दायरे के बाहर होने के कारण वे इनसे करवाते हैं, उनकी धाक का आलम ये है की उनकी अतिसुन्दर बहन मुहल्ले के सभी लुच्चों की भी बड़ी बहिन है, मजाल है जो कोई लुच्चा अपने मन में भी उसके प्रति कोई बुरा ख्याल लाये. राखी के दिन सभी महाबली जी के घर उनकी बहन से राखी बंधवाने लाइन में खड़े रहते हैं.
इनका एक लड़का भी है जो उसकी उम्र के सभी लड़कों का आदर्श है, क्योंकि आगामी समय में अपने पिता का स्थान वही लेगा,
मेने सोचा की निर्बल का तो आज के ज़माने में बेडा ही गर्क है, मेरे पड़ोस में एक सज्जन रहते हैं, सीधे साधे मध्यवर्गीय नोकरी पेशा व्यक्ति, उनकी पीड़ा ये है की उनके एक लड़की है जो शोहदों की छेड़खानी से त्रस्त हैं, वो बेचारी शाम के बाद तो घर से भी नहीं निकल सकती ...
वहीँ एक सज्जन और हैं, जिनके चार मुस्टंडे जेसे लठेत साइज के लड़के हैं जो उस इलाके में घटने वाली लगभग हर वारदात में लिप्त रहते हैं, बड़े वाले का तो फोटो भी थाने में लगा हुआ है जो उनके गोरव में और बढ़ोतरी ही नहीं करता बल्कि इससे उनकी इस क्षेत्र में मार्केट वेल्यु मेंटेन भी रहती है, उनके एक बड़ी ही सुन्दर लड़की है वो आधी रात को भी कहीं आये जाए किसी को कोई परेशानी नहीं, सभी शोहदे उसे अपनी दीदी मानते हैं. और उनकी पत्नी को अपनी मां,
पास के तबेले से दुधिया बगैर कहे 7 - 8 लीटर दूध रोज दे जाता है.. क्योंकि उसकी भेंसे पुरे इलाके में बेखोफ घुमती है काईन हॉउस वाले पहलवान जी के डर से पकड़ते ही नहीं, और भेंसे पूरी सब्जी मंडी में इधर उधर मुहँ मार के आ जाती है पर मजाल है कोई किसी भेंस को छड़ी भी मार दे..
एक बार हमारे मुहल्ले में एक ही रात में कई निर्बलजनों के घरों में चोरी हो गयी और ताले टूटे, पर मजाल है की किसी बलशाली के यहाँ से सुई भी हिली हो..
चोरों की हिम्मत ही नहीं की वो इनके घर की फाटक के पास भी आ जाये..
मुहल्ले में कोई मंत्री नेता आता है तो स्वागत ये ही करते हैं, पिछले दिनों हमारे मुहल्ले में हनुमान जी के मंदिर के अन्नकूट महोत्सव में सम्मिलित होने मंत्री जी आये, तब उनके साथ मंच पर महाबली आसीन हुए और सभी निर्बल नीचे.
हनुमान जी वेसे तो सबके भगवान है, पर इन पर उनकी विशेस कृपा रहती है, में मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर जाता हूँ, देखने में आता है की महाबली जी को बिना लाइन में लगे तुरंत दर्शन करवा दिए जाते हैं, दर्शन के वक्त पुजारी की भाव भंगिमा देखते ही बनती है, वो उनकी तरफ बड़ी ही आशा से देखता है, गनीमत है की अन्य भक्तों की उपस्थिति के कारण महाबली जी द्वारा लाई माला वो उन्हें ही नहीं पहना देता और हनुमान जी की बजाय उनके पांव में नहीं लोट जाता,, वो इस ज्ञान से भली भांति परिचित है की आज के ज़माने में मुसीबत पता नहीं कब किस शक्ल में आ जाए और तब हनुमान जी आये या नहीं पर ये गारंटी है की ये तुरंत आ सकते हैं.
मुहल्ले में एक पहलवान जी का लड़का उनके पिता जेसा पहलवान तो नहीं बन सका पर उसने अपने पिता साख के नाम पर श;शुल्क सामाजिक सेवा का कार्य आरम्भ किया तो उसमे काफी नाम कमाया, पेसे का हिसाब तो वो नहीं रखता, वो कहता है की पैसा तो हाथ का मेल है, आता जाता रहता है, उसने कई बेरोजगार युवाओं को अपनी सामाजिक संस्था (गिरोह) में शामिल कर उनको रोज़गार उपलब्ध कराया. उसकी इन अभिनव सेवाओं से इलाके के सभी सूदखोर, दलाल, और जल्दी से धन अर्जित करने के इच्छुक सभी नागरिक इस युवा समाज सेवक और उद्यमी को इस बार 26 जनवरी को सम्मानित करवाने के लिए मंत्री जी से आग्रह कर रहें है, हमे भी पूरा विश्वास है की इन्हें ही सम्मानित किया जायेगा, क्योंकि इनसे बड़े ये गोरव पहले ही प्राप्त कर चुके है सो इस बार इनका चांस पक्का है...
आदर्श सोसायटी घोटाला
आदर्श सोसायटी घोटाला सच में देश में जितने भी घोटाले हुए हैं, उन सब में आदर्श रहा है, में व्यक्तिगत तौर पर इस घोटाले को आदर्श घोटाले की संज्ञा इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि आज दिन तक जितने भी घोटाले हुए उस सभी में या तो राजनेता, मंत्री या फिर उद्योगपति आदि ही शामिल होने का गोरव प्राप्त कर सकें हैं.
आदर्श सोसायटी घोटाले में पहली बार ऐसा हुआ है की देश की समस्त हस्तियाँ जो विभिन्न क्षेत्रों से ताल्लुक रखती है, सब ने समवेत रूप से इस घोटाले में भाग लिया है जिसमे देश की रक्षा करने वाले सेना नायक, मंत्री, नेता, उद्योगपति, कार्पोरेट जगत के नामचीन लोग यानि सभी वर्गों के, और भी कई होंगे जिनका खुलासा होना बाकी है , और इसी के चलते ये घोटाला आदर्श घोटाला कहलाने का पात्र बना, पर देश को सामूहिक रूप से लूटने का ये पहला अवसर है,
देश के घोटालेबाजों के कर कमल गरीब जनता को दुहने में लगे हैं इस तथ्य से सभी अवगत हैं , और इस बात की इनमे प्रतियोगिता भी पिछले लम्बे समय चल रही थी की कौन कितना दुह सकता है,
पर ये पहली बार हुआ है की इस घोटाले को यूनियन बना कर अंजाम दिया गया.
मिलकर घोटाला करने का लाभ ये है की इसमें पोल खुलने पर भी पकडे जाने का डर नहीं रहता क्योंकि लाभार्थियों के साथ में सज़ा देने वाले और जाँच करने वाले भी शामिल रहते हैं, इस प्रकार ये समस्त घोटालों में आदर्श घोटाला होता है.
इस घोटाले में भी पकडे गए हैं, पर क्या हुआ, जाँच के नाम पर कमिटी गठित, और कागजी घोड़े इस विभाग से उस विभाग दोड़ने लग गए हैं. और इन घोड़ो की दोड़ कभी खत्म नहीं होगी यानि जाँच जारी रहेगी.
कुल मिला कर देश में घोटाले करने की नई विधि का उदय हुआ है जो आगे चल कर कई और भी आदर्श घोटालों को अंजाम देगी,
मुझे चम्बल के डकेतों की अक्ल पर तरस आ रहा है, क्या आपको भी?
आदर्श सोसायटी घोटाले में पहली बार ऐसा हुआ है की देश की समस्त हस्तियाँ जो विभिन्न क्षेत्रों से ताल्लुक रखती है, सब ने समवेत रूप से इस घोटाले में भाग लिया है जिसमे देश की रक्षा करने वाले सेना नायक, मंत्री, नेता, उद्योगपति, कार्पोरेट जगत के नामचीन लोग यानि सभी वर्गों के, और भी कई होंगे जिनका खुलासा होना बाकी है , और इसी के चलते ये घोटाला आदर्श घोटाला कहलाने का पात्र बना, पर देश को सामूहिक रूप से लूटने का ये पहला अवसर है,
देश के घोटालेबाजों के कर कमल गरीब जनता को दुहने में लगे हैं इस तथ्य से सभी अवगत हैं , और इस बात की इनमे प्रतियोगिता भी पिछले लम्बे समय चल रही थी की कौन कितना दुह सकता है,
पर ये पहली बार हुआ है की इस घोटाले को यूनियन बना कर अंजाम दिया गया.
मिलकर घोटाला करने का लाभ ये है की इसमें पोल खुलने पर भी पकडे जाने का डर नहीं रहता क्योंकि लाभार्थियों के साथ में सज़ा देने वाले और जाँच करने वाले भी शामिल रहते हैं, इस प्रकार ये समस्त घोटालों में आदर्श घोटाला होता है.
इस घोटाले में भी पकडे गए हैं, पर क्या हुआ, जाँच के नाम पर कमिटी गठित, और कागजी घोड़े इस विभाग से उस विभाग दोड़ने लग गए हैं. और इन घोड़ो की दोड़ कभी खत्म नहीं होगी यानि जाँच जारी रहेगी.
कुल मिला कर देश में घोटाले करने की नई विधि का उदय हुआ है जो आगे चल कर कई और भी आदर्श घोटालों को अंजाम देगी,
मुझे चम्बल के डकेतों की अक्ल पर तरस आ रहा है, क्या आपको भी?
Thursday, January 13, 2011
उनको ये शिकायत है
उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखता,
और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.'
'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.'
'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'
'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.'
'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.'
'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.'
'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.'
'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'
'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता'
-----------
मुझे अफ़सोस है की में इस ग़ज़ल के लेखक को नहीं जानता
पर मुझे अच्छी लगी उम्मीद है आपको भी अच्छी लगेगी
एम् एल गुर्जर
और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.'
'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.'
'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'
'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.'
'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.'
'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.'
'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.'
'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'
'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता'
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मुझे अफ़सोस है की में इस ग़ज़ल के लेखक को नहीं जानता
पर मुझे अच्छी लगी उम्मीद है आपको भी अच्छी लगेगी
एम् एल गुर्जर
क्या करे गुर्जर ?
गलत सरकारी नीतियों के कारण पशुपालन और कृषि से किसानो का मोहभंग हो रहा है, कई किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं, इस देश में किसी ने नहीं सुना होगा की कोई कम्पनी मालिक या अधिकारी आर्थिक नुकसान या मोसम की मार से मरा हो पर इस देश के अन्नदाता किसान के बारे में ये खबरें आज आम हैं, आज नोकरी में जो पैसा एक माह में कमाया जा सकता है वो किसान 6 माह में भी किसान नहीं कम सकता, इन हालत में अगर गुर्जरों जेसी जाती आरक्षण की मांग कर नोकरी करना चाहती है तो क्या बुरा है, रही रेल की पटरी पर बेठने की तो कोई ये बता दे की सरकार से किसी ने कोई भी मांग की हो और सरकार ने उसे मान ली हो, शायद नहीं आज की तारीख में सरकारों का ये रंवेया हो गया है की जब तक सड़क पर नहीं उतरो कोई सुनवाई नहीं होती, में जन आन्दोलनों से पिछले २० सालों से जुडा हुआ हूँ, और मेरा अनुभव है की कोई भी संगठन या जाती अपने मजे के लिए सडक पर नहीं बैठती है, आलोचना करने वालो को जिन्दगी की हकीकत से भी वास्ता रखना चहिए,
दो नाक वाले लोग
मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो।
पर वे बुजुर्ग कह रहे थे- आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी।
नाक उनकी काफी लंबी थी। मेरा ख्याल है, नाक की हिफाजत सबसे ज्यादा इसी देश में होती है। और या तो नाक बहुत नर्म होती है या छुरा बहुत तेज, जिससे छोटी सी बात से भी नाक कट जाती है। छोटे आदमी की नाक बहुत नाजुक होती है। यह छोटा आदमी नाक को छिपाकर क्यों नहीं रखता?
कुछ बड़े आदमी, जिनकी हैसियत है, इस्पात की नाक लगवा लेते हैं और चमड़े का रंग चढ़वा लेते हैं। कालाबाजार में जेल हो आए हैं औरत खुलेआम दूसरे के साथ ‘बाक्स’ में सिनेमा देखती है, लड़की का सार्वजनिक गर्भपात हो चुका है। लोग उस्तरा लिए नाक काटने को घूम रहे हैं। मगर काटें कैसे? नाक तो स्टील की है। चेहरे पर पहले जैसी ही फिट है और शोभा बढ़ा रही है।
स्मगलिंग में पकड़े गये हैं। हथकड़ी पड़ी है। बाजार में से ले जाये जा रहे हैं। लोग नाक काटने को उत्सुक हैं। पर वे नाक को तिजोड़ी मे रखकर स्मगलिंग करने गये थे। पुलिस को खिला-पिलाकर बरी होकर लौटेंगे और फिर नाक पहन लेंगे।
जो बहुत होशियार हैं, वे नाक को तलवे में रखते हैं। तुम सारे शरीर में ढूंढ़ो, नाक ही नहीं मिलती। नातिन की उम्र की दो लड़कियों से बलात्कार कर चुके हैं। जालसाजी और बैंक को धोखा देने में पकड़े जा चुके हैं। लोग नाक काटने को उतावले हैं, पर नाक मिलती ही नहीं। वह तो तलवे में है। कोई जीवशास्त्री अगर नाक की तलाश भी कर दे तो तलवे की नाक काटने से क्या होता है? नाक तो चेहरे पर की कटे, तो कुछ मतलब होता है।
और जो लोग नाक रखते ही नहीं हैं, उन्हें तो कोई डर ही नहीं है। दो छेद हैं, जिनसे सांस ले लेते हैं।
कुछ नाकें गुलाब के पौधे की तरह होती हैं। कलम कर दो तो और अच्छी शाखा बढ़ती है और फूल भी बढि़या लगते हैं। मैंने ऐसी फूलवाली खुशबूदार नाकें बहुत देखीं हैं। जब खुशबू कम होने लगती है, ये फिर कलम करा लेते हैं, जैसे किसी औरत को छेड़ दिया और जूते खा गये।
‘जूते खा गये’ अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाये कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है।
नाक और तरह से भी बढ़ती है। एक दिन एक सज्जन आये। बड़े दुखी थे। कहने लगे- हमारी तो नाक कट गयी। लड़की ने भागकर एक विजातीय से शादी कर ली। हम ब्राह्मण और लड़का कलाल! नाक कट गयी।
मैंने उन्हें समझाया कि कटी नहीं है, कलम हुई है। तीन-चार महीनों में और लंबी बढ़ जाएगी।
तीन-चार महीने बाद वे मिले तो खुश थे। नाक भी पहले से लंबी हो गयी थी। मैंने कहा- नाक तो पहले से लंबी मालूम होती है।
वे बोले- हां, कुछ बढ़ गयी है। काफी लोग कहते हैं, आपने बड़ा क्रांतिकारी काम किया। कुछ बिरादरी वाले भी कहते हैं। इसलिए नाक बढ़ गयी है।
कुछ लोग मैंने देखे हैं जो कई साल अपने शहर की नाक रहे हैं। उनकी नाक अगर कट जाए तो सारे शहर की नाक कट जाती है। अगर उन्हें संसद का टिकिट न मिले, तो सारा शहर नकटा हो जाता है। पर अभी मैं एक शहर गया तो लोगों ने पूछा- फलां साहब के क्या हाल हैं? वे इस शहर की नाक हैं। तभी एक मसखरे ने कहा- हां साहब, वे अभी भी शहर की नाक हैं, मगर छिनकी हुई।(यह वीभ्त्स रस है। रस सिद्धांत प्रेमियों को अच्छा लगेगा।)
मगर बात मैं उन सज्जन की कर रहा था जो मेरे सामने बैठे थे और लड़की की शादी पुराने ठाठ से ही करना चाहते थे। पहले वे रईस थे- याने मध्यम हैसियत के रईस। अब गरीब थे। बिगड़ा रईस और बिगड़ा घोड़ा एक तरह के होते हैं- दोनों बौखला जाते हैं। किससे उधार लेकर खा जाएं, ठिकाना नहीं। उधर बिगड़ा घोड़ा किसे कुचल दे, ठिकाना नहीं। आदमी को बिगड़े रईस और बिगड़े घोड़े, दोनों से दूर रहना चाहिए। मैं भरसक कोशिश करता हूं। मैं तो मस्ती से डोलते आते सांड को देखकर भी सड़क के किनारे की इमारत के बरामदे में चढ़ जाता हूं- बड़े भाईसाहब आ रहे हैं। इनका आदर करना चाहिए।
तो जो भूतपूर्व संपन्न बुजुर्ग मेरे सामने बैठे थे, वे प्रगतिशील थे। लड़की का अन्तरजातीय विवाह कर रहे थे। वे खत्री और लड़का शुद्ध कान्यकुब्ज। वे खुशी से शादी कर रहे थे। पर उसमें विरोधाभास यह था कि शादी ठाठ से करना चाहते थे। बहुत लोग एक परंपरा से छुटकारा पा लेते हैं, पर दूसरी से बंधे रहते हैं। रात को शराब की पार्टी से किसी ईसाई दोस्त के घर आ रहे हैं, मगर रास्ते में हनुमान का मंदिर दिख जाए तो थोड़ा तिलक भी सिंदूर का लगा लेंगे। मेरा एक घोर नास्तिक मित्र था। हम घूमने निकलते तो रास्ते में मंदिर देखकर वे कह उठते- हरे राम! बाद में पछताते भी थे।
तो मैं उन बुजुर्ग को समझा रहा था- आपके पास रुपये हैं नहीं। आप कर्ज लेकर शादी का ठाठ बनायेंगे। पर कर्ज चुकायेंगे कहां से? जब आपने इतना नया कदम उठाया है, कि अन्तरजातीय विवाह कर रहे हैं, तो विवाह भी नये ढंग से कीजिए। लड़का कान्यकुबज का है। बिरादरी में शादी करता तो कई हजार उसे मिलते। लड़के शादी के बाजार में मवेशी की तरह बिकते हैं। अच्छा मालवी बैल और हरयाणा की भैंस ऊंची कीमत पर बिकती हैं। लड़का इतना त्याग तो लड़की के प्रेम के लिए कर चुका। फिर भी वह कहता है- अदालत जाकर शादी कर लेते हैं। बाद में एक पार्टी कर देंगे। आप आर्य-समाजी हैं। घण्टे भर में रास्ते में आर्यसमाज मंदिर में वैदिक रीति से शादी कर डालिए। फिर तीन-चार सौ रुपयों की एक पार्टी दे डालिए। लड़के को एक पैसा भी नहीं चाहिए। लड़की के कपड़े वगैरह मिलाकर शादी हजार में हो जाएगी।
वे कहने लगे- बात आप ठीक कहते हैं। मगर रिश्तेदारों को तो बुलाना ही पड़ेगा। फिर जब वे आयेंगे तो इज्जत के ख्याल से सजावट, खाना, भेंट वगैरह देनी होगी।
मैंने कहा- आपका यहां तो कोई रिश्तेदार है नहीं। वे हैं कहां?
उन्होंने जवाब दिया- वे पंजाब में हैं। पटियाला में ही तीन करीबी रिश्तेदार हैं। कुछ दिल्ली में हैं। आगरा में हैं।
मैंने कहा- जब पटियाला वाले के पास आपका निमंत्रण-पत्र पहुचेगा, तो पहले तो वह आपको दस गालियां देगा- मई का यह मौसम, इतनी गर्मी। लोग तड़ातड़ लू से मर रहे हैं। ऐसे में इतना खर्च लगाकर जबलपुर जाओ। कोई बीमार हो जाए तो और मुसीबत। पटियाला या दिल्ली वाला आपका निमंत्रण पाकर खुश नहीं दुखी होगा। निमंत्रण-पत्र न मिला तो वह खुश होगा और बाद में बात बनायेगा। कहेगा- आजकल जी, डाक की इतनी गड़बड़ी हो गयी है कि निमंत्रण पत्र ही नहीं मिला। वरना ऐसा हो सकता था कि हम ना आते।
मैंने फिर कहा- मैं आपसे कहता हूं कि दूर से रिश्तेदार का निमंत्रण पत्र मुझे मिलता है, तो मैं घबरा उठता हूं।
सोचता हूं- जो ब्राह्मण ग्यारह रुपये में शनि को उतार दे, पच्चीस रुपयों में सगोत्र विवाह करा दे, मंगली लड़की का मंगल पंद्रह रुपयों में उठाकर शुक्र के दायरे में फेंक दे, वह लग्न सितंबर से लेकर मार्च तक सीमित क्यों नहीं कर देता ? मई और जून की भयंकर गर्मी की लग्नें गोल क्यों नहीं कर देता ? वह कर सकता है। और फिर ईसाई और मुसलमानों में जब बिना लग्न शादी होती है, तो क्या वर-वधू मर जाते हैं ? आठ प्रकार के विवाहों में जो ‘गंधर्व विवाह’ है वह क्या है ? वह यही शादी है जो आज होने लगा है, कि लड़का-लड़की भागकर कहीं शादी कर लेते हैं। इधर लड़की का बाप गुस्से में पुलिस में रिपोर्ट करता है कि अमुक लड़का हमारी ‘नाबालिग’ लड़की को भगा ले गया है। मगर कुछ नहीं होता; क्योंकि लड़की मैट्रिक का सर्टिफिकेट साथ ले जाती है जिसमें जन्म-तारीख होती है।
वे कहने लगे- नहीं जी, रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी।
मैंने कहा- पटियाला से इतना किराया लगाकर नाक काटने इधर कोई नहीं आयेगा। फिर पटियाला में कटी नाक को कौन इधर देखेगा। काट लें पटियाला में।
वे थोड़ी देर गुमसुम बैठे रहे।
मैंने कहा- देखिए जी, आप चाहें तो मैं पुरोहित हो जाता हूं और घण्टे भर में शादी करा देता हूं।
वे चौंके। कहने लगे- आपको शादी कराने की विधि आती है ?
मैंने कहा- हां, ब्राह्मण का बेटा हूं। बुजुर्गों ने सोचा होगा कि लड़का नालायक निकल जाए और किसी काम-धन्धे के लायक न रहे, तो इसे कम से कम सत्यनारायण की कथा और विवाह विधि सिखा दो। ये मैं बचपन में ही सीख गया था।
मैंने आगे कहा- और बात यह है कि आजकल कौन संस्कृत समझता है। और पण्डित क्या कह रहा है, इसे भी कौन सुनता है। वे तो ‘अम’ और ‘अह’ इतना ही जानते हैं। मैं इस तरह मंगल-श्लोक पढ़ दूं तो भी कोई ध्यान नहीं देगा-
ओम जेक एण्ड विल वेंट अप दी हिल टु फेच ए पेल ऑफ वाटरम,
ओम जेक फैल डाउन एण्ड ब्रोक हिज क्राउन एण्ड जिल केम ट्रम्बलिंग
आफ्टर कुर्यात् सदा मंगलम्........इसे लोग वैदिक मंत्र समझेंगे।
वे हंसने लगे।
मैंने कहा- लड़का उत्तर प्रदेश का कान्यकुब्ज और आप पंजाब के खत्री- एक दूसरे के रिश्तेदारों को कोई नहीं जानता। आप एक सलाह मेरी मानिए। इससे कम में भी निपट जाएगा और नाक भी कटने से बच जाएगी। लड़के के पिता की मृत्यु हो चुकी है। आप घण्टे भर में शादी करवा दीजिए। फिर रिश्तेदारों को चिट्ठियां लिखिए- ‘इधर लड़के के पिता को दिल का तेज दौरा पड़ा। डाक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी। दो-तीन घंटे वे किसी तरह जी सकते थे। उन्होंने इच्छा प्रकट की कि मृत्यु के पहले ही लड़के की शादी हो जाए तो मेरी आत्मा को शान्ति मिल जाएगी। लिहाजा उनकी भावना को देखते हुए हमने फौरन शादी कर दी। लड़का-लड़की वर-वधू के रूप में उनके सामने आये। उनसे चरणों पर सिर रखे। उन्होंने इतना ही कहा- सुखी रहो। और उनके प्राण-पखेरू उड़ गये। आप माफ करेंगे कि इसी मजबूरी के कारण हम आपको शादी में नहीं बुला सके। कौन जानता है आपके रिश्तेदारों में कि लडंके के पिता की मृत्यु कब हुई ?
उन्होंने सोचा। फिर बोले- तरकीब ठीक है ! पर इस तरह की धोखाधड़ी मुझे पसंद नहीं।
खैर मैं उन्हें काम का आदमी लगा नहीं।
दूसरे दिन मुझे बाहर जाना पड़ा। दो-तीन महीने बाद लौटा तो लोगों ने बताया कि उन्होंने सामान और नकद लेकर शादी कर डाली।
तीन-चार दिन बाद से ही साहूकार सवेरे से तकादा करने आने लगे।
रोज उनकी नाक थोड़ी-थोड़ी कटने लगी।
मैंने पूछा- अब क्या हाल हैं ?
लोग बोले- अब साहूकार आते हैं तो यह देखकर निराश लौट जाते हैं कि काटने को नाक ही नहीं बची।
मैंने मजाक में कहा- साहूकारों से कह दो कि इनकी दूसरी नाक पटियाला में पूरी रखी है। वहां जाकर काट लो।
लेखक - हरिशंकर परसाई
विकिपीडिया से साभार
link-http://wikisource.org
पर वे बुजुर्ग कह रहे थे- आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी।
नाक उनकी काफी लंबी थी। मेरा ख्याल है, नाक की हिफाजत सबसे ज्यादा इसी देश में होती है। और या तो नाक बहुत नर्म होती है या छुरा बहुत तेज, जिससे छोटी सी बात से भी नाक कट जाती है। छोटे आदमी की नाक बहुत नाजुक होती है। यह छोटा आदमी नाक को छिपाकर क्यों नहीं रखता?
कुछ बड़े आदमी, जिनकी हैसियत है, इस्पात की नाक लगवा लेते हैं और चमड़े का रंग चढ़वा लेते हैं। कालाबाजार में जेल हो आए हैं औरत खुलेआम दूसरे के साथ ‘बाक्स’ में सिनेमा देखती है, लड़की का सार्वजनिक गर्भपात हो चुका है। लोग उस्तरा लिए नाक काटने को घूम रहे हैं। मगर काटें कैसे? नाक तो स्टील की है। चेहरे पर पहले जैसी ही फिट है और शोभा बढ़ा रही है।
स्मगलिंग में पकड़े गये हैं। हथकड़ी पड़ी है। बाजार में से ले जाये जा रहे हैं। लोग नाक काटने को उत्सुक हैं। पर वे नाक को तिजोड़ी मे रखकर स्मगलिंग करने गये थे। पुलिस को खिला-पिलाकर बरी होकर लौटेंगे और फिर नाक पहन लेंगे।
जो बहुत होशियार हैं, वे नाक को तलवे में रखते हैं। तुम सारे शरीर में ढूंढ़ो, नाक ही नहीं मिलती। नातिन की उम्र की दो लड़कियों से बलात्कार कर चुके हैं। जालसाजी और बैंक को धोखा देने में पकड़े जा चुके हैं। लोग नाक काटने को उतावले हैं, पर नाक मिलती ही नहीं। वह तो तलवे में है। कोई जीवशास्त्री अगर नाक की तलाश भी कर दे तो तलवे की नाक काटने से क्या होता है? नाक तो चेहरे पर की कटे, तो कुछ मतलब होता है।
और जो लोग नाक रखते ही नहीं हैं, उन्हें तो कोई डर ही नहीं है। दो छेद हैं, जिनसे सांस ले लेते हैं।
कुछ नाकें गुलाब के पौधे की तरह होती हैं। कलम कर दो तो और अच्छी शाखा बढ़ती है और फूल भी बढि़या लगते हैं। मैंने ऐसी फूलवाली खुशबूदार नाकें बहुत देखीं हैं। जब खुशबू कम होने लगती है, ये फिर कलम करा लेते हैं, जैसे किसी औरत को छेड़ दिया और जूते खा गये।
‘जूते खा गये’ अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाये कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है।
नाक और तरह से भी बढ़ती है। एक दिन एक सज्जन आये। बड़े दुखी थे। कहने लगे- हमारी तो नाक कट गयी। लड़की ने भागकर एक विजातीय से शादी कर ली। हम ब्राह्मण और लड़का कलाल! नाक कट गयी।
मैंने उन्हें समझाया कि कटी नहीं है, कलम हुई है। तीन-चार महीनों में और लंबी बढ़ जाएगी।
तीन-चार महीने बाद वे मिले तो खुश थे। नाक भी पहले से लंबी हो गयी थी। मैंने कहा- नाक तो पहले से लंबी मालूम होती है।
वे बोले- हां, कुछ बढ़ गयी है। काफी लोग कहते हैं, आपने बड़ा क्रांतिकारी काम किया। कुछ बिरादरी वाले भी कहते हैं। इसलिए नाक बढ़ गयी है।
कुछ लोग मैंने देखे हैं जो कई साल अपने शहर की नाक रहे हैं। उनकी नाक अगर कट जाए तो सारे शहर की नाक कट जाती है। अगर उन्हें संसद का टिकिट न मिले, तो सारा शहर नकटा हो जाता है। पर अभी मैं एक शहर गया तो लोगों ने पूछा- फलां साहब के क्या हाल हैं? वे इस शहर की नाक हैं। तभी एक मसखरे ने कहा- हां साहब, वे अभी भी शहर की नाक हैं, मगर छिनकी हुई।(यह वीभ्त्स रस है। रस सिद्धांत प्रेमियों को अच्छा लगेगा।)
मगर बात मैं उन सज्जन की कर रहा था जो मेरे सामने बैठे थे और लड़की की शादी पुराने ठाठ से ही करना चाहते थे। पहले वे रईस थे- याने मध्यम हैसियत के रईस। अब गरीब थे। बिगड़ा रईस और बिगड़ा घोड़ा एक तरह के होते हैं- दोनों बौखला जाते हैं। किससे उधार लेकर खा जाएं, ठिकाना नहीं। उधर बिगड़ा घोड़ा किसे कुचल दे, ठिकाना नहीं। आदमी को बिगड़े रईस और बिगड़े घोड़े, दोनों से दूर रहना चाहिए। मैं भरसक कोशिश करता हूं। मैं तो मस्ती से डोलते आते सांड को देखकर भी सड़क के किनारे की इमारत के बरामदे में चढ़ जाता हूं- बड़े भाईसाहब आ रहे हैं। इनका आदर करना चाहिए।
तो जो भूतपूर्व संपन्न बुजुर्ग मेरे सामने बैठे थे, वे प्रगतिशील थे। लड़की का अन्तरजातीय विवाह कर रहे थे। वे खत्री और लड़का शुद्ध कान्यकुब्ज। वे खुशी से शादी कर रहे थे। पर उसमें विरोधाभास यह था कि शादी ठाठ से करना चाहते थे। बहुत लोग एक परंपरा से छुटकारा पा लेते हैं, पर दूसरी से बंधे रहते हैं। रात को शराब की पार्टी से किसी ईसाई दोस्त के घर आ रहे हैं, मगर रास्ते में हनुमान का मंदिर दिख जाए तो थोड़ा तिलक भी सिंदूर का लगा लेंगे। मेरा एक घोर नास्तिक मित्र था। हम घूमने निकलते तो रास्ते में मंदिर देखकर वे कह उठते- हरे राम! बाद में पछताते भी थे।
तो मैं उन बुजुर्ग को समझा रहा था- आपके पास रुपये हैं नहीं। आप कर्ज लेकर शादी का ठाठ बनायेंगे। पर कर्ज चुकायेंगे कहां से? जब आपने इतना नया कदम उठाया है, कि अन्तरजातीय विवाह कर रहे हैं, तो विवाह भी नये ढंग से कीजिए। लड़का कान्यकुबज का है। बिरादरी में शादी करता तो कई हजार उसे मिलते। लड़के शादी के बाजार में मवेशी की तरह बिकते हैं। अच्छा मालवी बैल और हरयाणा की भैंस ऊंची कीमत पर बिकती हैं। लड़का इतना त्याग तो लड़की के प्रेम के लिए कर चुका। फिर भी वह कहता है- अदालत जाकर शादी कर लेते हैं। बाद में एक पार्टी कर देंगे। आप आर्य-समाजी हैं। घण्टे भर में रास्ते में आर्यसमाज मंदिर में वैदिक रीति से शादी कर डालिए। फिर तीन-चार सौ रुपयों की एक पार्टी दे डालिए। लड़के को एक पैसा भी नहीं चाहिए। लड़की के कपड़े वगैरह मिलाकर शादी हजार में हो जाएगी।
वे कहने लगे- बात आप ठीक कहते हैं। मगर रिश्तेदारों को तो बुलाना ही पड़ेगा। फिर जब वे आयेंगे तो इज्जत के ख्याल से सजावट, खाना, भेंट वगैरह देनी होगी।
मैंने कहा- आपका यहां तो कोई रिश्तेदार है नहीं। वे हैं कहां?
उन्होंने जवाब दिया- वे पंजाब में हैं। पटियाला में ही तीन करीबी रिश्तेदार हैं। कुछ दिल्ली में हैं। आगरा में हैं।
मैंने कहा- जब पटियाला वाले के पास आपका निमंत्रण-पत्र पहुचेगा, तो पहले तो वह आपको दस गालियां देगा- मई का यह मौसम, इतनी गर्मी। लोग तड़ातड़ लू से मर रहे हैं। ऐसे में इतना खर्च लगाकर जबलपुर जाओ। कोई बीमार हो जाए तो और मुसीबत। पटियाला या दिल्ली वाला आपका निमंत्रण पाकर खुश नहीं दुखी होगा। निमंत्रण-पत्र न मिला तो वह खुश होगा और बाद में बात बनायेगा। कहेगा- आजकल जी, डाक की इतनी गड़बड़ी हो गयी है कि निमंत्रण पत्र ही नहीं मिला। वरना ऐसा हो सकता था कि हम ना आते।
मैंने फिर कहा- मैं आपसे कहता हूं कि दूर से रिश्तेदार का निमंत्रण पत्र मुझे मिलता है, तो मैं घबरा उठता हूं।
सोचता हूं- जो ब्राह्मण ग्यारह रुपये में शनि को उतार दे, पच्चीस रुपयों में सगोत्र विवाह करा दे, मंगली लड़की का मंगल पंद्रह रुपयों में उठाकर शुक्र के दायरे में फेंक दे, वह लग्न सितंबर से लेकर मार्च तक सीमित क्यों नहीं कर देता ? मई और जून की भयंकर गर्मी की लग्नें गोल क्यों नहीं कर देता ? वह कर सकता है। और फिर ईसाई और मुसलमानों में जब बिना लग्न शादी होती है, तो क्या वर-वधू मर जाते हैं ? आठ प्रकार के विवाहों में जो ‘गंधर्व विवाह’ है वह क्या है ? वह यही शादी है जो आज होने लगा है, कि लड़का-लड़की भागकर कहीं शादी कर लेते हैं। इधर लड़की का बाप गुस्से में पुलिस में रिपोर्ट करता है कि अमुक लड़का हमारी ‘नाबालिग’ लड़की को भगा ले गया है। मगर कुछ नहीं होता; क्योंकि लड़की मैट्रिक का सर्टिफिकेट साथ ले जाती है जिसमें जन्म-तारीख होती है।
वे कहने लगे- नहीं जी, रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी।
मैंने कहा- पटियाला से इतना किराया लगाकर नाक काटने इधर कोई नहीं आयेगा। फिर पटियाला में कटी नाक को कौन इधर देखेगा। काट लें पटियाला में।
वे थोड़ी देर गुमसुम बैठे रहे।
मैंने कहा- देखिए जी, आप चाहें तो मैं पुरोहित हो जाता हूं और घण्टे भर में शादी करा देता हूं।
वे चौंके। कहने लगे- आपको शादी कराने की विधि आती है ?
मैंने कहा- हां, ब्राह्मण का बेटा हूं। बुजुर्गों ने सोचा होगा कि लड़का नालायक निकल जाए और किसी काम-धन्धे के लायक न रहे, तो इसे कम से कम सत्यनारायण की कथा और विवाह विधि सिखा दो। ये मैं बचपन में ही सीख गया था।
मैंने आगे कहा- और बात यह है कि आजकल कौन संस्कृत समझता है। और पण्डित क्या कह रहा है, इसे भी कौन सुनता है। वे तो ‘अम’ और ‘अह’ इतना ही जानते हैं। मैं इस तरह मंगल-श्लोक पढ़ दूं तो भी कोई ध्यान नहीं देगा-
ओम जेक एण्ड विल वेंट अप दी हिल टु फेच ए पेल ऑफ वाटरम,
ओम जेक फैल डाउन एण्ड ब्रोक हिज क्राउन एण्ड जिल केम ट्रम्बलिंग
आफ्टर कुर्यात् सदा मंगलम्........इसे लोग वैदिक मंत्र समझेंगे।
वे हंसने लगे।
मैंने कहा- लड़का उत्तर प्रदेश का कान्यकुब्ज और आप पंजाब के खत्री- एक दूसरे के रिश्तेदारों को कोई नहीं जानता। आप एक सलाह मेरी मानिए। इससे कम में भी निपट जाएगा और नाक भी कटने से बच जाएगी। लड़के के पिता की मृत्यु हो चुकी है। आप घण्टे भर में शादी करवा दीजिए। फिर रिश्तेदारों को चिट्ठियां लिखिए- ‘इधर लड़के के पिता को दिल का तेज दौरा पड़ा। डाक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी। दो-तीन घंटे वे किसी तरह जी सकते थे। उन्होंने इच्छा प्रकट की कि मृत्यु के पहले ही लड़के की शादी हो जाए तो मेरी आत्मा को शान्ति मिल जाएगी। लिहाजा उनकी भावना को देखते हुए हमने फौरन शादी कर दी। लड़का-लड़की वर-वधू के रूप में उनके सामने आये। उनसे चरणों पर सिर रखे। उन्होंने इतना ही कहा- सुखी रहो। और उनके प्राण-पखेरू उड़ गये। आप माफ करेंगे कि इसी मजबूरी के कारण हम आपको शादी में नहीं बुला सके। कौन जानता है आपके रिश्तेदारों में कि लडंके के पिता की मृत्यु कब हुई ?
उन्होंने सोचा। फिर बोले- तरकीब ठीक है ! पर इस तरह की धोखाधड़ी मुझे पसंद नहीं।
खैर मैं उन्हें काम का आदमी लगा नहीं।
दूसरे दिन मुझे बाहर जाना पड़ा। दो-तीन महीने बाद लौटा तो लोगों ने बताया कि उन्होंने सामान और नकद लेकर शादी कर डाली।
तीन-चार दिन बाद से ही साहूकार सवेरे से तकादा करने आने लगे।
रोज उनकी नाक थोड़ी-थोड़ी कटने लगी।
मैंने पूछा- अब क्या हाल हैं ?
लोग बोले- अब साहूकार आते हैं तो यह देखकर निराश लौट जाते हैं कि काटने को नाक ही नहीं बची।
मैंने मजाक में कहा- साहूकारों से कह दो कि इनकी दूसरी नाक पटियाला में पूरी रखी है। वहां जाकर काट लो।
लेखक - हरिशंकर परसाई
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