Sunday, April 10, 2011

ठंडे के लिए गर्म करते बाज़ार ..

आजकल गर्मी है ..है और अब गर्मी भी इक्सवी सदी की है .और इस ज़माने में घर को वातुनुकुलित किया जाता है.. उनके द्वारा जो इस देश के संभ्रात हैं .धनी है .इसलिए अब मोसम की गर्मी का एहसास इस एयर कंडीशन के ज़माने भले ही उतना हो ना हो जितना ..सडक पर मिटटी डालते या किसी बिल्डिंग के चोथे माले पर सर पर ईंटे उठा कर ले जाने वाले मजदूरों को लगती है ..

मुझे भी गर्मी लगती है ..में भी इच्छुक हूँ की गर्मी दूर करने का कोई जुगाड़ हो ..में छोटा था तब गाँव में कुए के कुंड में जाकर पड़े रहते थे ..बिलकुल उसी तरह जेसे गर्मी में शहर के कुत्ते भरी दुपहरिया में मुंसीपाल्टी के गटर में पड़े रहते हैं ..पर अब में शहर में रहता हूँ ..आर्थिक लाचारियों ने मुझे और इस देश के कई युवाओं को गाँवों में टिकने ही नहीं दिया और वे पलायन कर शहर में किस्मत आजमाने आ गये ..कुछ मजदुर बन गए ..कुछ कबाड़ी ..कुछ दिहाड़ी मजदुर .कुछ चपरासी तो कुछ व्यवस्था से लाचार थे और बगावत के मूड में थे इस कार्य में शहर उनको चम्बल से ज्यादा अनुकूल लगा ..और वे पहले तो छोटे मोटे चोट्टे बने ..फिर सीढ़ी दर सीढ़ी प्रसिधी की सीढियाँ चढ़ते गए और फलाना पार्टी के टटपुन्जिये और गिरहकट मोसमी नेता बन गए ..यहाँ मोसमी नेता से तात्पर्य ..ये है की वे केवल चुनाव के दिनों में खद्दर पहन कर वोट मांगने के लिए बाहर से आने वाले उनके बड़े नेताओं के साथ शहर में और उसके आस पास के गाँवों में निकलते हैं ..बाकी समय में वे जमीन से लेकर आसमान तक की दलाली में मशगुल रहते हैं ..

चलो छोड़ो ये सब ,, में गर्मी की बात कर रहा था ..अब शहर में .. में ना तो घोड़े में था और ना ही गधे में था ..ये संकर नस्ल भी बड़ी अजीब होती है ..आदमी को कहीं का नहीं छोडती ..मेरी किस्म शहर के निम्न मध्यवर्ग की थी जो डेढ़ कमरे की तंग जगह में निवास करता है जो कमरे कम और जंगली जानवर की मांद ज्यादा लगते हैं .बस में भी कुछ इसी प्रकार का जीवन जी रहा हूँ इसलिए . मज़बूरी में गर्मी में ऊपर का बदन नंगा लिए ..स्लीपर चटकाए ..लुंगी लटकाए ..गर्मी से त्रस्त किसी शहरी सूअर की तरह आधी रात तक डोलता रहता हूँ ..आधी रात को जब थोडा मोसम ठंडा होता है ..तब जा कर कहीं उसे निद्रा रानी अपने आगोश में लेती है ..

ये तो भला हो ठंडा बेचने वाली कम्पनियों का जिनके विज्ञापन देख देख कर ही में ठंडा हुआ महसूस करता हूँ ..पर विज्ञापनों की प्रक्रति बड़ी ही गरमा गर्म है ..

अब एक विज्ञापन आता है ..जिसमे एक अति सुन्दर कोमलांगी ..जिसका सुकुमार सुडोल तन सांचे में ढला प्रतीत हो रहा है .मुझे प्रतीत इसलिए हो रहा है क्योंकि उस कोमलांगी के उन्ही सुकोमल अंगो को विज्ञापन में दर्शाया जा रहा है .विज्ञापन निर्माता ने दर्शकों की पसंद का खूब ध्यान रखा है ..अब दर्जी उस कोमलांगी के तन का फीते से नाप ले रहा है . और कोमलांगी ज्योंही दर्जी नाप लेता है वो गर्म गर्म आंहे भरने लग जाती है ..अब आंहे ठंडी तो होगी नहीं क्योंकि ठंडी आंहे तो हम जेसे कड़को और निम्न जीवन जीने वाले नालायक लोंगो के हिस्से में ही है .और दर्जी जो है आंहे भरती कोमलांगी का नाप मास्टर को जोर से चिल्ला कर बता रहा है ..वो नाप कापी में भी लिख सकता है ..पर वो चिल्ला रहा है ..और उस कोमलांगी के सुकोमल अंगो का नाप क्या है ..उसकी भोगोलिक स्थिति क्या है ..उसे पूरा देश सुन रहा है .देश को उसका नाप बताना जरुरी है क्योंकि ठंडा देश का ग्राहक ही पिएगा .इसलिए . उसके नाप क्या है ..ये तो आप सब ने सुन ही लिए होंगे ..मेने भी सुने ..सभी फलां ठन्डे पेय पदार्थ का गरमा गर्म विज्ञापन देख कर ..इस गर्मी में और भी गर्म हो रहे हैं ..

पर अब करे क्या ..कोमलांगी तो आग लगा कर चली गई ....टी वी पर '''''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र ..''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र''''''' नामक कभी ना खत्म होने वाला धारावाहिक आ जाता है ,,,अब .पुरे देश में हाहाकार मच गया है ..तापक्रम अचानक से बढ़ गया है ..विज्ञापन एक मिनट का होगा ..पर कभी ना उतरने वाली गर्मी चढ़ा कर गया है ..अब एक ही इलाज है ..वो फलां ठंडा पेय खरीद लो पर पी कर ठन्डे ठन्डे सो जाओ ..बढ़िया तरीका है ठंडा बेचने का ..अच्छा लगा ..

एक और है ..

एक लड़का अपनी प्रेयसी से मिलने उसके घर गया ..दोनों मुहब्बत की बातें करे ही की ..लड़की का बाप आ जाता है ..छोरा छिप जाता है ..बाप देखभाल कर वापस चला जाता है ..लड़का डीप फ्रिज़ में कुल्फी खा रहा है ..में जब भी ये विज्ञापन देखता हूँ ..मुझे वेसे ही ठण्ड लगने लग जाती है ..उस लड़के ने ये केसे संभव किया होगा .. जबकि लड़की भी बाहर थी ..हद हो गई रे बेवकूफ बनाने की ..कम से कम फीज़ में दों प्यार करने वालों को तो साथ दिखाते तो थोडा व्यवहारिक लगता ..

एक और है ..

उसमे कुछ अति सुन्दर सखियां स्विमिंगपुल में कुल जमा दों अति अल्प और सिमित वस्त्रों में जो वस्त्र कम बल्कि धज्जियाँ ज्यादा लग रहे थे .धारण कर जल क्रीडा और केलि किल्लोल कर रही है ..ये धज्जियाँ बड़ी मुश्किल से उनके सुकोमल तन पर लगभग राम भरोसे लटकी या अटकी थी ..ज्यों ही वो उछलती ..मुझे डर लगने लग जाता की कहीं संस्क्रती का जनाजा नहीं निकल जाए.. पर .ये तो भला हो हमारे देश के कानूनों का और संस्क्रती के पेरोकारों का जिनके मजबूत पंजे इन धज्जियों को हवा में उड़ने नहीं दे रहे हैं ..क्योंकि अमेरिका में तो ये भरी ठण्ड में ही वहां के कानूनों के लचीलेपन का लाभ उठा कर हवा में लहराने लग जाती है ..

वे सभी सखियां फलां किस्म का ठंडा पेय पी रही है और अपनी लुभावनी भाव भंगिमाओ से पुरे देश के ठंडा पीने के तलबगार उपभोक्ताओं को पीने के लिए प्रेरित कर रही है ..और सब उनके मार्गदर्शन अनुसार जेब कटवा रहे हैं और वो ठंडा पी कर ठन्डे हो रहे हैं जो एक रुप्प्ली का ठंडा मीठा पानी है .क्योंकि .इन रूपसियों के अर्धनग्न सुडोल तन ने सबकी मति हर ली है ..अन्यथा वो लस्सी नहीं पीते छाछ नहीं पीते ..दही नहीं खाते ..पर क्या करें ..इस देश में इन ठंडा बेचने वालों को भी ठंडा करने की जरुरत होगी ..

No comments: