सुंदर होना अथवा नहीं होना ये प्रक्रति और भोगोलिकता पर निर्भर है , गोरा रंग बिकाऊ है इसी कारण हप्ते में गोरा बनाने का धंधा जोरों पर है और इस धंधे ने अब कुटीर उद्योग का स्वरूप ले लिया है गली गली में ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं.
दुनिया की सबसे पहली सुन्दरता का बाजारू प्रतिनिधित्व करने वाली बार्बी गुडिया भी गोरे रंग की ही थी, अगर कोई अफ्रीका में पैदा हो जाए तो उसमे उसका क्या कुसूर, और अगर कोई अमेरिका में तो उसका भी क्या कुसूर....
कुसूर मानसिकता का है,
अव्वल तो ये की कोई सुंदर है या नहीं इसकी राय किसी की भी उसकी निजी हो सकती है.
पर बाजारवाद के इस दौर में सुन्दरता को बेचने वालों ने इसके कुछ मापदंड गढ़ लिए हैं.
और इस कथित मापदंड की सुन्दरता से संपन्न कन्याएं विलुप्त प्रजाति के सामान हैं, और
मुझे लगता है की इस प्रकार की दुर्लभ कन्याएं आजकल मोडलिंग, फिल्म और टीवी धारवाहिकों में ही नज़र आती है, इस कारण इनकी मांग और पूर्ति का संतुलन बिगड़ा हुआ है.
मेरे पड़ोस में एक सज्जन के लड़के को सुन्दर पत्नी चहिए थी, पर जिस मापदंड की लड़की चहिए थी, उस प्रकार की मिल नहीं रही थी , लड़का आये दिन अच्छी भली, शिक्षित, सुसंस्कृत, और अच्छे परिवारों की लड़कियों को देखने के बाद मना कर देता, लड़का भी अपनी सूरत को लेकर बड़ा ही अंदेशे में रहता था, क्योंकि किसी सयाने मसखरे ने उसके साथ मसखरी कर के उसके दिमाग में ये बेठा दिया की उसकी सूरत फलां फिल्म के हीरो से मिलती है, लड़के ने अपनी सूरत को शीशे में देखा होगा तो सयाने की बात में दम लगा होगा, कुछ कमी अगर महसूस हुई होगी तो उसने उस हीरो की स्टाइल के बाल कटवा कर और उसके जेसी वेशभूषा धारण कर पूरी कर ली,
भगवान किसी दुश्मन के साथ भी ऐसा नहीं करे, एक दिन वो कहीं से लड़की देख कर आ रहा था और चलती बाइक पर ही अपने बाल संवार रहा था की बाइक से नीचे मुहं के बल गिर गया और सामने के चारों दांत टूट गए, सूरत हीरो से विलेन जेसी हो गई, हालत ये हो गई की कोई भी लड़की उससे शादी करने को राज़ी नहीं,,
खेर अब एक और सज्जन जो लड़के की इच्छा अनुसार काफी ढूंडढांड कर आसमान से उतरी परी जेसी कन्या को अपने घर की बहु बना कर लाये, लड़का सुन्दर पत्नी को को पा कर फुला नहीं समाता था, उसकी पूरी मित्रमंडली में उसकी धाक हो गई, आये दिन किसी भी पार्टी या फंक्शन में अपनी पत्नी की सुन्दरता का प्रदर्शन करने का अवसर नहीं चुकता, लड़की बेचारी परेशान उसे ये सब अच्छा नहीं लगता,
धीरे धीरे गली मुहल्ले और पान की दुकान और नुक्कड़ो पर उसकी सुन्दरता के चर्चे होने लगे, हालात ये बन गए की मुहल्ले के शोहदे और लुच्चे उसके घर के आमने सामने सारे दिन डेरा जमाये रहते की कब एक बार दीदार हो जाए, ज्योंही कभी शाम को लड़का उसको लेकर निकलता पूरी फौज उनके पीछे लग जाती और ठेठ उनकी मंजिल तक पहुंचा कर आती, कोई कोई शोहदा तो वही धुनी रमा लेता और प्रोग्राम ख़त्म होने पर वापसी में भी घर की फाटक तक छोड़ कर जाता, अब लुच्चों के कौन मुहँ लगे और पुलिस में भी क्या कह के शिकायत करें, घर की बदनामी का भी बेठे बिठाये डर,
लड़की की कोई सहेली अपने पति या भाई के साथ कभी उसे मिलने आते तो सहेली के भाई और पति भी उसकी सुन्दरता की तारीफ करने लगते, परिणाम ये की सज्जनों की भी सज्जनता संदेह के घेरे में आ गई, ठीक बात भी है मेनका ने विश्वामित्र का ईमान भी खराब कर दिया तो साधारण मानव का खराब होत्ते देर ही क्या लगे हैं....
इन सब हालातों के कारण लड़का भी अपनी पत्नी की अतिसुन्दरता से आजिज़ आ गया, एक दिन उसने अखबार में किसी रिसर्च के बारे में पढ़ा जिसमे बताया गया की सुन्दर पत्नियों के पति हार्ट अटेक के शिकार ज्यादा होते हैं, उसी दिन से उसे भी मारे शंका या रिसर्च की बात सही होगी इस कारण वो भी अपने सीने में थोडा थोडा दर्द महसूस करने लगा, पर अब किया क्या जा सकता था भुगतो अब,
प्रशंगवश में एक अनुभव और बाँटना चाहता हूँ, मेरे पडोसी के लड़के ने एक अति सुन्दर कन्या से विवाह किया, चाँद सा मुखड़ा पर अक्ल में थोड़ी पैदल, पर लड़के को कोई शिकवा नहीं, लड़की सुन्दर है तो काफी है जेसे घरगरस्थी चलाना गौण हो और नस्ल सुधार प्रमुख, लड़की सारे दिन लटरपटर कर चलती फुदकती रहती थी , इस क्रम में एक दिन घर की सीढियों से गिर गई, चाँद से मुखड़े पर पुरे पंद्रह टांके आये, एक दांत पूरा और एक आधा टूट गया, लड़के को उसी दिन बुखार आ गया,
अब लड़कों को या उन लड़कियों या उन माँ बापों को कौन बताये की सुन्दर होना सब कुछ नहीं है, इन्सान के गुण मायने रखते है, सुन्दरता बहूत क्षणिक होती है सुन्दरता छलावा है, वो अस्थाई है
सुन्दरता को छु नहीं सकते केवल महसूस किया जाता है, ये तो आपकी मनोस्थति पर निर्भर करता है की आप किसे सुन्दर मानेंगे.
कहते है लेला सांवली थी पर मजनू के लिए वो सबसे सुन्दर थी, पर आजकल सुन्दरता के बाजारू मापदंडो ने उन सभी लड़कियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है जो इन कथित मापदंडो के दायरे में नहीं आती, उनकी शादी समय पर नहीं हो पाती, और भी कई समस्याएँ होंगी जो यहाँ उल्लेखित करना उचित नहीं, एक दिन एक सज्जन पान की दुकान पर मिल गए और लड़की की शादी का रोना रोने लगे, उनकी पीड़ा ये की उनकी इतनी सुसंस्कृत, पढ़ी लिखी लड़की को कोई पसंद नहीं कर रहा क्योंकि लड़की जरा सांवली है, मेने अपना माथा पीट लिया, हम कोनसे ज़माने में जी रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं,

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