Saturday, February 26, 2011

मेरा संस्कारित मध्यवर्गीय सपना

जीवन में सफल होना सबका सपना होता है ,,मेरा भी है ..

सपने भी बड़े ही वर्गीय होते हैं...अमीर का सपना अलग होता है वहीँ गरीब का अलग

अंधे का सपना आँख मिल जाने का होता है ..ये अलग बात है की आंख मिल जाने के बाद वो संतोष से रह पायेगा या वो नए सपने देखने लग जाएगा ..कई बार उसकी नींद हराम होने का भी कारक हो सकते हैं ..

मध्यवर्ग के सपनों का वर्ग भी अलग दृष्टीकोण का होता है .. वो आमतौर पर डाक्टर इंजिनियर टीचर एकाउंटेंट आदि बनने के सपने पालता है ..

कुवारी कन्या अच्छे वर का सपना देखती है इसकी चाहत इतनी प्रबल होती है की कई बार उस सपने को माँ बाप की अनुमति के पूर्व ही साकार कर लेती है ..

उसके लिए सोमवार का व्रत रखती है .उसका और उसके माता पिता का यही सपना होता है की वो संभावित वर सारी बलाएँ अपने सर ओढ़ ले ..

नेता टिकट मिलने का टिकट मिलने पर चुनाव जितने का चुनाव जितने के बाद मंत्री पद मिलने का और मंत्री पद मिलने के बाद चुनाव में जितने में खर्च हुए धन की वसूली केसे हो तथा कमीशन और कमसिन का जुगाड़ कैसे हो इसके सपने देखता है ...

सपने के एक अच्छी बात ये होती है की उसे देखने का पैसा नहीं लगता इसलिए कोई भी परंपरागत कंगाल भी किसी भी प्रकार के सपने देखने के लिए स्वतंत्र है ...और यही हमारे लोकतंत्र का मूलमंत्र है.. हम स्वतंत्र हैं इसका सही आभास सपने में ही होता है ...हमारे माननीय भी हमे राष्ट्र निर्माण के सपने देखने के लिए प्रेरित करते रहते हैं ... हम राष्ट्र निर्माण के सपने देखते हैं तब तक हमारे माननीय उनके लिए घरों बंगलों और हवेलियों का निर्माण कर लेतें है ..

यानि जनता बिना छेद वाली चुसनी इस आशा में चूसती रहती है की कभी रस आएगा पर रस उपर से ही चूस लिया जाता है ..

में भी सपने देखता रहता हूँ और इसका में भयंकर रूप से आदि हूँ .. मेने अपने जीवन कई प्रकार के सपने देखे हैं...में अक्सर जल्दी करोडपति बनने के सपने देखता हूँ ..और इसे साकार करने के लिए प्रयत्नशील भी हूँ ..मेरे कुछ मित्र इसे साकार करने में सफल हुए हैं ...

पर मेरा ये सपना साकार अभी तक साकार नहीं हुआ..

,,उसका मुख्य कारण मेरे मध्यवर्गीय संस्कार जो मुझे घोषित, अधिकारित, और व्यवसायिक तौर पर बेईमान नहीं बनने देते ..में इन कथित संस्कारों को छोड़ कर धनवान बनना चाहता हूँ और इसके लिए थोडा बेईमान भी बनने के लिए तत्पर हूँ , पर ये संस्कार मेरे साथ साए की तरह हमेशा रहते हैं ..

मेने कई बार सोचा की पैसा कमाने के लिए कोई छोटा मोटा चिंदी चोर ही बन जाऊं ...इसलिए रात को एक दो बार मेने एक दो मकानों में भी झाँका की कोई माल हो तो ले उड़ू..पर अन्दर बंधे पालतू कुत्ते ने जब मुझे घुर कर देखा तो मेरी हिम्मत पस्त हो गई और चोर बनने का ख्याल त्याग दिया ..

मुझे इस बात का ज्ञान है और मेरा अर्थशास्त्र कहता है की जिन घरों में विदेशी नस्ल के कुत्ते होते हैं ..उन्ही घरों में माल होने की सम्भावना ज्यादा होती है ..भारत के बिना कुत्तो वाले घरों में तो कई बार आटे के डब्बे भी खाली मिलते है ..और इसी कारण इस प्रकार के घरों के मालिक बड़े ही धार्मिक प्रवर्ती के होते है क्योंकि आधे से उपवास रखने से अनाज कम खत्म होता है ..हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी उपवास रखने के लिया आव्हान किया था ..

गाँधी जी को तो पता था की देश चोट्टो के हाथों में जा रहा है इसलिए जनता आधे समय भूखे मरेगी..इसीलिए उन्होंने देश की जनता को पहले से ही उपवास का मानव जीवन में कितना महत्त्व है बता दिया था ..

मेने सफल होने के और भी प्रयास किये ...मेने एक बार एक आदमी को नोकरी लगाने का गच्चा देकर कुछ राशी झटक ली ...थोड़े दिन इंतजार करने के बाद वो एक दिन घर आ गया ...

मेने मेरे लड़के से कहा ..जा उसको बोल दे में घर नहीं हूँ ....लड़का भी आखिर मेरी ही ओलाद ..उसने उन महाशय से कहा पापा घर नहीं है ..तो उसने कहा तो फिर तुम्हारे पापा कहाँ है ..? मेरे सुपुत्र ने कहा जी वो घर में है ..मेने अपना माथा पीट लिया ...

में झूठ भी ढंग से नहीं बोल सकता झूठ बोलू तो काला कोवा काटे उससे पहले तो मेरी दिल की धड़कन तेज हो जाती है ...और गला खुश्क हो जाता है ...और सामने वाला एक मिनट में ताड़ जाता है .. और काटने के लिए कोवे की जरुरत ही नहीं रहती ..

एक बार मुझे सिनेमा में दो लुच्चों ने रगड़ दिया ..कारण ये की वो एक अति सुन्दर महिला के साथ संस्क्रती के विरुद्ध आचरण कर रहे थे ...मेने मना किया तो ....

कुछ लोग बोले भई एक दो तो तुम भी जमाते ..मेने कहा अरे वो तो में उनको छटी का दूध याद दिला देता पर में झगड़ा नहीं बढ़ाना चाहता था ..असल में मेरी हिम्मत ही नहीं है झगड़ा करने ..बस यूँही शेखी बघार रहा था ..ताकि मेरी कथित इज्ज़त बची रहे ..

कुल जमा बात ये की में भी उन मध्यवर्गीय लोगो में से हूँ जो अपनी ठुकाई हो जाए तो भी संस्कारवान होने का बहाना कर लेते हैं ..और घर आ जाते है और सूजे हुए थोबड़े के बारे में बाइक से नीचे गिरने का कारण बता देते हैं .. खेर जो भी अपनी इज्ज़त और संस्कृति बचाने में जरुर सफल हूँ ..हांलाकि इससे मुझे घाटा होता है ...पिता जी ने इज्ज़त रूपी बैल की पूंछ पकड़ा दी उसे छोड़ नहीं सकता चाहे वो मुझे जब चाहे घसीटे ..यही मेरी विरासत है ...

दुकान पर सामन लेने जाता हूँ दुकानदार खुल्ले नहीं होने का बहाना कर माचिस और टॉफी पकड़ा देता है ,,,विरोध करने पर वो मुझे घूर कर देखता है ..में चुपचाप रवाना हो जाता हूँ ..

केवल सपने देखता हूँ और खुश रहता हूँ ..

ख्याली घोड़े दोड़ा कर ही संतोष में हूँ .. दफ्तर के लोग जब कभी हड़ताल करते हैं में जुलुस में सबसे पीछे रहता हूँ ताकि कोई देख नहीं ले ...

एक बार तो मुझे डाकू बनने का ख्याल आया ...पर एक दिन टीवी पर एक डाकू का एनकाउंटर देखा जिसमे वो सडक पर मरे कुत्ते की तरह पड़ा था ..तो मेरी हिम्मत जवाब दे गई ...

में अपने जीवन में सफल होने के लिए तय ही नहीं कर पाया की क्या करूँ ..मेरा मन था की में गायक बनू तो पिताजी ने कहा ..भांड बनोगे ..इतने कुलीन घराने के हो कर ऐसे सोचते हो ....

फिर ध्यान में आया की आजकल खिलाडी रातो रात अमीर बन रहे हैं ..तो मेने क्रिकेट खेलना शुरू किया ..तो पिताजी ने कहा ये धोबी का धोवना छोड़ो और पढाई करो ..

एक लड़की सामने वाले घर में रहती थी मुझे देख कर वो मुस्कराती थी ...अब मुझे ये पता नहीं था की वो मेरी मुर्खता या लल्लूपन पर मुस्कराती है या मुझ पर आसक्ति से मुस्कराती है ...

में डर और झिझक के मारे उससे कभी पूछ ही नहीं पाया ..मुझे याद है की एक बार मेरे मुहल्ले के एक शोहदे ने एक कन्या का रास्ते में हाथ पकड़ कर प्रेम निवेदन किया ..उसे ऐसा करते कुछ लोंगो ने देख लिया ..उन्होंने उसकी वो धुनाई की ..बस पूछो मत ..वो मंज़र मुझे आज भी ताज़ा था ..और ये ताज़ा ही रहा और लड़की की शादी हो गई ..

खेर शादी मेरी भी हुई और भाग्य से पत्नी भी सुन्दर मिली ...संस्कारों के कारण नहीं बल्कि उसे कोई टपोरी छेड़े नहीं ,या कोई सज्जन घूरे नहीं में बाहर कम ही लेजाता हूँ ..

आजकल शराफत के भी पैमाने बदल गए हैं ...इस कारण कोई भी व्यक्ति किसी सुन्दर महिला को घूरे तो इसे बुरा नहीं माना जाता ..घूरने का अधिकार तो आजकल शास्वत हो गया है ..सभी घूरते हैं

छेड़ना टपोरी का काम है ..और ये संख्या भी बहुताय में हो गई है ..

एक बार एक सज्जन ने मेरी पत्नी को घूरा.. मेने कहा उधर मत देखो ...पत्नी बोली घूर ही तो रहा है ...मेने सोचा कल को कोई टपोरी छेड़ेगा तो कह देगी छेड़ ही तो रहा है ..बलात्कार तो नहीं कर रहा है ..पर में संस्कार वान हूँ इसलिए चुपचाप उसे घर ले आया ...और शुक्र मनाया की ..तीसरे प्रकार की दुर्घटना नहीं हुई ...अन्यथा

मेरे संस्कारों का जुलुस निकल जाता ..



कुल मिला कर मेने घर की इज्ज़त बचाने के लिए अपने सभी सपनो को कुर्बान कर दिया ,,,जब भी किसी सपने को साकार करने आगे कदम बढ़ाता तो ..मेरे संस्कार मुझे रोक लेते ..

में अपने जीवन में ना घोडा बन सका ...और ना ही गधा बन सका ... दिन में संस्कार साए की तरह साथ में रहते हैं और रात में सपने बन कर ....

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