खेल कई हैं और उन्हें खेलने वाले एक से बढ़ कर खिलाडी और सितारें भी हैं .पर इस देश के मध्यवर्ग की नासमझ देशभक्ति अशिकंश्तः केवल क्रिकेट में ही दिखती है.ये उसी का नतीजा है की इस खेल ने सब खेलों को निगल लिया है ,,
पूनम पाण्डेय जेसी भद्र षोडशी इसमें बड़ी बेदर्दी से रूचि ले और इंडिया के फाइनल जितने की ख़ुशी वानखेड़े स्टेडियम में हजारों दर्शकों की मौजूदगी में वो प्राकतिक अवस्था में मार्च पास्ट कर के ज़ाहिर करे तो हम इसे क्या संज्ञा देंगे हांलाकि अभी यह महज लफ्फाजी और सम्भावना ही दिख रही है पर सनकी पन के इस दौर में हमें इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण नज़ारे कई और भी देखने को मिल सकते हैं ..हो सकता है कल कोई और पूनम पाण्डेय अपने ऐलान को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए तिरंगे की अंगिया और चड्डी सिला कर पहन ले और उसका सार्वजानिक प्रदर्शन कर ले तो कई कथित नासमझ देश भक्त वाह वाह और अश अश , मरहबा मरहबा कर उठेंगे ..और अगर वो बीच मैदान में इन दों अतिअल्प वस्त्रों को भी उतार दे और मैदान में उसे झंडे के तरह लहरा दे तो कोई हर्ज़ नहीं की पूनम जी की इस क़ुरबानी के आगे अब तक हुए कई शहीदों की कुरबानिया भी शायद इनकी नज़र में फीकी पड़ जायेगी ..मैदान में भूचाल आ जायेगा ..मुंबई समुद्र के किनारे है अतः सुनामी भी आ सकती है सभी दर्शक सावधान रहें और सरकार चिकित्सा का पूरा प्रबंध कर के रखें .. चाँद की तरफ अब तक चकोर आकर्षित होते रहें हैं पर इस दशा में चाँद कहीं इस चकोरी का दर्शन लाभ लेने धरती पर गाज की तरह नहीं आ पड़े ..दर्शक इसका भी ध्यान रखें ..इस प्रकार की आपदा का बिमा नहीं होता .
इतिहास रहा है की इतिहास दोहराया जाता है क्योंकि सत्तर के दशक में प्रोतिमा बेदी ने मुंबई के जुहू बीच पर संपूर्ण प्राकतिक अवस्था में दोड़ लगा दी थी ..ये प्रसंग कई पुराने खलीफाओं को आज भी ताज़ा होगा जो सोंदर्य रस के पान में इन सुंदरियों द्वारा की गई इस प्रकार की वीरता के रस का तड़का भी खूब पसंद करते हैं ..और उन्हें ये उपक्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं...इनमे कई भद्र व्यापारी . अंगिया और अधोवस्त्र और सोन्दर्य सामग्री जेसे एक क्रीम जो एक सप्ताह में ही काली को गोरी बनाती है.. और अधरों को कातिल बनाने के लिए लिपस्टिक के निर्माण का कार्य करते हैं वे इस प्रकार की गतिविधियाँ संचालित कर बाज़ार में इन्हें विक्रय करने का कार्य करतें हैं ताकि अत्यधिक धन अर्जित किया जा सके और दों चार कोडी की अंगिया को डालर के भाव बेचा जा सके ..बाज़ार में अल्प्वास्त्रों में खड़े हुस्न के दीदार के कई चाहने वाले हैं ..कई द्रस्टी दोष के मरीज इस प्रकार के अल्प वस्त्रों में खड़ी नायिकाओं के दर्शन लाभ से आरोग्य प्राप्त कर लेते हैं उनके जरुरत से ज्यादा नज़र आने लगता है ,,
भारत में भी इसका सुभारम्भ लगभग हो चुका है .कुमारी पूनम पाण्डेय का नाम आधुनिक और मध्य वर्गीय शहरी युवा भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा ..
अमेरिका में तो ये आम चलन है .. होलीवूड की कई नायिकाओं ने इस प्रकार के उपक्रमों से कई बार लोंगो के दिलों को जीता है होलीवुड की फिल्मों में अमिरीकी झंडे की अंगिया और चड्डी पहने नायिका पिस्टल चलाती है और देश के दुश्मनों का नाश करती है.. पूनम पाण्डेय पिस्टल चला कर देश के दुश्मनों का नाश फ़िल्मी अंदाज़ में नहीं करेगी पर ये तय है अपने मीन चक्षुओं के तीरों से कई युवाओं को घायल करेगी और कई युवाओं को अल्प आयु में ही हिरदय घात का रोगी बना देगी ...फ़्रांस और चीनी ताइपे और अन्य पश्चिमी देशों के चुनावो में तो फिल्मो और मोडलिंग जगत से जुडी कई सोंदर्य साम्रागियों ने अपनी अथाह रूप राशी को बड़ी ही उदारता से अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सड़क पर पानी की तरह बहाया ..और मतदाताओं ने भी उनके रूप रस का पान कर अपने आप को उनके प्रति कृतग्य किया . और मत दे कर अपने आप को बड़ी ही मुश्किल से उनके इस कभी ना उतारे जाने वाले ऋण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया ..पर जब तक वे नायिकाए युवा रही तब तक वे कभी ऋण मुक्त नहीं हो सके और उन नायिकाओं के प्रोढ़ा अवस्था में पहुँचने तक कंगाल ही बने रहे ..अब भी वे उनकी पुरानी फिल्मे देख कर अपने आप को बहलाने का जतन करते रहते हैं और साथ में वे गाते रहे की ;; तेरे हुस्न का हुक्का बुझ चुका फिर भी पुराने आशिक हैं इसलिए हम इसे गुडगुडा रहे हैं ....इस क्रम में में कुछ महान नायिकाओं का यहाँ से आदर से नाम लूँगा ..आदरणीय प्रात; स्मरणीय सुश्री मर्लिन मुनरों इसमें प्रथम श्रेणी में स्थान रखती है उसके बाद सांद्रा बुलोक, उर्सला एंड्रूज; पामेला एंडरसन सहित कई हस्तीया शामिल हैं
पूनम पाण्डेय के हाहाकारी और इंकलाबी तेवरों के चलते भारत में भी ये कमी दूर हो जायेगी जो अरसे से महसूस की जा रही थी ..में तो कहता हूँ की उनके इस साहसी कदम की अंतर्मन से मुखर हो कर सराहना की जानी चहिये और इस प्रकार कदम उठाने वाली पहली भारतीय नहीं मेरा मतलब इंडिया की पहली महिला होने का गोरव पाने के लिए किसी बड़े सार्वजानिक आयोजन में इनका शाल ओढा कर सम्मान ....शाल नहीं.. शाल की क्या जरुरत है ..जिस हालत में वो होगी उसी हालत में उनका सम्मान करना चहिये ..कम ओन इंडिया कम ओन ..दिखा दों सबको ..सब देखने के लिए मरे जा रहे हैं में भी चश्मा और दूरबीन दोनों लेकर आता हूँ ताकि दूर और पास दोनों ही प्रकार से उस अकूत विपुल रूप राशी के दर्शन का लाभ उठा सकूँ ..

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