Friday, September 4, 2009

राजस्थान में आदिवासियों के लाल हो जाने का खतरा

एक हिन्दी समाचार देनिक में छपे समाचार और सम्पादकीय के अनुसार राजस्थान की खुपिया पुलिस ने राज्य सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है जिसमे ये आशंका प्रकट की गई है की राजस्थान के आदिवासी इलाकों में अगर आदिवासियों की बुनियादी सुविधाओं में ढांचागत सुधार नही क्या गया और वन भूमि के मसलों को सही प्रकार से नही निपटा गया तो इस इलाके में नक्सली गतिविधियों के बढ़ने का खतरा हो जाएगा। खुपिया पुलिस ने इससे निपटने के लिए कुछ उपाय भी सुजाये है जिनमे सबसे प्रमुख इन इलाकों में ईमानदार और संवेदनशील अधिकारीयों और कर्मचारियों को लगाना है क्योंकि आदिवासी आज भी सरकारी कर्मचारियों को ही सरकार मानते है। यहाँ में टिपण्णी करना चाहूँगा की आज़ादी के ६३ साल बाद भी अगर देश की दूरदराज इलाकों में रहने वाली जनता कर्मचारियों को ही सरकार माने तो इससे बढ़ के इस देश को चलाने वालों के लिए शर्म की बात नही हो सकती की आज भी आदिवासी लोग लोकतंत्र क्या है इसको जान ही नही पाए है तो ऐसे हालात में अगर कुछ लाल तत्व इन आदिवासी इलाकों में आ जाए तो क्या बड़ी बात होगी।
रिपोर्ट में जंगल जमीन जन आन्दोलन जेसे आन्दोलन जो आदिवासियों के पारम्परिक वन अधिकारों की मान्यता वन अधिकार मान्यता कानून के प्रावधानों के अनुसार कानून की इन इलाकों में पालना कराने के लिए प्रयास कर रहे है जो पुरी तरह से संवेधानिक मांग है और आन्दोलन का तरीका भी। पर इस कानून की पालना में जहाँ राज्य सरकार तो दोषी है ही वंही वन विभाग भी उतना ही दोषी है क्योंकि वन विभाग ने आदिवासियों के वनों पर पारम्परिक वन अधिकारों को उनके संकीर्ण स्वार्थ जो दारू मुर्गे और हर फसल पर आदिवासियों से प्राप्त होने वाली रिश्वत है तथा आदिवासी की वो खटिया है जिस पर वन विभाग के कर्मचारी ब्रिटिश सरकार के बनाये वन कानूनों के बनने के बाद से पिछले १४५ सालों से आराम फरमा रहे है। इन्ही कारणों से पुरी तरह से नकार दिया है और सेंकडों सालों से वनों में निवास कर रहे और वनों पर निर्भर रहने वाले आदिवासियों की फसलों को उजाडा है और उनको गैरकानूनी तरीकों से बेदखल किया है जो आने वाले समय में आदिवासियों के उत्तेजित होने और उनमे सरकार के खिलाफ असंतोष पनपने का कारण बन सकता है। यहाँ में ये भी स्पस्ट करना चाहूँगा की जेसा की रिपोर्ट में बताया गया है की आदिवासी आज भी अधिकारीयों और कर्मचारियों को ही सरकार मानते है इससे यही स्पस्ट है की आदिवासियों का असंतोष सरकार के खिलाफ नही हो कर के उन संवेदनहीन बेईमान और रिश्वतखोर अधिकारीयों और कर्मचारियों है क्योंकि उनके लिए वही सरकार है। इसलिए इस प्रकार के कर्मचारियों को हटाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि जनता को लाल होने से बचाया जा सके।
जंगल जमीन जन आन्दोलन पिछले १५ साल से आदिवासियों की वनों से जुड़े अधिकारों के मांग को उठाता आया है और पुरी तरह से शांतिपूर्ण आन्दोलन रहा है तथा अपनी गैर राजनेतिक छवि के लिए विख्यात है।
लेकिन सरकार के ही कर्मचारियों के निक्कमेपन के कारण जनता लाल, पिली, नीली और या हरी हो जाए तो इसमे सामाजिक सरोकार रखने वाले शांतिपसंद संविधान के प्रति निष्ठावान लोग भी क्या करे।

मांगीलाल गुर्जर
उदयपुर

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