राजस्थान में वन अधिकार कानून वन विभाग के कब्जे में।राजस्थान में वन अधिकार कानून के प्रावधानों की धज्जियाँ जिस प्रकार वन विभाग और सरकारी कर्मचारियों ने उडाई है उसका उदहारण ढूंढे नहीं मिलता.१. वन अधिकार कानून के अनुसार वन भमि पर १३ दिसम्बर २००५ के पहले से कौन लोग काबिज है इसकी सूचि बनाने का अधिकार ग्रामसभा को होता है पर वन विभाग अपनी बनाई सूचि को ही अधिकृत मान रहा है और उन्ही दावों का सत्यापन कर रहा है जिनके नाम् उसकी सूचि से मेल खाते हो.२. दावेदारों की वास्तविक कब्जे की भूमि से कम भूमि का सत्यापन कर रहा है यानि अगर दावेदार ने १० बीघा भूमि का दावा किया है तो उसको अधिकार पत्र केवल १ या २ बीघा भूमि का ही दिया जा रहा है.३. वन विभाग १९८० के पूर्व के दावो का ही भोतिक सत्यापन कर रहा है और सामुदायिक वन अधिकार के दावों को वह न तो स्वीकार कर रहा है और अगर गाँव वाले दावा कर भी रहे है तो उनका सत्यापन करने से आनाकानी कर रहा है.४. अन्य परंपरागत जंगल वासियों के दावों को तो स्वीकार करने की प्रक्रिया ही नहीं शुरू की गई है.५. किसी भी दावेदार को उसके दावे की प्राप्ति की रसीद नहीं दी जा रही है और न ही किसी भी दावेदार को उसके दावा निरस्त होने की सुचना दी जा रही है. ६. राज्य सरकार ने दावों के निस्तारण के लिए पंचायतवार शिविर लगाये पर राज्य में आदिवासी इलाके में राजस्व गाँव स्तर पर वन अधिकार समिति बनी होने के कारण सभी शिविर असफल हो गए और दावो का निस्तारण ही नहीं हो सका क्योंकि दावों का निस्तारण तो तभी हो सकता था जब वन अधिकार समितियों ने उनका सत्यापन कर लिया होता. इन शिविरों में वन अधिकार समितियों के सदस्य और पदाधिकारी भी नहीं पहुंचे क्योंकि इन शिविरों की सुचना भी सरकार की और से प्रसारित नहीं की गई.७. अधिकांश वन अधिकार समितियां काम ही नहीं कर रही है क्योंकि उनको ये भी पता नहीं है की सत्यापन कैसे किया जाये इसका परिणाम ये हो रहा है की वन विभाग के कहे अनुसारसारी कार्यवाही चल रही है जो किसी भी सूरत में दावेदारों के लिए लाभकारी नहीं सिद्ध हो रही है. ८. जिन ग्रामसभाओं में आदिवासी संख्या में कम है वहां उनके दावे ही स्वीकार नहीं किये जा रहे है.९. राज्य स्तरीय निगरानी समिति के सदस्यों को कोई नहीं जनता और आज दिन तक निगरानी समिति ने किसी भी गाँव का दौरा करके वास्तविकता जानने का कोई प्रयास ही नहीं किया है.१०. इन सब कारणों से आज जो स्थिति बन गई है वो इस प्रकार नजर आ रही है की अब तक पुरे राज्य में सरकारी आंकडों के अनुसार ५३ हजार दावे पेश किये जा चुके है पर इसकी तुलना में केवल २८०० अधिकार पत्र ही जारी हुए है वो भी वास्तविक भूमि से कम भूमि के और इन पिछले कुछ दिनों में दक्षिणी राजस्थान में ही ५० से ज्यादा आदिवासी परिवारों की फसलें वन विभाग ने नया कब्जा बता कर बर्बाद की है जबकि इन लोंगो के पास न केवल पर्याप्त सबूत है बल्कि इन्होने अपने दावे भी पेश कर रखे है और इन में से कुछ के दावे तो उपखंड समिति तक पहुँच चुके होने के बावजूद इनकी फसलें नस्ट की गई वन विभाग रात दिन इसी प्रयास में लगा हुआ है की किसी न किसी प्रकार इन लोंगो के दावे ग्रामसभा में ही नहीं पहुँच सके.जंगल जमीन जन आन्दोलन ने इन दिनों में इन सब गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर धरना प्रदर्शन और रास्ते जाम किये है
दी गुर्जर
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