
समाज और प्रकृति
Thursday, April 21, 2016
बिहार में शराब बंदी
बिहार में शराब बंदी हो गई। राजस्थान के कई जिलोँ और अन्य राज्यों में भी जनता शराबबंदी के लिए लाम बंद है।
अगर पूर्ण शराबबंदी हो गई तो हिंदी फिल्मों का पूरा एक बड़ा चित्रण जो शराबी की एक्टिंग पर आधारित होता है उसे हटाया जा सकेगा और ऐसा हुआ तो कई फ़िल्मी पात्र बेमौत मर जायेंगे।
विलेन आलिशान क्लब या बार में दारू पीता नजर नही आएगा।
हीरो पी कर नायिका के बाप के सामने तू तू में में नही कर सकेगा।
और नायिका दारू पी के मस्ती में झूम नही सकेगी।
दारू ने हिंदी सिनेमा को कई यादगार कालजई दृश्य दिए हैं।
शोले में धर्मेन्द्र का पानी की टंकी वाला दृश्य सबको याद होगा।
इस दृश्य ने इस देश के कई हड़तालीयों प्रेमियों युवाओं आदि की मांगे मनवाने के लिए प्रेरणा दी है।
मांग पूरी करवाने के लिए टंकी पर चढ़ के कूदी मारने की धमकी देना बड़ा आसान सुलभ तरीका है।
केस्टो मुखर्जी की शक्ल ही शराबी हो गई थी।
तो अमिताभ ने भी फिल्म हम में शराबी का यादगार सीन दिया।
और भी कई हैं।
फिल्म तिरंगा में नाना का दृश्य भी अच्छा था।
शराब पर कई शायरों कवियों गीतकारों ने रचनाएँ लिखी है।
दारू और प्रेमिका को समकक्ष देखा जाता है दोनों का नशा भयंकरतम होता है।
प्रेमिका की आँखे मद भरी होती है तो उसके लब शराब के जाम तो उसका पूरा बदन नशेमन होता है।
दारू गरीब के लिए सामाजिक बुराई है तो अमीर के लिए शगल।
ये व्यक्ति की हेसियत पर निर्भर करता है कि उसके कुकर्मों का आंकलन कैसे किया जायेगा।

Saturday, July 21, 2012
Sunday, April 10, 2011
ठंडे के लिए गर्म करते बाज़ार ..
आजकल गर्मी है ..है और अब गर्मी भी इक्सवी सदी की है .और इस ज़माने में घर को वातुनुकुलित किया जाता है.. उनके द्वारा जो इस देश के संभ्रात हैं .धनी है .इसलिए अब मोसम की गर्मी का एहसास इस एयर कंडीशन के ज़माने भले ही उतना हो ना हो जितना ..सडक पर मिटटी डालते या किसी बिल्डिंग के चोथे माले पर सर पर ईंटे उठा कर ले जाने वाले मजदूरों को लगती है ..
मुझे भी गर्मी लगती है ..में भी इच्छुक हूँ की गर्मी दूर करने का कोई जुगाड़ हो ..में छोटा था तब गाँव में कुए के कुंड में जाकर पड़े रहते थे ..बिलकुल उसी तरह जेसे गर्मी में शहर के कुत्ते भरी दुपहरिया में मुंसीपाल्टी के गटर में पड़े रहते हैं ..पर अब में शहर में रहता हूँ ..आर्थिक लाचारियों ने मुझे और इस देश के कई युवाओं को गाँवों में टिकने ही नहीं दिया और वे पलायन कर शहर में किस्मत आजमाने आ गये ..कुछ मजदुर बन गए ..कुछ कबाड़ी ..कुछ दिहाड़ी मजदुर .कुछ चपरासी तो कुछ व्यवस्था से लाचार थे और बगावत के मूड में थे इस कार्य में शहर उनको चम्बल से ज्यादा अनुकूल लगा ..और वे पहले तो छोटे मोटे चोट्टे बने ..फिर सीढ़ी दर सीढ़ी प्रसिधी की सीढियाँ चढ़ते गए और फलाना पार्टी के टटपुन्जिये और गिरहकट मोसमी नेता बन गए ..यहाँ मोसमी नेता से तात्पर्य ..ये है की वे केवल चुनाव के दिनों में खद्दर पहन कर वोट मांगने के लिए बाहर से आने वाले उनके बड़े नेताओं के साथ शहर में और उसके आस पास के गाँवों में निकलते हैं ..बाकी समय में वे जमीन से लेकर आसमान तक की दलाली में मशगुल रहते हैं ..
चलो छोड़ो ये सब ,, में गर्मी की बात कर रहा था ..अब शहर में .. में ना तो घोड़े में था और ना ही गधे में था ..ये संकर नस्ल भी बड़ी अजीब होती है ..आदमी को कहीं का नहीं छोडती ..मेरी किस्म शहर के निम्न मध्यवर्ग की थी जो डेढ़ कमरे की तंग जगह में निवास करता है जो कमरे कम और जंगली जानवर की मांद ज्यादा लगते हैं .बस में भी कुछ इसी प्रकार का जीवन जी रहा हूँ इसलिए . मज़बूरी में गर्मी में ऊपर का बदन नंगा लिए ..स्लीपर चटकाए ..लुंगी लटकाए ..गर्मी से त्रस्त किसी शहरी सूअर की तरह आधी रात तक डोलता रहता हूँ ..आधी रात को जब थोडा मोसम ठंडा होता है ..तब जा कर कहीं उसे निद्रा रानी अपने आगोश में लेती है ..
ये तो भला हो ठंडा बेचने वाली कम्पनियों का जिनके विज्ञापन देख देख कर ही में ठंडा हुआ महसूस करता हूँ ..पर विज्ञापनों की प्रक्रति बड़ी ही गरमा गर्म है ..
अब एक विज्ञापन आता है ..जिसमे एक अति सुन्दर कोमलांगी ..जिसका सुकुमार सुडोल तन सांचे में ढला प्रतीत हो रहा है .मुझे प्रतीत इसलिए हो रहा है क्योंकि उस कोमलांगी के उन्ही सुकोमल अंगो को विज्ञापन में दर्शाया जा रहा है .विज्ञापन निर्माता ने दर्शकों की पसंद का खूब ध्यान रखा है ..अब दर्जी उस कोमलांगी के तन का फीते से नाप ले रहा है . और कोमलांगी ज्योंही दर्जी नाप लेता है वो गर्म गर्म आंहे भरने लग जाती है ..अब आंहे ठंडी तो होगी नहीं क्योंकि ठंडी आंहे तो हम जेसे कड़को और निम्न जीवन जीने वाले नालायक लोंगो के हिस्से में ही है .और दर्जी जो है आंहे भरती कोमलांगी का नाप मास्टर को जोर से चिल्ला कर बता रहा है ..वो नाप कापी में भी लिख सकता है ..पर वो चिल्ला रहा है ..और उस कोमलांगी के सुकोमल अंगो का नाप क्या है ..उसकी भोगोलिक स्थिति क्या है ..उसे पूरा देश सुन रहा है .देश को उसका नाप बताना जरुरी है क्योंकि ठंडा देश का ग्राहक ही पिएगा .इसलिए . उसके नाप क्या है ..ये तो आप सब ने सुन ही लिए होंगे ..मेने भी सुने ..सभी फलां ठन्डे पेय पदार्थ का गरमा गर्म विज्ञापन देख कर ..इस गर्मी में और भी गर्म हो रहे हैं ..
पर अब करे क्या ..कोमलांगी तो आग लगा कर चली गई ....टी वी पर '''''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र ..''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र''''''' नामक कभी ना खत्म होने वाला धारावाहिक आ जाता है ,,,अब .पुरे देश में हाहाकार मच गया है ..तापक्रम अचानक से बढ़ गया है ..विज्ञापन एक मिनट का होगा ..पर कभी ना उतरने वाली गर्मी चढ़ा कर गया है ..अब एक ही इलाज है ..वो फलां ठंडा पेय खरीद लो पर पी कर ठन्डे ठन्डे सो जाओ ..बढ़िया तरीका है ठंडा बेचने का ..अच्छा लगा ..
एक और है ..
एक लड़का अपनी प्रेयसी से मिलने उसके घर गया ..दोनों मुहब्बत की बातें करे ही की ..लड़की का बाप आ जाता है ..छोरा छिप जाता है ..बाप देखभाल कर वापस चला जाता है ..लड़का डीप फ्रिज़ में कुल्फी खा रहा है ..में जब भी ये विज्ञापन देखता हूँ ..मुझे वेसे ही ठण्ड लगने लग जाती है ..उस लड़के ने ये केसे संभव किया होगा .. जबकि लड़की भी बाहर थी ..हद हो गई रे बेवकूफ बनाने की ..कम से कम फीज़ में दों प्यार करने वालों को तो साथ दिखाते तो थोडा व्यवहारिक लगता ..
एक और है ..
उसमे कुछ अति सुन्दर सखियां स्विमिंगपुल में कुल जमा दों अति अल्प और सिमित वस्त्रों में जो वस्त्र कम बल्कि धज्जियाँ ज्यादा लग रहे थे .धारण कर जल क्रीडा और केलि किल्लोल कर रही है ..ये धज्जियाँ बड़ी मुश्किल से उनके सुकोमल तन पर लगभग राम भरोसे लटकी या अटकी थी ..ज्यों ही वो उछलती ..मुझे डर लगने लग जाता की कहीं संस्क्रती का जनाजा नहीं निकल जाए.. पर .ये तो भला हो हमारे देश के कानूनों का और संस्क्रती के पेरोकारों का जिनके मजबूत पंजे इन धज्जियों को हवा में उड़ने नहीं दे रहे हैं ..क्योंकि अमेरिका में तो ये भरी ठण्ड में ही वहां के कानूनों के लचीलेपन का लाभ उठा कर हवा में लहराने लग जाती है ..
वे सभी सखियां फलां किस्म का ठंडा पेय पी रही है और अपनी लुभावनी भाव भंगिमाओ से पुरे देश के ठंडा पीने के तलबगार उपभोक्ताओं को पीने के लिए प्रेरित कर रही है ..और सब उनके मार्गदर्शन अनुसार जेब कटवा रहे हैं और वो ठंडा पी कर ठन्डे हो रहे हैं जो एक रुप्प्ली का ठंडा मीठा पानी है .क्योंकि .इन रूपसियों के अर्धनग्न सुडोल तन ने सबकी मति हर ली है ..अन्यथा वो लस्सी नहीं पीते छाछ नहीं पीते ..दही नहीं खाते ..पर क्या करें ..इस देश में इन ठंडा बेचने वालों को भी ठंडा करने की जरुरत होगी ..
मुझे भी गर्मी लगती है ..में भी इच्छुक हूँ की गर्मी दूर करने का कोई जुगाड़ हो ..में छोटा था तब गाँव में कुए के कुंड में जाकर पड़े रहते थे ..बिलकुल उसी तरह जेसे गर्मी में शहर के कुत्ते भरी दुपहरिया में मुंसीपाल्टी के गटर में पड़े रहते हैं ..पर अब में शहर में रहता हूँ ..आर्थिक लाचारियों ने मुझे और इस देश के कई युवाओं को गाँवों में टिकने ही नहीं दिया और वे पलायन कर शहर में किस्मत आजमाने आ गये ..कुछ मजदुर बन गए ..कुछ कबाड़ी ..कुछ दिहाड़ी मजदुर .कुछ चपरासी तो कुछ व्यवस्था से लाचार थे और बगावत के मूड में थे इस कार्य में शहर उनको चम्बल से ज्यादा अनुकूल लगा ..और वे पहले तो छोटे मोटे चोट्टे बने ..फिर सीढ़ी दर सीढ़ी प्रसिधी की सीढियाँ चढ़ते गए और फलाना पार्टी के टटपुन्जिये और गिरहकट मोसमी नेता बन गए ..यहाँ मोसमी नेता से तात्पर्य ..ये है की वे केवल चुनाव के दिनों में खद्दर पहन कर वोट मांगने के लिए बाहर से आने वाले उनके बड़े नेताओं के साथ शहर में और उसके आस पास के गाँवों में निकलते हैं ..बाकी समय में वे जमीन से लेकर आसमान तक की दलाली में मशगुल रहते हैं ..
चलो छोड़ो ये सब ,, में गर्मी की बात कर रहा था ..अब शहर में .. में ना तो घोड़े में था और ना ही गधे में था ..ये संकर नस्ल भी बड़ी अजीब होती है ..आदमी को कहीं का नहीं छोडती ..मेरी किस्म शहर के निम्न मध्यवर्ग की थी जो डेढ़ कमरे की तंग जगह में निवास करता है जो कमरे कम और जंगली जानवर की मांद ज्यादा लगते हैं .बस में भी कुछ इसी प्रकार का जीवन जी रहा हूँ इसलिए . मज़बूरी में गर्मी में ऊपर का बदन नंगा लिए ..स्लीपर चटकाए ..लुंगी लटकाए ..गर्मी से त्रस्त किसी शहरी सूअर की तरह आधी रात तक डोलता रहता हूँ ..आधी रात को जब थोडा मोसम ठंडा होता है ..तब जा कर कहीं उसे निद्रा रानी अपने आगोश में लेती है ..
ये तो भला हो ठंडा बेचने वाली कम्पनियों का जिनके विज्ञापन देख देख कर ही में ठंडा हुआ महसूस करता हूँ ..पर विज्ञापनों की प्रक्रति बड़ी ही गरमा गर्म है ..
अब एक विज्ञापन आता है ..जिसमे एक अति सुन्दर कोमलांगी ..जिसका सुकुमार सुडोल तन सांचे में ढला प्रतीत हो रहा है .मुझे प्रतीत इसलिए हो रहा है क्योंकि उस कोमलांगी के उन्ही सुकोमल अंगो को विज्ञापन में दर्शाया जा रहा है .विज्ञापन निर्माता ने दर्शकों की पसंद का खूब ध्यान रखा है ..अब दर्जी उस कोमलांगी के तन का फीते से नाप ले रहा है . और कोमलांगी ज्योंही दर्जी नाप लेता है वो गर्म गर्म आंहे भरने लग जाती है ..अब आंहे ठंडी तो होगी नहीं क्योंकि ठंडी आंहे तो हम जेसे कड़को और निम्न जीवन जीने वाले नालायक लोंगो के हिस्से में ही है .और दर्जी जो है आंहे भरती कोमलांगी का नाप मास्टर को जोर से चिल्ला कर बता रहा है ..वो नाप कापी में भी लिख सकता है ..पर वो चिल्ला रहा है ..और उस कोमलांगी के सुकोमल अंगो का नाप क्या है ..उसकी भोगोलिक स्थिति क्या है ..उसे पूरा देश सुन रहा है .देश को उसका नाप बताना जरुरी है क्योंकि ठंडा देश का ग्राहक ही पिएगा .इसलिए . उसके नाप क्या है ..ये तो आप सब ने सुन ही लिए होंगे ..मेने भी सुने ..सभी फलां ठन्डे पेय पदार्थ का गरमा गर्म विज्ञापन देख कर ..इस गर्मी में और भी गर्म हो रहे हैं ..
पर अब करे क्या ..कोमलांगी तो आग लगा कर चली गई ....टी वी पर '''''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र ..''''''एक चिड़िया और उडी फुर्र''''''' नामक कभी ना खत्म होने वाला धारावाहिक आ जाता है ,,,अब .पुरे देश में हाहाकार मच गया है ..तापक्रम अचानक से बढ़ गया है ..विज्ञापन एक मिनट का होगा ..पर कभी ना उतरने वाली गर्मी चढ़ा कर गया है ..अब एक ही इलाज है ..वो फलां ठंडा पेय खरीद लो पर पी कर ठन्डे ठन्डे सो जाओ ..बढ़िया तरीका है ठंडा बेचने का ..अच्छा लगा ..
एक और है ..
एक लड़का अपनी प्रेयसी से मिलने उसके घर गया ..दोनों मुहब्बत की बातें करे ही की ..लड़की का बाप आ जाता है ..छोरा छिप जाता है ..बाप देखभाल कर वापस चला जाता है ..लड़का डीप फ्रिज़ में कुल्फी खा रहा है ..में जब भी ये विज्ञापन देखता हूँ ..मुझे वेसे ही ठण्ड लगने लग जाती है ..उस लड़के ने ये केसे संभव किया होगा .. जबकि लड़की भी बाहर थी ..हद हो गई रे बेवकूफ बनाने की ..कम से कम फीज़ में दों प्यार करने वालों को तो साथ दिखाते तो थोडा व्यवहारिक लगता ..
एक और है ..
उसमे कुछ अति सुन्दर सखियां स्विमिंगपुल में कुल जमा दों अति अल्प और सिमित वस्त्रों में जो वस्त्र कम बल्कि धज्जियाँ ज्यादा लग रहे थे .धारण कर जल क्रीडा और केलि किल्लोल कर रही है ..ये धज्जियाँ बड़ी मुश्किल से उनके सुकोमल तन पर लगभग राम भरोसे लटकी या अटकी थी ..ज्यों ही वो उछलती ..मुझे डर लगने लग जाता की कहीं संस्क्रती का जनाजा नहीं निकल जाए.. पर .ये तो भला हो हमारे देश के कानूनों का और संस्क्रती के पेरोकारों का जिनके मजबूत पंजे इन धज्जियों को हवा में उड़ने नहीं दे रहे हैं ..क्योंकि अमेरिका में तो ये भरी ठण्ड में ही वहां के कानूनों के लचीलेपन का लाभ उठा कर हवा में लहराने लग जाती है ..
वे सभी सखियां फलां किस्म का ठंडा पेय पी रही है और अपनी लुभावनी भाव भंगिमाओ से पुरे देश के ठंडा पीने के तलबगार उपभोक्ताओं को पीने के लिए प्रेरित कर रही है ..और सब उनके मार्गदर्शन अनुसार जेब कटवा रहे हैं और वो ठंडा पी कर ठन्डे हो रहे हैं जो एक रुप्प्ली का ठंडा मीठा पानी है .क्योंकि .इन रूपसियों के अर्धनग्न सुडोल तन ने सबकी मति हर ली है ..अन्यथा वो लस्सी नहीं पीते छाछ नहीं पीते ..दही नहीं खाते ..पर क्या करें ..इस देश में इन ठंडा बेचने वालों को भी ठंडा करने की जरुरत होगी ..
Saturday, April 2, 2011
क्रिकेट में नारी सोन्दर्य का बाजारी तड़का ..
खेल कई हैं और उन्हें खेलने वाले एक से बढ़ कर खिलाडी और सितारें भी हैं .पर इस देश के मध्यवर्ग की नासमझ देशभक्ति अशिकंश्तः केवल क्रिकेट में ही दिखती है.ये उसी का नतीजा है की इस खेल ने सब खेलों को निगल लिया है ,,
पूनम पाण्डेय जेसी भद्र षोडशी इसमें बड़ी बेदर्दी से रूचि ले और इंडिया के फाइनल जितने की ख़ुशी वानखेड़े स्टेडियम में हजारों दर्शकों की मौजूदगी में वो प्राकतिक अवस्था में मार्च पास्ट कर के ज़ाहिर करे तो हम इसे क्या संज्ञा देंगे हांलाकि अभी यह महज लफ्फाजी और सम्भावना ही दिख रही है पर सनकी पन के इस दौर में हमें इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण नज़ारे कई और भी देखने को मिल सकते हैं ..हो सकता है कल कोई और पूनम पाण्डेय अपने ऐलान को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए तिरंगे की अंगिया और चड्डी सिला कर पहन ले और उसका सार्वजानिक प्रदर्शन कर ले तो कई कथित नासमझ देश भक्त वाह वाह और अश अश , मरहबा मरहबा कर उठेंगे ..और अगर वो बीच मैदान में इन दों अतिअल्प वस्त्रों को भी उतार दे और मैदान में उसे झंडे के तरह लहरा दे तो कोई हर्ज़ नहीं की पूनम जी की इस क़ुरबानी के आगे अब तक हुए कई शहीदों की कुरबानिया भी शायद इनकी नज़र में फीकी पड़ जायेगी ..मैदान में भूचाल आ जायेगा ..मुंबई समुद्र के किनारे है अतः सुनामी भी आ सकती है सभी दर्शक सावधान रहें और सरकार चिकित्सा का पूरा प्रबंध कर के रखें .. चाँद की तरफ अब तक चकोर आकर्षित होते रहें हैं पर इस दशा में चाँद कहीं इस चकोरी का दर्शन लाभ लेने धरती पर गाज की तरह नहीं आ पड़े ..दर्शक इसका भी ध्यान रखें ..इस प्रकार की आपदा का बिमा नहीं होता .
इतिहास रहा है की इतिहास दोहराया जाता है क्योंकि सत्तर के दशक में प्रोतिमा बेदी ने मुंबई के जुहू बीच पर संपूर्ण प्राकतिक अवस्था में दोड़ लगा दी थी ..ये प्रसंग कई पुराने खलीफाओं को आज भी ताज़ा होगा जो सोंदर्य रस के पान में इन सुंदरियों द्वारा की गई इस प्रकार की वीरता के रस का तड़का भी खूब पसंद करते हैं ..और उन्हें ये उपक्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं...इनमे कई भद्र व्यापारी . अंगिया और अधोवस्त्र और सोन्दर्य सामग्री जेसे एक क्रीम जो एक सप्ताह में ही काली को गोरी बनाती है.. और अधरों को कातिल बनाने के लिए लिपस्टिक के निर्माण का कार्य करते हैं वे इस प्रकार की गतिविधियाँ संचालित कर बाज़ार में इन्हें विक्रय करने का कार्य करतें हैं ताकि अत्यधिक धन अर्जित किया जा सके और दों चार कोडी की अंगिया को डालर के भाव बेचा जा सके ..बाज़ार में अल्प्वास्त्रों में खड़े हुस्न के दीदार के कई चाहने वाले हैं ..कई द्रस्टी दोष के मरीज इस प्रकार के अल्प वस्त्रों में खड़ी नायिकाओं के दर्शन लाभ से आरोग्य प्राप्त कर लेते हैं उनके जरुरत से ज्यादा नज़र आने लगता है ,,
भारत में भी इसका सुभारम्भ लगभग हो चुका है .कुमारी पूनम पाण्डेय का नाम आधुनिक और मध्य वर्गीय शहरी युवा भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा ..
अमेरिका में तो ये आम चलन है .. होलीवूड की कई नायिकाओं ने इस प्रकार के उपक्रमों से कई बार लोंगो के दिलों को जीता है होलीवुड की फिल्मों में अमिरीकी झंडे की अंगिया और चड्डी पहने नायिका पिस्टल चलाती है और देश के दुश्मनों का नाश करती है.. पूनम पाण्डेय पिस्टल चला कर देश के दुश्मनों का नाश फ़िल्मी अंदाज़ में नहीं करेगी पर ये तय है अपने मीन चक्षुओं के तीरों से कई युवाओं को घायल करेगी और कई युवाओं को अल्प आयु में ही हिरदय घात का रोगी बना देगी ...फ़्रांस और चीनी ताइपे और अन्य पश्चिमी देशों के चुनावो में तो फिल्मो और मोडलिंग जगत से जुडी कई सोंदर्य साम्रागियों ने अपनी अथाह रूप राशी को बड़ी ही उदारता से अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सड़क पर पानी की तरह बहाया ..और मतदाताओं ने भी उनके रूप रस का पान कर अपने आप को उनके प्रति कृतग्य किया . और मत दे कर अपने आप को बड़ी ही मुश्किल से उनके इस कभी ना उतारे जाने वाले ऋण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया ..पर जब तक वे नायिकाए युवा रही तब तक वे कभी ऋण मुक्त नहीं हो सके और उन नायिकाओं के प्रोढ़ा अवस्था में पहुँचने तक कंगाल ही बने रहे ..अब भी वे उनकी पुरानी फिल्मे देख कर अपने आप को बहलाने का जतन करते रहते हैं और साथ में वे गाते रहे की ;; तेरे हुस्न का हुक्का बुझ चुका फिर भी पुराने आशिक हैं इसलिए हम इसे गुडगुडा रहे हैं ....इस क्रम में में कुछ महान नायिकाओं का यहाँ से आदर से नाम लूँगा ..आदरणीय प्रात; स्मरणीय सुश्री मर्लिन मुनरों इसमें प्रथम श्रेणी में स्थान रखती है उसके बाद सांद्रा बुलोक, उर्सला एंड्रूज; पामेला एंडरसन सहित कई हस्तीया शामिल हैं
पूनम पाण्डेय के हाहाकारी और इंकलाबी तेवरों के चलते भारत में भी ये कमी दूर हो जायेगी जो अरसे से महसूस की जा रही थी ..में तो कहता हूँ की उनके इस साहसी कदम की अंतर्मन से मुखर हो कर सराहना की जानी चहिये और इस प्रकार कदम उठाने वाली पहली भारतीय नहीं मेरा मतलब इंडिया की पहली महिला होने का गोरव पाने के लिए किसी बड़े सार्वजानिक आयोजन में इनका शाल ओढा कर सम्मान ....शाल नहीं.. शाल की क्या जरुरत है ..जिस हालत में वो होगी उसी हालत में उनका सम्मान करना चहिये ..कम ओन इंडिया कम ओन ..दिखा दों सबको ..सब देखने के लिए मरे जा रहे हैं में भी चश्मा और दूरबीन दोनों लेकर आता हूँ ताकि दूर और पास दोनों ही प्रकार से उस अकूत विपुल रूप राशी के दर्शन का लाभ उठा सकूँ ..
पूनम पाण्डेय जेसी भद्र षोडशी इसमें बड़ी बेदर्दी से रूचि ले और इंडिया के फाइनल जितने की ख़ुशी वानखेड़े स्टेडियम में हजारों दर्शकों की मौजूदगी में वो प्राकतिक अवस्था में मार्च पास्ट कर के ज़ाहिर करे तो हम इसे क्या संज्ञा देंगे हांलाकि अभी यह महज लफ्फाजी और सम्भावना ही दिख रही है पर सनकी पन के इस दौर में हमें इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण नज़ारे कई और भी देखने को मिल सकते हैं ..हो सकता है कल कोई और पूनम पाण्डेय अपने ऐलान को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए तिरंगे की अंगिया और चड्डी सिला कर पहन ले और उसका सार्वजानिक प्रदर्शन कर ले तो कई कथित नासमझ देश भक्त वाह वाह और अश अश , मरहबा मरहबा कर उठेंगे ..और अगर वो बीच मैदान में इन दों अतिअल्प वस्त्रों को भी उतार दे और मैदान में उसे झंडे के तरह लहरा दे तो कोई हर्ज़ नहीं की पूनम जी की इस क़ुरबानी के आगे अब तक हुए कई शहीदों की कुरबानिया भी शायद इनकी नज़र में फीकी पड़ जायेगी ..मैदान में भूचाल आ जायेगा ..मुंबई समुद्र के किनारे है अतः सुनामी भी आ सकती है सभी दर्शक सावधान रहें और सरकार चिकित्सा का पूरा प्रबंध कर के रखें .. चाँद की तरफ अब तक चकोर आकर्षित होते रहें हैं पर इस दशा में चाँद कहीं इस चकोरी का दर्शन लाभ लेने धरती पर गाज की तरह नहीं आ पड़े ..दर्शक इसका भी ध्यान रखें ..इस प्रकार की आपदा का बिमा नहीं होता .
इतिहास रहा है की इतिहास दोहराया जाता है क्योंकि सत्तर के दशक में प्रोतिमा बेदी ने मुंबई के जुहू बीच पर संपूर्ण प्राकतिक अवस्था में दोड़ लगा दी थी ..ये प्रसंग कई पुराने खलीफाओं को आज भी ताज़ा होगा जो सोंदर्य रस के पान में इन सुंदरियों द्वारा की गई इस प्रकार की वीरता के रस का तड़का भी खूब पसंद करते हैं ..और उन्हें ये उपक्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं...इनमे कई भद्र व्यापारी . अंगिया और अधोवस्त्र और सोन्दर्य सामग्री जेसे एक क्रीम जो एक सप्ताह में ही काली को गोरी बनाती है.. और अधरों को कातिल बनाने के लिए लिपस्टिक के निर्माण का कार्य करते हैं वे इस प्रकार की गतिविधियाँ संचालित कर बाज़ार में इन्हें विक्रय करने का कार्य करतें हैं ताकि अत्यधिक धन अर्जित किया जा सके और दों चार कोडी की अंगिया को डालर के भाव बेचा जा सके ..बाज़ार में अल्प्वास्त्रों में खड़े हुस्न के दीदार के कई चाहने वाले हैं ..कई द्रस्टी दोष के मरीज इस प्रकार के अल्प वस्त्रों में खड़ी नायिकाओं के दर्शन लाभ से आरोग्य प्राप्त कर लेते हैं उनके जरुरत से ज्यादा नज़र आने लगता है ,,
भारत में भी इसका सुभारम्भ लगभग हो चुका है .कुमारी पूनम पाण्डेय का नाम आधुनिक और मध्य वर्गीय शहरी युवा भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा ..
अमेरिका में तो ये आम चलन है .. होलीवूड की कई नायिकाओं ने इस प्रकार के उपक्रमों से कई बार लोंगो के दिलों को जीता है होलीवुड की फिल्मों में अमिरीकी झंडे की अंगिया और चड्डी पहने नायिका पिस्टल चलाती है और देश के दुश्मनों का नाश करती है.. पूनम पाण्डेय पिस्टल चला कर देश के दुश्मनों का नाश फ़िल्मी अंदाज़ में नहीं करेगी पर ये तय है अपने मीन चक्षुओं के तीरों से कई युवाओं को घायल करेगी और कई युवाओं को अल्प आयु में ही हिरदय घात का रोगी बना देगी ...फ़्रांस और चीनी ताइपे और अन्य पश्चिमी देशों के चुनावो में तो फिल्मो और मोडलिंग जगत से जुडी कई सोंदर्य साम्रागियों ने अपनी अथाह रूप राशी को बड़ी ही उदारता से अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सड़क पर पानी की तरह बहाया ..और मतदाताओं ने भी उनके रूप रस का पान कर अपने आप को उनके प्रति कृतग्य किया . और मत दे कर अपने आप को बड़ी ही मुश्किल से उनके इस कभी ना उतारे जाने वाले ऋण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया ..पर जब तक वे नायिकाए युवा रही तब तक वे कभी ऋण मुक्त नहीं हो सके और उन नायिकाओं के प्रोढ़ा अवस्था में पहुँचने तक कंगाल ही बने रहे ..अब भी वे उनकी पुरानी फिल्मे देख कर अपने आप को बहलाने का जतन करते रहते हैं और साथ में वे गाते रहे की ;; तेरे हुस्न का हुक्का बुझ चुका फिर भी पुराने आशिक हैं इसलिए हम इसे गुडगुडा रहे हैं ....इस क्रम में में कुछ महान नायिकाओं का यहाँ से आदर से नाम लूँगा ..आदरणीय प्रात; स्मरणीय सुश्री मर्लिन मुनरों इसमें प्रथम श्रेणी में स्थान रखती है उसके बाद सांद्रा बुलोक, उर्सला एंड्रूज; पामेला एंडरसन सहित कई हस्तीया शामिल हैं
पूनम पाण्डेय के हाहाकारी और इंकलाबी तेवरों के चलते भारत में भी ये कमी दूर हो जायेगी जो अरसे से महसूस की जा रही थी ..में तो कहता हूँ की उनके इस साहसी कदम की अंतर्मन से मुखर हो कर सराहना की जानी चहिये और इस प्रकार कदम उठाने वाली पहली भारतीय नहीं मेरा मतलब इंडिया की पहली महिला होने का गोरव पाने के लिए किसी बड़े सार्वजानिक आयोजन में इनका शाल ओढा कर सम्मान ....शाल नहीं.. शाल की क्या जरुरत है ..जिस हालत में वो होगी उसी हालत में उनका सम्मान करना चहिये ..कम ओन इंडिया कम ओन ..दिखा दों सबको ..सब देखने के लिए मरे जा रहे हैं में भी चश्मा और दूरबीन दोनों लेकर आता हूँ ताकि दूर और पास दोनों ही प्रकार से उस अकूत विपुल रूप राशी के दर्शन का लाभ उठा सकूँ ..
Saturday, March 19, 2011
विज्ञापन में नारी देह का भौंडा प्रदर्शन
मेने एक सीमेंट का विज्ञापन देखा ..उसमे एक सुडोल शरीर की मालकिन अर्धनग्न कन्या जो सुन्दरता के कथित सभी मापदंडों को पूरा करती प्रतीत हो रही थी ..(जेसा की उसके तन से उजागर हो रहा था) ..
वो विज्ञापन के उस विशाल होर्डिंग में खड़ी हुई दर्शाई गई थी वहीँ दूसरी और उक्त सीमेंट से बनी बिल्डिंग ...और उस बोर्ड पर लिखा था ..
'''''एक अटूट विश्वास,, सोलिड माल,, जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा ..एक बार जरुर उपयोग करें .......''
मेरी समझ में ये नहीं आया की सोलिड क्या है ...? में इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं करूँगा ...
विह्यापन सड़क के ऐसे मोड़ पर लगाया गया की उस पर नज़र पड़े बिना रह ही नहीं सकती ..
एक विज्ञापन और जो ..किसी कार का था ...
उसमे एक अति सुंदर अल्प वस्त्रधारिणी कन्या ..उसके शरीर पर कपडे इस प्रकार थे की जो अंग छिपाने थे वे तो नहीं छिप रहे थे.. और जो नहीं छिपाने थे उनको छिपाने की जरुरत ही नहीं होने के कारण नहीं छिपाया गया ..वो उस कार के बोनट पर झुकी हुई थी ..बोर्ड पर लिखा हुआ था ..
''''''क्या बाडी है..कितनी आरामदायक .और स्पीड के तो कहने ही क्या ..इसका माइलेज गज़ब ..सबसे अलग...''''''
में कनफुज्य की बेचा किसको जा रहा है ...मानव बिक्री पर तो क़ानूनी रोक है ..और विज्ञापन से तो ऐसा ही लग रहा था की कार को नहीं ..बेच के ..
अब में आगे नहीं कहूँगा ,,,,,,,,
एक गोरी बनाने की क्रीम का विज्ञापन ...लड़की की शादी नहीं हो पा रही है ..जो भी लड़का आया उसने उसे रिजेक्ट किया ..लड़की ने तत्काल गोरी होने का नुस्खा आजमाया ..
इस क्रम में लड़की को पहले दिन काली बताया ...सातवें दिन ..वो फुलमून नज़र आने लगी .. उसके पुरे मुहल्ले के लड़के उसके घर के सामने शादी का प्रस्ताव लेकर लाइन में खड़े थे ..अब लड़की तय करेगी की उसे किसके साथ शादी करनी है .. जो लड़का देखने आया है ..वो लड़की की असीम सुन्दरता के आगे गद गद है ..
प्रेशर कुकर का विज्ञापन ...............''''
पतिदेव का प्रमोशन रुका हुआ है ..
शाम को बोस को खाने पर बुलाया ..पत्नी ने फलां प्रेशर कुकर में खाना पकाया.. बोस को खिलाया ..बोस ने खाने की तारीफ की (छुपे तौर पर उसकी पत्नी की) पत्नी मुस्कराई बोस ने उसी वक्त प्रमोशन कर दिया ,,पति बोला जय हो फलां कुकर देव की ...अब प्रमोशन कुकर ने करवाया या उसकी पत्नी की कातिल मुस्कराहट ने ..ये तो विज्ञापन बनानेवाले ही जाने ..
पुरुष के अंडर गारमेंट ..का विज्ञापन ..
पुरुष एक चड्डी में आता है ..और चड्डी में ही 7 - 8 गुंडों से लड़ता है ..और लड़की को बचा लेता है ...लड़की उसका शुक्रिया अदा करने के भावों से उसे निहारती है ...और उसकी तरफ बड़े ही कातिलाना अंदाज़ से बढती है ...अब बचो ...तुम्हें कौन बचाएगा ..पर बचना भी कौन चाहता है ...बढ़िया ..
एक विज्ञापन परफ्यूम स्प्रे का ..
एक शादीशुदा सधस्नाता सुंदर पतिव्रता भारतीय नारी ..सामने दूसरी और की बालकनी में एक मेट्रोसेक्सुअल इंडियन यंगबोय जो फलां परफ्यूम स्प्रे लगाये हुए हुए है ..उसकी खुशबु ज्योंही स्त्री तक पहुँचती है उसके पग पथभ्रष्ट होने लगे है ..वो परफ्यूम लगाये युवक की और आकर्षित होने लगती है ..
में सोच रहा हूँ ये कौनसा सन्देश है देश वासियों को ..
इसके एक दुसरे विज्ञापन में पुरे शहर की लड़कियां उस युवक के पीछे भाग रही है जिसने उक्त स्प्रे लगा रखी है ..जेसे मक्खियाँ गुड के पीछे हो ..
लिफ्ट में एक लड़का और लड़की साथ में है लड़का लिफ्ट से बाहर आता है तो उसे ऐसा दिखाया जाता है जेसे उसकी इज्ज़त लुट चुकी हो ..मानों उसने वो परफ्यूम लगा कर ही गलती कर दी और उधर लड़की ऐसे संतोष के भाव चहेरे पर लाकर लिफ्ट से निकलती है मानों बिल्ली मलाई चाट कर निकली हो ,,परम संतोष के भाव ..
महिलाओं का इतना घटिया और भौंडा प्रदर्शन इन विज्ञापनों में ..बर्दास्त के बाहर है ..मुझे पूरा विश्वास है भारत की महिला अभी इतनी आगे नहीं है की उनकी वजह से पुरुषों की इज्ज़त खतरे में हो ..भारत क्या दुनिया में भी ऐसा नहीं है ..महिला का ये चित्रण पूरी तरह से नकली है .
एक टायर का विज्ञापन .........''
लड़की और टायर दोनों खड़े हैं बोर्ड में ....टायर काला कलूटा है,, अकेले टायर को कौन देखेगा और किसी को भी जरुरत है तो वेसे ही खरीद लेगा ..पर विज्ञापन है ..काले कलूटे टायर के साथ में एक गोरी षोडशी खड़ी है ...काला कुरूप टायर अपने नसीब पर रश्क कर रहा है ..की उसे एक शानदार खुबसूरत लड़की का साथ प्राप्त है ..मेने सोचा इस बार में भी यही टायर खरीदूंगा और जब तक पहले वाले टायर घिस नहीं जाते में रोज इस विज्ञापन के दर्शन करूँगा तथा साथ ही प्रार्थना करूँगा की मेरे टायर जल्दी घिसे ..
एक मोटर साइकल का विज्ञापन ...........'''
लड़की मोटर साइकल के पास में खड़ी है ...........बोर्ड पर लिखा है ,,..'' गज़ब का दम..शानदार पिकप ...एक शानदार सवारी ..फ्री ट्रायल के लिए हमारे शोरुम पर पधारें ....मेरे साथ चल रहे साथी ने कहा आज ही जाता हूँ ...लड़का मोटर साइकल पर सवार है और स्पीड से बढ़ा जा रहा है ..क्या सवारी है ..कल्पना में लड़की दिखाई जा रही है ....
एक चाकलेट का विज्ञापन ......''
लड़का स्वादिस्ट चाकलेट का रेपर उतार रहा है ...और कल्पना में एक लड़की है ...'''
मेने अपना माथा ठोक लिया ...हद हो गई ....
एक और विज्ञापन में लड़की रात को गाडी खराब होने के कारण रास्ते में एक लड़के के यहाँ रुकना चाह रही है ..लड़का गोली खा कर तरकीब लडाता है की लड़की उसके कमरे में रुक जाए ...यानि चाकलेट खाते ही दिमाग में शैतान जाग गया ...
कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन ....'''''
लड़का कोल्ड ड्रिंक घटक रहा है ..और लड़की के मुहँ से लार टपक रही है ....
एक वाशिंग पाउडर का विज्ञापन ....
विज्ञापन में महिला को महिला का विरोधी बताया है क्योंकि ..उसकी साड़ी उससे ज्यादा सफेद है ..जो उसे बर्दास्त नहीं है ..''
में ये कह रहा हूँ की ..महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन कोई लड़की करे तो समझ में आता है ..पर पुरुषों के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन लड़की करे ...ये मेरी तो समझ के बाहर है ..असल में महिला आज भी बिकाऊ है उसे पुराने ज़माने की तरह सीधे तौर पर जबरिया नहीं बेचा जा रहा है पर उसकी देह के खरीदार आज के सभ्य समाज में भी है ..बस तरीके बदल दिए गए है ..अन्यथा स्त्री आज भी बाज़ार में बिक रही है किसी वस्तु या मवेशी की तरह ...
वो विज्ञापन के उस विशाल होर्डिंग में खड़ी हुई दर्शाई गई थी वहीँ दूसरी और उक्त सीमेंट से बनी बिल्डिंग ...और उस बोर्ड पर लिखा था ..
'''''एक अटूट विश्वास,, सोलिड माल,, जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा ..एक बार जरुर उपयोग करें .......''
मेरी समझ में ये नहीं आया की सोलिड क्या है ...? में इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं करूँगा ...
विह्यापन सड़क के ऐसे मोड़ पर लगाया गया की उस पर नज़र पड़े बिना रह ही नहीं सकती ..
एक विज्ञापन और जो ..किसी कार का था ...
उसमे एक अति सुंदर अल्प वस्त्रधारिणी कन्या ..उसके शरीर पर कपडे इस प्रकार थे की जो अंग छिपाने थे वे तो नहीं छिप रहे थे.. और जो नहीं छिपाने थे उनको छिपाने की जरुरत ही नहीं होने के कारण नहीं छिपाया गया ..वो उस कार के बोनट पर झुकी हुई थी ..बोर्ड पर लिखा हुआ था ..
''''''क्या बाडी है..कितनी आरामदायक .और स्पीड के तो कहने ही क्या ..इसका माइलेज गज़ब ..सबसे अलग...''''''
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इस क्रम में लड़की को पहले दिन काली बताया ...सातवें दिन ..वो फुलमून नज़र आने लगी .. उसके पुरे मुहल्ले के लड़के उसके घर के सामने शादी का प्रस्ताव लेकर लाइन में खड़े थे ..अब लड़की तय करेगी की उसे किसके साथ शादी करनी है .. जो लड़का देखने आया है ..वो लड़की की असीम सुन्दरता के आगे गद गद है ..
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पतिदेव का प्रमोशन रुका हुआ है ..
शाम को बोस को खाने पर बुलाया ..पत्नी ने फलां प्रेशर कुकर में खाना पकाया.. बोस को खिलाया ..बोस ने खाने की तारीफ की (छुपे तौर पर उसकी पत्नी की) पत्नी मुस्कराई बोस ने उसी वक्त प्रमोशन कर दिया ,,पति बोला जय हो फलां कुकर देव की ...अब प्रमोशन कुकर ने करवाया या उसकी पत्नी की कातिल मुस्कराहट ने ..ये तो विज्ञापन बनानेवाले ही जाने ..
पुरुष के अंडर गारमेंट ..का विज्ञापन ..
पुरुष एक चड्डी में आता है ..और चड्डी में ही 7 - 8 गुंडों से लड़ता है ..और लड़की को बचा लेता है ...लड़की उसका शुक्रिया अदा करने के भावों से उसे निहारती है ...और उसकी तरफ बड़े ही कातिलाना अंदाज़ से बढती है ...अब बचो ...तुम्हें कौन बचाएगा ..पर बचना भी कौन चाहता है ...बढ़िया ..
एक विज्ञापन परफ्यूम स्प्रे का ..
एक शादीशुदा सधस्नाता सुंदर पतिव्रता भारतीय नारी ..सामने दूसरी और की बालकनी में एक मेट्रोसेक्सुअल इंडियन यंगबोय जो फलां परफ्यूम स्प्रे लगाये हुए हुए है ..उसकी खुशबु ज्योंही स्त्री तक पहुँचती है उसके पग पथभ्रष्ट होने लगे है ..वो परफ्यूम लगाये युवक की और आकर्षित होने लगती है ..
में सोच रहा हूँ ये कौनसा सन्देश है देश वासियों को ..
इसके एक दुसरे विज्ञापन में पुरे शहर की लड़कियां उस युवक के पीछे भाग रही है जिसने उक्त स्प्रे लगा रखी है ..जेसे मक्खियाँ गुड के पीछे हो ..
लिफ्ट में एक लड़का और लड़की साथ में है लड़का लिफ्ट से बाहर आता है तो उसे ऐसा दिखाया जाता है जेसे उसकी इज्ज़त लुट चुकी हो ..मानों उसने वो परफ्यूम लगा कर ही गलती कर दी और उधर लड़की ऐसे संतोष के भाव चहेरे पर लाकर लिफ्ट से निकलती है मानों बिल्ली मलाई चाट कर निकली हो ,,परम संतोष के भाव ..
महिलाओं का इतना घटिया और भौंडा प्रदर्शन इन विज्ञापनों में ..बर्दास्त के बाहर है ..मुझे पूरा विश्वास है भारत की महिला अभी इतनी आगे नहीं है की उनकी वजह से पुरुषों की इज्ज़त खतरे में हो ..भारत क्या दुनिया में भी ऐसा नहीं है ..महिला का ये चित्रण पूरी तरह से नकली है .
एक टायर का विज्ञापन .........''
लड़की और टायर दोनों खड़े हैं बोर्ड में ....टायर काला कलूटा है,, अकेले टायर को कौन देखेगा और किसी को भी जरुरत है तो वेसे ही खरीद लेगा ..पर विज्ञापन है ..काले कलूटे टायर के साथ में एक गोरी षोडशी खड़ी है ...काला कुरूप टायर अपने नसीब पर रश्क कर रहा है ..की उसे एक शानदार खुबसूरत लड़की का साथ प्राप्त है ..मेने सोचा इस बार में भी यही टायर खरीदूंगा और जब तक पहले वाले टायर घिस नहीं जाते में रोज इस विज्ञापन के दर्शन करूँगा तथा साथ ही प्रार्थना करूँगा की मेरे टायर जल्दी घिसे ..
एक मोटर साइकल का विज्ञापन ...........'''
लड़की मोटर साइकल के पास में खड़ी है ...........बोर्ड पर लिखा है ,,..'' गज़ब का दम..शानदार पिकप ...एक शानदार सवारी ..फ्री ट्रायल के लिए हमारे शोरुम पर पधारें ....मेरे साथ चल रहे साथी ने कहा आज ही जाता हूँ ...लड़का मोटर साइकल पर सवार है और स्पीड से बढ़ा जा रहा है ..क्या सवारी है ..कल्पना में लड़की दिखाई जा रही है ....
एक चाकलेट का विज्ञापन ......''
लड़का स्वादिस्ट चाकलेट का रेपर उतार रहा है ...और कल्पना में एक लड़की है ...'''
मेने अपना माथा ठोक लिया ...हद हो गई ....
एक और विज्ञापन में लड़की रात को गाडी खराब होने के कारण रास्ते में एक लड़के के यहाँ रुकना चाह रही है ..लड़का गोली खा कर तरकीब लडाता है की लड़की उसके कमरे में रुक जाए ...यानि चाकलेट खाते ही दिमाग में शैतान जाग गया ...
कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन ....'''''
लड़का कोल्ड ड्रिंक घटक रहा है ..और लड़की के मुहँ से लार टपक रही है ....
एक वाशिंग पाउडर का विज्ञापन ....
विज्ञापन में महिला को महिला का विरोधी बताया है क्योंकि ..उसकी साड़ी उससे ज्यादा सफेद है ..जो उसे बर्दास्त नहीं है ..''
में ये कह रहा हूँ की ..महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन कोई लड़की करे तो समझ में आता है ..पर पुरुषों के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन लड़की करे ...ये मेरी तो समझ के बाहर है ..असल में महिला आज भी बिकाऊ है उसे पुराने ज़माने की तरह सीधे तौर पर जबरिया नहीं बेचा जा रहा है पर उसकी देह के खरीदार आज के सभ्य समाज में भी है ..बस तरीके बदल दिए गए है ..अन्यथा स्त्री आज भी बाज़ार में बिक रही है किसी वस्तु या मवेशी की तरह ...
Tuesday, March 15, 2011
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए ....
मुन्नी ही बदनाम क्यों होती है , ये मुन्ना क्यों नहीं होता ..
मेरे पड़ोस की मुन्नी ..पड़ोस के मुन्ने के साथ पिछली रात को मां बाप को सोते छोड़ खिड़की से कूद कर भाग गई .. शंका पहले से रही होगी क्योंकि उनकी मुहब्बत का चर्चा आम था ..पर जो होना था वही हुआ ..जेसे भेंस चोरी होने के बाद खाली तबेले में अपने सर पिटते मुन्नी के माँ बाप घर में मातम मना रहे थे ...
वहीँ बाहर मुझे बाजु वाले महाशय ...मुहल्ले की चाय की पटरी पर मिले ..लोकल अख़बार में झांकते हुए... और मुझे आता देख वो चेहरे पर नकली दुःख का आवरण चढ़ा कर मुझसे मुखातिब होकर बड़े चुटीले अंदाज़ में बोले ..हें भई..जानते हो .?.अपनी गली के लास्ट घर के पहले वाले घर में जो छोकरी नहीं थी ..मेने जान बुज कर कहा कौनसी ...?
वो बोले अरे आप नहीं जानते वो जींस पहने स्कूटी चलाती थी और लटर पटर करती रहती थी ..चश्मा लगाती थी और मुहँ पर पूरा कपड़ा ढंक के निकलती थी .. मेने कहा अच्छा..वो लड़की जो जब भी राह में मिलते प्रणाम करती थी ..वो ..?
अरे हाँ वो मुन्नी .. वही पर.. वो मुझे प्रणाम नहीं करती थी ....वो उसके घर के ऐन सामने वाले घर में रहने वाले मुन्ने के साथ भाग गई ...
उनका ड्रामा इस कदर का था मानों इनकी लड़की भाग गई हो .. मेने सोचा इनको प्रणाम नहीं करती थी क्या इसलिए कसर निकल रहे हैं ..
अब में पूर्वाग्रहों से ग्रसित इस सामाजिक व्यवस्था के बारे सोच रहा था की ..लोग लड़की के भागने को ही इश्यु क्यों बनाते है ..अरे भई मुन्ना भी तो भागा है ..उसके लिए इस प्रकार टिप्पणी कर क्यों नहीं कहा जा रहा है ..
मेने यही बात निन्दारत निंदक महाशय से कही ..वो बोले ..अरे भई लड़के का क्या है ...उसके क्या फर्क पड़ेगा ..जिंदगी तो लड़की की बर्बाद होगी ना ..
मेने सोचा ...हमेशा लड़की की जिंदगी खराब होगी ये रट्टा सबके सामने मार मार के ही उसकी बदनामी कर देते है ..फिर तो जिन्दगी बर्बाद होनी ही है .
मुन्ने के माँ बाप कह रहे थे ..अरे छोरी का क्या है ..उसके माँ बाप का तो शादी का खर्चा बचा ..जीवन तो हमारे मुन्ने का ख़राब हुआ हमारा हुआ हाय रे......!!!! बिरादरी में नाक कटवा दी.. कमाने लायक छोरा हाथ से निकल गया ..अरे ना जाने क्या जादू कर दिया उस छोकरी ने हमारे मुन्ने पर ..सत्यानाश जाए उसका ..और उसको पैदा करने वालों का ..
कुल मिला कर सारा दोष लड़की का ...लड़की सुंदर हो तो ये आरोप की उसने लड़के पर जादू कर दिया और भगा ले गई
गरीब हो तो ये आरोप की लड़की के माँ बाप का शादी का खर्चा बचा ..
प्रगतिशील हो तो ये आरोप की ..अरे भई कोई जात बिरादरी भी कोई चीज होती है या नहीं ..पता नहीं किस खानदान से हैं .
पुलिस में जाओ तो थानेदार बड़े चुटीले अंदाज़ में कहेगा ,,,,हैं भई किसी के साथ चक्कर होगा ..आपने टाइम से शादी क्यों नहीं करवा दी ..होती तो आज ये नौबत नहीं आती ..और पुलिस वाले ..हमदर्दी की बजाय अपना इस बारे में ज्ञान बांटने लग जाते है ...मेरी गारंटी है ..इनका पुराना चक्कर होगा ..
अरे में सब जानता हूँ ..आजकल की लड़कियों को ..और कुछ करे नहीं करे पर बॉयफ्रेंड पहली फुर्सत में बना लेती है ..शाम को झील किनारे चले जाओ ..पता लग जाएगा ..की शहर से कितनी लड़कियां भगने वाली है ..
मेने सोचा ,,अरे क्यों मुन्नी के पीछे पड़े हो ..क्यों उसे ही बदनाम करते हो ..मुन्नी बेचारी सदियों से बदनाम होती आ रही है इन सब मुन्नों के लिए ..मुन्ने के साथ भागने से मुन्नी को मिलता क्या है ..केवल जिल्लत, रुसवाई, बदनामी ..पर मुन्नी इसलिए बदनाम होती है क्योंकि वो अपने मुन्ने को दिल की गहराईयों से टूट कर बेइन्तहा चाहती है ..कोई मुन्नी की भावनाओं को कोई समझेगा ,,क्या ..?
मेरे पड़ोस की मुन्नी ..पड़ोस के मुन्ने के साथ पिछली रात को मां बाप को सोते छोड़ खिड़की से कूद कर भाग गई .. शंका पहले से रही होगी क्योंकि उनकी मुहब्बत का चर्चा आम था ..पर जो होना था वही हुआ ..जेसे भेंस चोरी होने के बाद खाली तबेले में अपने सर पिटते मुन्नी के माँ बाप घर में मातम मना रहे थे ...
वहीँ बाहर मुझे बाजु वाले महाशय ...मुहल्ले की चाय की पटरी पर मिले ..लोकल अख़बार में झांकते हुए... और मुझे आता देख वो चेहरे पर नकली दुःख का आवरण चढ़ा कर मुझसे मुखातिब होकर बड़े चुटीले अंदाज़ में बोले ..हें भई..जानते हो .?.अपनी गली के लास्ट घर के पहले वाले घर में जो छोकरी नहीं थी ..मेने जान बुज कर कहा कौनसी ...?
वो बोले अरे आप नहीं जानते वो जींस पहने स्कूटी चलाती थी और लटर पटर करती रहती थी ..चश्मा लगाती थी और मुहँ पर पूरा कपड़ा ढंक के निकलती थी .. मेने कहा अच्छा..वो लड़की जो जब भी राह में मिलते प्रणाम करती थी ..वो ..?
अरे हाँ वो मुन्नी .. वही पर.. वो मुझे प्रणाम नहीं करती थी ....वो उसके घर के ऐन सामने वाले घर में रहने वाले मुन्ने के साथ भाग गई ...
उनका ड्रामा इस कदर का था मानों इनकी लड़की भाग गई हो .. मेने सोचा इनको प्रणाम नहीं करती थी क्या इसलिए कसर निकल रहे हैं ..
अब में पूर्वाग्रहों से ग्रसित इस सामाजिक व्यवस्था के बारे सोच रहा था की ..लोग लड़की के भागने को ही इश्यु क्यों बनाते है ..अरे भई मुन्ना भी तो भागा है ..उसके लिए इस प्रकार टिप्पणी कर क्यों नहीं कहा जा रहा है ..
मेने यही बात निन्दारत निंदक महाशय से कही ..वो बोले ..अरे भई लड़के का क्या है ...उसके क्या फर्क पड़ेगा ..जिंदगी तो लड़की की बर्बाद होगी ना ..
मेने सोचा ...हमेशा लड़की की जिंदगी खराब होगी ये रट्टा सबके सामने मार मार के ही उसकी बदनामी कर देते है ..फिर तो जिन्दगी बर्बाद होनी ही है .
मुन्ने के माँ बाप कह रहे थे ..अरे छोरी का क्या है ..उसके माँ बाप का तो शादी का खर्चा बचा ..जीवन तो हमारे मुन्ने का ख़राब हुआ हमारा हुआ हाय रे......!!!! बिरादरी में नाक कटवा दी.. कमाने लायक छोरा हाथ से निकल गया ..अरे ना जाने क्या जादू कर दिया उस छोकरी ने हमारे मुन्ने पर ..सत्यानाश जाए उसका ..और उसको पैदा करने वालों का ..
कुल मिला कर सारा दोष लड़की का ...लड़की सुंदर हो तो ये आरोप की उसने लड़के पर जादू कर दिया और भगा ले गई
गरीब हो तो ये आरोप की लड़की के माँ बाप का शादी का खर्चा बचा ..
प्रगतिशील हो तो ये आरोप की ..अरे भई कोई जात बिरादरी भी कोई चीज होती है या नहीं ..पता नहीं किस खानदान से हैं .
पुलिस में जाओ तो थानेदार बड़े चुटीले अंदाज़ में कहेगा ,,,,हैं भई किसी के साथ चक्कर होगा ..आपने टाइम से शादी क्यों नहीं करवा दी ..होती तो आज ये नौबत नहीं आती ..और पुलिस वाले ..हमदर्दी की बजाय अपना इस बारे में ज्ञान बांटने लग जाते है ...मेरी गारंटी है ..इनका पुराना चक्कर होगा ..
अरे में सब जानता हूँ ..आजकल की लड़कियों को ..और कुछ करे नहीं करे पर बॉयफ्रेंड पहली फुर्सत में बना लेती है ..शाम को झील किनारे चले जाओ ..पता लग जाएगा ..की शहर से कितनी लड़कियां भगने वाली है ..
मेने सोचा ,,अरे क्यों मुन्नी के पीछे पड़े हो ..क्यों उसे ही बदनाम करते हो ..मुन्नी बेचारी सदियों से बदनाम होती आ रही है इन सब मुन्नों के लिए ..मुन्ने के साथ भागने से मुन्नी को मिलता क्या है ..केवल जिल्लत, रुसवाई, बदनामी ..पर मुन्नी इसलिए बदनाम होती है क्योंकि वो अपने मुन्ने को दिल की गहराईयों से टूट कर बेइन्तहा चाहती है ..कोई मुन्नी की भावनाओं को कोई समझेगा ,,क्या ..?
Saturday, March 5, 2011
चापलूसी कैसे करें ..आदर्श चापलूस संहिता
चापलूसी का रिवाज हमारे देश में पुराने समय से ही चला आ रहा है .
और आज के इस गला काट प्रतिस्पर्धा के समय में आप अगर कहीं टिक सकते हैं तो वो दो तरीकों से
पहला ये की आप इतने लायक हो की आपके आला अधिकारीयों को यानि बोस को आपकी योग्यता के आगे सभी नालायक लगे .
दूसरा तरीका ये है की आप अपने वरिस्ट जनों की इतनी चापलूसी, चमचागिरी करें की वो इसका लोह...ा मान जाएँ और उनको ये लगने लग जाए की दफ्तर में काम नहीं होगा तो चलेगा पर चापलूसी नहीं हुई तो कम्पनी डूब जायेगी .. यानि सारा नफा नुकसान चापलूसी पर निर्भर हो जाएँ
आपको वफादारी और चापलूसी के वो झंडे गाड़ने होंगे की सभी चापलूस आपकी चापलूसी और वफादारी के आगे मुहँ छुपाते फिरे ..
और
इस बात की आपसे ट्यूशन करने पर मजबूर हो जाएँ..
मेने चापलूसी के बारे में एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग कहीं पढ़ा था जो ...हमारे वर्तमान में सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अपने वरिस्ट जनों की चापलूसी करने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत है ..
बात अंग्रेजी शासन काल की है जब ..मध्यप्रदेश के किसी जिले में कोई अंग्रेज जिला कलक्टर हुआ करते थे ..सभी कर्मचारी, अधिकारी उनकी जी भर के चापलूसी करके अपनी वफादारी साबित करने के भरपूर प्रयास करते रहते थे.
एक दिन उन्होंने एक थाली में कुछ वस्तुएं रख के उस थाली पर रुमाल ढँक दिया और सभी चापलूसों से पूछा की बताओ इस थाली में क्या है ..सभी चापलूस समवेत बोले ..हजूर इसमें गोल बैंगन हैं ..कलक्टर ने कहा बैंगन तो हैं पर गोल नहीं लम्बे वाले हैं . तो सब चापलूस बोले जी हाँ लम्बे वाले ही हैं ..अब कलक्टर को गुस्सा आया और बोला ..में जो कह रहा हूँ उसकी हाँ में हाँ क्यों मिला रहे हो अपनी भी तो राय दो ..इस पर सभी चापलूस बड़ी ही बेशर्मी से खिसिया कर बोले हजूर हम तो आपके पीछे हैं आप कहेंगे गोल हैं तो गोल ही होंगे और आप कहेंगे लम्बे हैं तो लम्बे ही होंगे ..इसे अंग्रेजी के सायीकोफेंसी कहते हैं ..
चापलूस तो आज के ज़माने की अधिसंख्य आबादी हो गई है ..किसी भी दफ्तर में चापलूसी करना आजकल शिस्टाचार और सदाचार की श्रेणी में आता है.. पर मुद्दे की बात तो ये की कौन सबसे बड़ा चापलूस और वफादार है ..इसको अपने बोस के आगे प्रमाणित करना सबसे अहम् कार्य है .. और आजकल रातदिन इसी की होड़ लगी रहती है ..
कोई अपने बोस के बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने आप को सबसे बड़ा चापलूस साबित करने का प्रयास करता है, तो कोई सब्जी तरकारी ला कर, तो कोई बोस के घर अपने गाँव से शुद्ध घी का डब्बा ला कर, तो कोई बिजली पानी के बिल जमा करवा के ..
में कभी कभी ये सोचता हूँ की अब किसी के माथे पर तो ये नहीं लिखा है की फलाना अपने बोस का सबसे लाडला वाफ्दर चापलूस है या ढिमका है..
और इसका समाधान ढूंढने के लिए में सोचता हूँ की अब ईश्वर को भी नहीं पता था की ग़ुलामी और शुद्रता के कलयुग में मापदंड ही बदल जायेंगे और मानव रूपी चापलूस प्राणी को अपनी चापलूसी और वफादारी को साबित करने के लिए कठिनाई आने लग जायेगी और इस कार्य में भी बनावटीपन और फर्जीवाडा होने की आशंका हो जायेगी ..क्योंकि बोस किसी के मन में क्या है ये तो नहीं जान सकते ..तो फिर असली चापलूस और वफादार कौन है है ये रहस्य आसानी से खुल नहीं पायेगा ..
मेरे मन में इसका समाधान सुझा वो ये था की अगर भगवान सबके पूंछ उगा दे तो इसका हल निकल आएगा ..भगवान नहीं भी उगा सके तो सभी चापलूस सर्जरी करवा कर पूंछ उगवा सकते हैं ..इससे फायदा ये होगा की सभी चापलूसों में पालतू कुत्तों के गुणधर्म विकसित हो जायेंगे.. दफ्तर में कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने और अच्छे कर्मयोगी चापलूसों का पता लगाने या उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी द्वारा पूंछ की सर्जरी के लिए मेडिकल एड भी दिए जाने का प्रावधान हो सकता है ..और पूंछ का घाव भरे तब तक के मेडिकल अवकाश की व्यवस्था भी ..इसके लिए अलग से हेड भी सृजित किया जा सकता है ..
सुबह दस बजे ज्योंही सभी बोस दफ्तर पहुंचेंगे सभी चापलूसों की पूंछे स्वत स्फूर्त यानि जिस प्रकार मालिक को देख कर कुत्ते की पूंछ स्वाभविक तौर पर हिलने लगती है उसी भाव से सभी चापलूसों की पूंछे भी हिलने लग जायेगी ..
इस स्वामिभक्त आचरण से सभी मालिक स्वत ही समझ जायेंगे की उनके समक्ष दूम हिलाने वाले चापलूस वास्तव में चापलूसी कर अपनी वफादारी का परिचय दे रहें हैं या नाटक कर रहें हैं ..
चापलूसी के इस अभिनव उपक्रम में जिसकी पूंछ सतत और तेजी से हिलती दुलती रहेगी वो उच्च स्तर का चापलूस प्रमाणित होगा..जिसे बोस दफ्तर के वार्षिक आयोजन पर अपने उल्लेखनीय कार्यों और नवाचार प्रयासों का उपयोग कर प्रगति कर दफ्तर को नवीनतम ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए पदोन्नत और सम्मानित कर सकेंगे..और जो सतत पूंछ हिलाने में असफल रहेंगे उनके बारे में ये मान लिया जाएगा की उनका आचरण दफ्तर के अनुशासन के विरुद्ध है इस कारण दफ्तर के कार्यों का नुकसान हुआ है अतः क्यों ना ऐसे कर्मियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए..
मुझे लगता है की इसके बाद सभी चापलूसों में इस बात की होड़ लग जायेगी की कौन कितनी देर तक अपनी पूंछ हिला कर बोस को अपनी चापलूसी और वफादारी का प्रमाण दे सकता है ..इस क्रम में कई चापलूस इस कार्य में इतने माहिर हो जायेंगे की उनको कई अन्य विभागों के बोस अपनी सरपरस्ती में लेने के लिए तेयार हो जायेंगे .
होगा ये की किसी कम्पनी के छोटे बोस के पास ज्यादा चापलूसी करने वाला चापलूस होगा तो बड़ा बोस अपने छोटे बोस से कहेगा ..यार शर्मा तेरा ये चापलूस तो बड़ी गज़ब की चापलूसी करता है यार ..अब देख ना में आधे घंटे से तेरे केबिन में बैठा हूँ ,,मेरे आते ही चाय नाश्ते का इंतजाम तो इसने किया ही पर इसने मेरे जूते उतार कर अपने रुमाल से चमकाए और तभी से लगातार अपनी पूंछ मेरे सामने हिला रहा है ..भई में तो इसकी चापलूसी का कायल हो गया ..में तेरे प्रमोशन का बंदोबस्त करवा देता हूँ तू मुझे तेरे इस चापलूस को मेरे यहाँ भेज दे ..अरे यार मेरे वाले को कोई तमीज़ ही नहीं है जब आता हु तो एक बार पूंछ हिला कर बेठ जाता है अरे भी कोई बात हुई ..पूंछ है किसलिए अरे भई अपने बोस को देख के हिलाने के लिए ही तो है..
कई चापलूस जो अपनी पत्नियों से थर्राते हैं उनकी तो डबल ड्यूटी हो जायेगी दफ्तर में बोस के आगे पूंछ हिलाओ तो घर जाते ही पत्नी के आगे ..
मुहल्ले की सभी पत्नियाँ जब कभी एक साथ बैठेंगी तो अपने अपने पतियों की पूंछ हिलाने की रफ्तार के बारे में चर्चा कर अभिभूत होंगी तो कोई अपने पति को कोसेगी की उसका पति बराबर पूंछ नहीं हिलाने के कारण टाइम से प्रमोशन नहीं पा सका ..
और आज के इस गला काट प्रतिस्पर्धा के समय में आप अगर कहीं टिक सकते हैं तो वो दो तरीकों से
पहला ये की आप इतने लायक हो की आपके आला अधिकारीयों को यानि बोस को आपकी योग्यता के आगे सभी नालायक लगे .
दूसरा तरीका ये है की आप अपने वरिस्ट जनों की इतनी चापलूसी, चमचागिरी करें की वो इसका लोह...ा मान जाएँ और उनको ये लगने लग जाए की दफ्तर में काम नहीं होगा तो चलेगा पर चापलूसी नहीं हुई तो कम्पनी डूब जायेगी .. यानि सारा नफा नुकसान चापलूसी पर निर्भर हो जाएँ
आपको वफादारी और चापलूसी के वो झंडे गाड़ने होंगे की सभी चापलूस आपकी चापलूसी और वफादारी के आगे मुहँ छुपाते फिरे ..
और
इस बात की आपसे ट्यूशन करने पर मजबूर हो जाएँ..
मेने चापलूसी के बारे में एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग कहीं पढ़ा था जो ...हमारे वर्तमान में सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अपने वरिस्ट जनों की चापलूसी करने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत है ..
बात अंग्रेजी शासन काल की है जब ..मध्यप्रदेश के किसी जिले में कोई अंग्रेज जिला कलक्टर हुआ करते थे ..सभी कर्मचारी, अधिकारी उनकी जी भर के चापलूसी करके अपनी वफादारी साबित करने के भरपूर प्रयास करते रहते थे.
एक दिन उन्होंने एक थाली में कुछ वस्तुएं रख के उस थाली पर रुमाल ढँक दिया और सभी चापलूसों से पूछा की बताओ इस थाली में क्या है ..सभी चापलूस समवेत बोले ..हजूर इसमें गोल बैंगन हैं ..कलक्टर ने कहा बैंगन तो हैं पर गोल नहीं लम्बे वाले हैं . तो सब चापलूस बोले जी हाँ लम्बे वाले ही हैं ..अब कलक्टर को गुस्सा आया और बोला ..में जो कह रहा हूँ उसकी हाँ में हाँ क्यों मिला रहे हो अपनी भी तो राय दो ..इस पर सभी चापलूस बड़ी ही बेशर्मी से खिसिया कर बोले हजूर हम तो आपके पीछे हैं आप कहेंगे गोल हैं तो गोल ही होंगे और आप कहेंगे लम्बे हैं तो लम्बे ही होंगे ..इसे अंग्रेजी के सायीकोफेंसी कहते हैं ..
चापलूस तो आज के ज़माने की अधिसंख्य आबादी हो गई है ..किसी भी दफ्तर में चापलूसी करना आजकल शिस्टाचार और सदाचार की श्रेणी में आता है.. पर मुद्दे की बात तो ये की कौन सबसे बड़ा चापलूस और वफादार है ..इसको अपने बोस के आगे प्रमाणित करना सबसे अहम् कार्य है .. और आजकल रातदिन इसी की होड़ लगी रहती है ..
कोई अपने बोस के बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने आप को सबसे बड़ा चापलूस साबित करने का प्रयास करता है, तो कोई सब्जी तरकारी ला कर, तो कोई बोस के घर अपने गाँव से शुद्ध घी का डब्बा ला कर, तो कोई बिजली पानी के बिल जमा करवा के ..
में कभी कभी ये सोचता हूँ की अब किसी के माथे पर तो ये नहीं लिखा है की फलाना अपने बोस का सबसे लाडला वाफ्दर चापलूस है या ढिमका है..
और इसका समाधान ढूंढने के लिए में सोचता हूँ की अब ईश्वर को भी नहीं पता था की ग़ुलामी और शुद्रता के कलयुग में मापदंड ही बदल जायेंगे और मानव रूपी चापलूस प्राणी को अपनी चापलूसी और वफादारी को साबित करने के लिए कठिनाई आने लग जायेगी और इस कार्य में भी बनावटीपन और फर्जीवाडा होने की आशंका हो जायेगी ..क्योंकि बोस किसी के मन में क्या है ये तो नहीं जान सकते ..तो फिर असली चापलूस और वफादार कौन है है ये रहस्य आसानी से खुल नहीं पायेगा ..
मेरे मन में इसका समाधान सुझा वो ये था की अगर भगवान सबके पूंछ उगा दे तो इसका हल निकल आएगा ..भगवान नहीं भी उगा सके तो सभी चापलूस सर्जरी करवा कर पूंछ उगवा सकते हैं ..इससे फायदा ये होगा की सभी चापलूसों में पालतू कुत्तों के गुणधर्म विकसित हो जायेंगे.. दफ्तर में कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने और अच्छे कर्मयोगी चापलूसों का पता लगाने या उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी द्वारा पूंछ की सर्जरी के लिए मेडिकल एड भी दिए जाने का प्रावधान हो सकता है ..और पूंछ का घाव भरे तब तक के मेडिकल अवकाश की व्यवस्था भी ..इसके लिए अलग से हेड भी सृजित किया जा सकता है ..
सुबह दस बजे ज्योंही सभी बोस दफ्तर पहुंचेंगे सभी चापलूसों की पूंछे स्वत स्फूर्त यानि जिस प्रकार मालिक को देख कर कुत्ते की पूंछ स्वाभविक तौर पर हिलने लगती है उसी भाव से सभी चापलूसों की पूंछे भी हिलने लग जायेगी ..
इस स्वामिभक्त आचरण से सभी मालिक स्वत ही समझ जायेंगे की उनके समक्ष दूम हिलाने वाले चापलूस वास्तव में चापलूसी कर अपनी वफादारी का परिचय दे रहें हैं या नाटक कर रहें हैं ..
चापलूसी के इस अभिनव उपक्रम में जिसकी पूंछ सतत और तेजी से हिलती दुलती रहेगी वो उच्च स्तर का चापलूस प्रमाणित होगा..जिसे बोस दफ्तर के वार्षिक आयोजन पर अपने उल्लेखनीय कार्यों और नवाचार प्रयासों का उपयोग कर प्रगति कर दफ्तर को नवीनतम ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए पदोन्नत और सम्मानित कर सकेंगे..और जो सतत पूंछ हिलाने में असफल रहेंगे उनके बारे में ये मान लिया जाएगा की उनका आचरण दफ्तर के अनुशासन के विरुद्ध है इस कारण दफ्तर के कार्यों का नुकसान हुआ है अतः क्यों ना ऐसे कर्मियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए..
मुझे लगता है की इसके बाद सभी चापलूसों में इस बात की होड़ लग जायेगी की कौन कितनी देर तक अपनी पूंछ हिला कर बोस को अपनी चापलूसी और वफादारी का प्रमाण दे सकता है ..इस क्रम में कई चापलूस इस कार्य में इतने माहिर हो जायेंगे की उनको कई अन्य विभागों के बोस अपनी सरपरस्ती में लेने के लिए तेयार हो जायेंगे .
होगा ये की किसी कम्पनी के छोटे बोस के पास ज्यादा चापलूसी करने वाला चापलूस होगा तो बड़ा बोस अपने छोटे बोस से कहेगा ..यार शर्मा तेरा ये चापलूस तो बड़ी गज़ब की चापलूसी करता है यार ..अब देख ना में आधे घंटे से तेरे केबिन में बैठा हूँ ,,मेरे आते ही चाय नाश्ते का इंतजाम तो इसने किया ही पर इसने मेरे जूते उतार कर अपने रुमाल से चमकाए और तभी से लगातार अपनी पूंछ मेरे सामने हिला रहा है ..भई में तो इसकी चापलूसी का कायल हो गया ..में तेरे प्रमोशन का बंदोबस्त करवा देता हूँ तू मुझे तेरे इस चापलूस को मेरे यहाँ भेज दे ..अरे यार मेरे वाले को कोई तमीज़ ही नहीं है जब आता हु तो एक बार पूंछ हिला कर बेठ जाता है अरे भी कोई बात हुई ..पूंछ है किसलिए अरे भई अपने बोस को देख के हिलाने के लिए ही तो है..
कई चापलूस जो अपनी पत्नियों से थर्राते हैं उनकी तो डबल ड्यूटी हो जायेगी दफ्तर में बोस के आगे पूंछ हिलाओ तो घर जाते ही पत्नी के आगे ..
मुहल्ले की सभी पत्नियाँ जब कभी एक साथ बैठेंगी तो अपने अपने पतियों की पूंछ हिलाने की रफ्तार के बारे में चर्चा कर अभिभूत होंगी तो कोई अपने पति को कोसेगी की उसका पति बराबर पूंछ नहीं हिलाने के कारण टाइम से प्रमोशन नहीं पा सका ..
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