Thursday, May 20, 2010

मुझे नहीं लगता की महिला आरक्षण मिल जाएगा

विभिन्न पार्टियों की तीव्र बहस के बाद भारतीय लोक सभा आखिरकार 16 मार्च तारीख को संपन्न हुई। लोकमतों द्वारा केन्द्रित 33 प्रतिशत महिला आरक्षण विधेयक प्रस्ताव पूर्व योजनानुसार इस दिन पारित नहीं हो पायी । भारतीय न्याय मंत्री मोइली ने इसी दिन नयी दिल्ली में मीडियाओं से कहा कि कांग्रेस पार्टी सरकार अन्य विभिन्न पार्टियों की एकमता न पाने की स्थिति में जबरदस्ती इस प्रस्ताव को पारित नहीं करना चाहती है।

ये अलग बात है की अमेरिका के साथ परमाणु समजोता करने के लिए मरी जा रही कांग्रेस ने उस समय इस प्रकार एकमत होने की न तो बात की थी और न ही इसकी प्रतीक्षा. सही बात तो ये है की कांग्रेस भी नहीं चाहती है की महिलाओं को 33 % आरक्षण मिल जाये. जो पार्टियाँ महिलाओं के होटों का ढोल पीट रही है वे अपने गिरेंबान में झांक कर देखे की इन्होने अपनी पार्टी के 33 पदों पर क्या महिलाओं को रखा हुआ है शायद नहीं. महिलाओं का मसला छोड़ो क्या दलितों और आदिवासियों को समुचित स्थान दे रखा है शायद नहीं. असल में ये मुद्दा है महंगाई और आतंकवाद जेसे मसलों से जनता का ध्यान हटाने के लिए.

इसी माह की 9 तारीख को भारतीय राज्य सभा ने बहुमत वोटों से संविधान की 108 धारा संशोधन प्रस्ताव पारित कर दिया। इस संशोधन प्रस्ताव के मुताबिक भारत की केन्द्रीय व विधान सभा को अवश्य महिला के लिए 33 प्रतिशत सीटें सुरक्षित रखनी होगी। उक्त भारतीय संशोधन कानून के अनुसार, इस प्रस्ताव को संसद के दो सदनों की दो तिहाई बहुमत से पारित होने पर ही प्रभाव में डाला जा सकता है। उस समय लोकमतों की आम राय थी कि हालांकि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली गठबन्धन सरकार को संसद की लोक सभा में बहुमत सीटें हासिल हैं , और उधर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने भी इस प्रस्ताव पर भी समर्थन जताया है, इस लिए लोक सभा में इस प्रस्ताव का पारित होने में कोई बाधा नहीं होगी। परन्तु आने वाले कुछ दिनों में भारतीय राजनीति मंच में विभिन्न पार्टियों ने अपने हितों को ध्यान में रखते हुए 9 तारीख से पार्टियों के बीच अनेक नौंक भौंक शुरू कर उसपर आपत्ति उठायी , जिस से इस महिला आरक्षण विधेयक को एक अनिश्चितकाल के भविष्य पर पहुंचा दिया गया।

केन्द्रीय और विधान सभा के दो सदनों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित प्रस्ताव 1996 में तत्कालीन गोडा सरकार द्वारा पेश की गयी थी, लेकिन तब से वे अब तक भारतीय संसंद में पारित नहीं हो पायी है।

लोगों आश्चर्य चकित हैं कि भारत आखिर क्यों इस आसाधारण प्रस्ताव को पारित करना चाहता है ? इस का भारत में महिला की स्थिति से घनिष्ठ संबंध है। भारतीय महिला ने सौ सालों की कड़ी मेहनत से हालांकि धीरे धीरे पुरूष जैसी राजनीतिक अधिकार समानता हासिल करने में थोड़ी बहुत प्रगति की है, तो भी पूर्ण रूप से महिला अब भी कमजोर स्थान में पड़ी हुई हैं। भारतीय महिला लम्बे अर्से से राजनीति में भाग लेने व प्रशासन में अपनी राय प्रस्तुत करने तथा संपति अधिकार पाने में वंचित रही हैं। पिछली शताब्दी के 90 वाले दशक से भारत में अर्थतंत्र का पुनरूत्थान शुरू होने के बाद से महिला सामाजिक जीवन में अधिकाधिक प्रफुल्लित होने लगी और तब से भारतीय महिला के अपने अधिकार व हित से संबंधित अधिकारों को पाने की सामाजिक आधार धीरे धीरे परिपक्व होने लगी हैं। इसी पृष्ठभूमि तले, भारत के संविधान नम्बर 108 धारा संशोधन प्रस्ताव को औपचारिक रूप से संसद की कार्यसूची में दाखिल किया गया।

महिला आरक्षण विधेयक प्रस्ताव भारतीय महिलाओं के सामाजिक स्थान को उन्नत करने व भारतीय समाज की प्रगति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। तो क्यों समाजवादी और राष्ट्रीय जनता दल आदि कुछेक पार्टियां इस का विरोध कर रही हैं ? विश्लेषकों ने कहा है कि भारत की दो मुख्य पार्टी कांग्रेस व भाजपा लम्बे अर्से से बुनियादी इकाईयों की जनता में अपनी गतिविधियां चलाती आयी हैं , इस लिए उनके पास बहु मतदाता हैं और उनको बहुत सी सर्वश्रेष्ठ महिला राजनीतिज्ञों का भी समर्थन प्राप्त हैं। यदि ये दो पार्टियां महिला आरक्षण विधेयक को सहमति देते हैं तो उन्हें अधिक वोट हासिल हो सकते हैं और उनका राजनीतिक क्षेत्र बढ़ सकता है। जबकि समाजवादी व राष्ट्रीय जनता दल आदि छोटी पार्टियों की संसद में सींटे इतनी संतोषजनक नहीं हैं, और तो और इन पार्टियों के मतदाता आम तौर पर समाज के निचले वर्ग के जन समूह हैं, सर्वश्रेष्ठ महिला राजनीतिज्ञों का नामोनिशान तक नहीं हैं। यदि कांग्रेस और भाजपा संसद में जबरन इस प्रस्ताव को पारित करती है तो ये छोटी पार्टियां गठबन्धन सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ खड़ी हो सकती हैं और विपक्ष पार्टी हाथ धरे बैठे इस का लाभ उठा सकती हैं। इस कारण कांग्रेस सरकार को इस समस्या पर संजीदगी से विचार करना बहुत ही अनिवार्य है। विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस महिला आरक्षण विधेयक को जबरन पारित कर अपने राजनीतिक स्थान को जोखिमता में नहीं डालेगी।पर काफी हद तक लालूप्रसाद और मुलायम जेसे नेताओं के तर्क ठीक लगते हैं की महिलाओं को 33 % आरक्षण मिलने पर भी गरीब और दलित वर्ग की महिलाओं की बजाय कार्पोरेट सेक्टर और सामंती वर्ग की महिलाओं को ही इसका लाभ मिलेगा ये बात है भी सही क्योंकि जिस देश की संसद में 350 सांसद करोडपति हो और गरीब पुरुष सांसद को भी आज लोकसभा में पहुंचना लगभग असंभव लग रहा हो इसे माहोल में गरीब महिला का संसद में पहुंचना एक ख़ूबसूरत सपने जेसा ही है, हमारे देश में जहाँ एम् एल ए और एम् पी के टिकट बिक रहे हो वहां गरीब की हैसियत ही नहीं है की वो चुनाव में खड़ा हो जाये.

नवीनतम जारी एक जनमत संग्रह से पता चला है कि भारत की मीडिया इस विधेयक का समर्थन करती है, लेकिन जनता नहीं मानती है कि इस प्रस्ताव के पारित होने से महिला के हित व अधिकार में कोई असली सुधार होगा।मिडिया के समर्थन के पीछे बाज़ारवादी सोच है जो सीधा बहुरास्ट्रीय कम्पनियों से जुडा है जो उपभोक्ता सामग्री का निर्माण करती है और उसे बेचने के लिए महिला मोडल के रूप में मिडिया में एक बड़ी अहम् भूमिका निभा रही है इसके अलावा महिला एलोक्ट्रानिक मिडिया की सबसे बड़ी दर्शक है

भारतीय सामाजिक शास्त्र के विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि भारत के पास अनेक सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक महिलाएं तो हैं, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत की महिलाओं को फिलहाल पुरूष जैसी समानता व अधिकार हासिल हो चुकी हैं, भारत महिला की अन्तिम मुक्ति भारत के सामाजिक अर्थतंत्र विकास पर निर्भर रहती है।क्योंकि सही मायने में महिला तभी स्वतंत्र होगी जब वो आर्थिक रूप से सक्षम बने और उसके द्वारा कमाए गए धन का भी वो खुद उपयोग करने का निर्णय ले सके जो अभी दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहा है.

मांगीलाल गुर्जर

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