Wednesday, May 5, 2010

पुराने कानूनों से बरपा रहे हैं जुल्म, नए का इल्म नहीं




वन अधिकार कानून के पारित होने के बाद लघु वन उपज पर आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन वासियों का अधिकार हो गया है. अब ते समुदाय वनों से वन उपज का संग्रहण, उपभोग और अपनी आजीविका के लिए इसे सर बोझ, हाथ गाड़ी या साइकल द्वारा ला कर बेच भी सकते हैं,
पर वन अधिकार कानून के लागु होने के दो साल बाद भी राजस्थान की पुलिस इस कानून से बेखबर है और आये दिन इन समुदायों के लोगों पर वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के तहत मुकदमे बना रही है, राज्य की पुलिस को ये भी पता नहीं है की लघु वन उपज पर आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन वासियों का क़ानूनी अधिकार हो गया है, और इसी गफलत के कारण उदयपुर जिले में ही 5 से ज्यादा मुकदमे बना कर 15 से अधिक लोंगो को शहद, महुआ, आदि ले जाते हुए गिरफ्तार किया.
इस बारे में जब 26 मई को उदयपुर जिले की गोगुन्दा तहसील की सायरा पुलिस ने दो आदिवासियों को पकड़ा तो हमने पुलिस को उन आदिवासियों को वन अधिकार कानून का हवाला दे कर छोड़ने को कहा पर पुलिस का कहना था की उनके पास नए कानून की कोई जानकारी नहीं है और हमारे हिसाब से वन उपज का संग्रहण, उपभोग और परिवहन अपराध है, फिर हम कानून की किताब के साथ उदयपुर पुलिस रेंज के पुलिस महानिरीक्षक से मिले और उनको कानून के बारे में बताया, उन्होंने इसे अपनी गलती माना और ततकाल उदैपुर रेंज के सभी पुलिस थानों को जिला पुलिस अधीक्षकों के जरिये आदेश भिजवाया की किसी भी आदिवासी या अन्य परंपरागत वन वासियों को लघु वन उपज लेट हुए परेशान नहीं किया जाये.
मांगीलाल गुर्जर
उदयपुर

No comments: