मेने एक सीमेंट का विज्ञापन देखा ..उसमे एक सुडोल शरीर की मालकिन अर्धनग्न कन्या जो सुन्दरता के कथित सभी मापदंडों को पूरा करती प्रतीत हो रही थी ..(जेसा की उसके तन से उजागर हो रहा था) ..
वो विज्ञापन के उस विशाल होर्डिंग में खड़ी हुई दर्शाई गई थी वहीँ दूसरी और उक्त सीमेंट से बनी बिल्डिंग ...और उस बोर्ड पर लिखा था ..
'''''एक अटूट विश्वास,, सोलिड माल,, जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा ..एक बार जरुर उपयोग करें .......''
मेरी समझ में ये नहीं आया की सोलिड क्या है ...? में इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं करूँगा ...
विह्यापन सड़क के ऐसे मोड़ पर लगाया गया की उस पर नज़र पड़े बिना रह ही नहीं सकती ..
एक विज्ञापन और जो ..किसी कार का था ...
उसमे एक अति सुंदर अल्प वस्त्रधारिणी कन्या ..उसके शरीर पर कपडे इस प्रकार थे की जो अंग छिपाने थे वे तो नहीं छिप रहे थे.. और जो नहीं छिपाने थे उनको छिपाने की जरुरत ही नहीं होने के कारण नहीं छिपाया गया ..वो उस कार के बोनट पर झुकी हुई थी ..बोर्ड पर लिखा हुआ था ..
''''''क्या बाडी है..कितनी आरामदायक .और स्पीड के तो कहने ही क्या ..इसका माइलेज गज़ब ..सबसे अलग...''''''
में कनफुज्य की बेचा किसको जा रहा है ...मानव बिक्री पर तो क़ानूनी रोक है ..और विज्ञापन से तो ऐसा ही लग रहा था की कार को नहीं ..बेच के ..
अब में आगे नहीं कहूँगा ,,,,,,,,
एक गोरी बनाने की क्रीम का विज्ञापन ...लड़की की शादी नहीं हो पा रही है ..जो भी लड़का आया उसने उसे रिजेक्ट किया ..लड़की ने तत्काल गोरी होने का नुस्खा आजमाया ..
इस क्रम में लड़की को पहले दिन काली बताया ...सातवें दिन ..वो फुलमून नज़र आने लगी .. उसके पुरे मुहल्ले के लड़के उसके घर के सामने शादी का प्रस्ताव लेकर लाइन में खड़े थे ..अब लड़की तय करेगी की उसे किसके साथ शादी करनी है .. जो लड़का देखने आया है ..वो लड़की की असीम सुन्दरता के आगे गद गद है ..
प्रेशर कुकर का विज्ञापन ...............''''
पतिदेव का प्रमोशन रुका हुआ है ..
शाम को बोस को खाने पर बुलाया ..पत्नी ने फलां प्रेशर कुकर में खाना पकाया.. बोस को खिलाया ..बोस ने खाने की तारीफ की (छुपे तौर पर उसकी पत्नी की) पत्नी मुस्कराई बोस ने उसी वक्त प्रमोशन कर दिया ,,पति बोला जय हो फलां कुकर देव की ...अब प्रमोशन कुकर ने करवाया या उसकी पत्नी की कातिल मुस्कराहट ने ..ये तो विज्ञापन बनानेवाले ही जाने ..
पुरुष के अंडर गारमेंट ..का विज्ञापन ..
पुरुष एक चड्डी में आता है ..और चड्डी में ही 7 - 8 गुंडों से लड़ता है ..और लड़की को बचा लेता है ...लड़की उसका शुक्रिया अदा करने के भावों से उसे निहारती है ...और उसकी तरफ बड़े ही कातिलाना अंदाज़ से बढती है ...अब बचो ...तुम्हें कौन बचाएगा ..पर बचना भी कौन चाहता है ...बढ़िया ..
एक विज्ञापन परफ्यूम स्प्रे का ..
एक शादीशुदा सधस्नाता सुंदर पतिव्रता भारतीय नारी ..सामने दूसरी और की बालकनी में एक मेट्रोसेक्सुअल इंडियन यंगबोय जो फलां परफ्यूम स्प्रे लगाये हुए हुए है ..उसकी खुशबु ज्योंही स्त्री तक पहुँचती है उसके पग पथभ्रष्ट होने लगे है ..वो परफ्यूम लगाये युवक की और आकर्षित होने लगती है ..
में सोच रहा हूँ ये कौनसा सन्देश है देश वासियों को ..
इसके एक दुसरे विज्ञापन में पुरे शहर की लड़कियां उस युवक के पीछे भाग रही है जिसने उक्त स्प्रे लगा रखी है ..जेसे मक्खियाँ गुड के पीछे हो ..
लिफ्ट में एक लड़का और लड़की साथ में है लड़का लिफ्ट से बाहर आता है तो उसे ऐसा दिखाया जाता है जेसे उसकी इज्ज़त लुट चुकी हो ..मानों उसने वो परफ्यूम लगा कर ही गलती कर दी और उधर लड़की ऐसे संतोष के भाव चहेरे पर लाकर लिफ्ट से निकलती है मानों बिल्ली मलाई चाट कर निकली हो ,,परम संतोष के भाव ..
महिलाओं का इतना घटिया और भौंडा प्रदर्शन इन विज्ञापनों में ..बर्दास्त के बाहर है ..मुझे पूरा विश्वास है भारत की महिला अभी इतनी आगे नहीं है की उनकी वजह से पुरुषों की इज्ज़त खतरे में हो ..भारत क्या दुनिया में भी ऐसा नहीं है ..महिला का ये चित्रण पूरी तरह से नकली है .
एक टायर का विज्ञापन .........''
लड़की और टायर दोनों खड़े हैं बोर्ड में ....टायर काला कलूटा है,, अकेले टायर को कौन देखेगा और किसी को भी जरुरत है तो वेसे ही खरीद लेगा ..पर विज्ञापन है ..काले कलूटे टायर के साथ में एक गोरी षोडशी खड़ी है ...काला कुरूप टायर अपने नसीब पर रश्क कर रहा है ..की उसे एक शानदार खुबसूरत लड़की का साथ प्राप्त है ..मेने सोचा इस बार में भी यही टायर खरीदूंगा और जब तक पहले वाले टायर घिस नहीं जाते में रोज इस विज्ञापन के दर्शन करूँगा तथा साथ ही प्रार्थना करूँगा की मेरे टायर जल्दी घिसे ..
एक मोटर साइकल का विज्ञापन ...........'''
लड़की मोटर साइकल के पास में खड़ी है ...........बोर्ड पर लिखा है ,,..'' गज़ब का दम..शानदार पिकप ...एक शानदार सवारी ..फ्री ट्रायल के लिए हमारे शोरुम पर पधारें ....मेरे साथ चल रहे साथी ने कहा आज ही जाता हूँ ...लड़का मोटर साइकल पर सवार है और स्पीड से बढ़ा जा रहा है ..क्या सवारी है ..कल्पना में लड़की दिखाई जा रही है ....
एक चाकलेट का विज्ञापन ......''
लड़का स्वादिस्ट चाकलेट का रेपर उतार रहा है ...और कल्पना में एक लड़की है ...'''
मेने अपना माथा ठोक लिया ...हद हो गई ....
एक और विज्ञापन में लड़की रात को गाडी खराब होने के कारण रास्ते में एक लड़के के यहाँ रुकना चाह रही है ..लड़का गोली खा कर तरकीब लडाता है की लड़की उसके कमरे में रुक जाए ...यानि चाकलेट खाते ही दिमाग में शैतान जाग गया ...
कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन ....'''''
लड़का कोल्ड ड्रिंक घटक रहा है ..और लड़की के मुहँ से लार टपक रही है ....
एक वाशिंग पाउडर का विज्ञापन ....
विज्ञापन में महिला को महिला का विरोधी बताया है क्योंकि ..उसकी साड़ी उससे ज्यादा सफेद है ..जो उसे बर्दास्त नहीं है ..''
में ये कह रहा हूँ की ..महिलाओं के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन कोई लड़की करे तो समझ में आता है ..पर पुरुषों के उपयोग की वस्तुओं का विज्ञापन लड़की करे ...ये मेरी तो समझ के बाहर है ..असल में महिला आज भी बिकाऊ है उसे पुराने ज़माने की तरह सीधे तौर पर जबरिया नहीं बेचा जा रहा है पर उसकी देह के खरीदार आज के सभ्य समाज में भी है ..बस तरीके बदल दिए गए है ..अन्यथा स्त्री आज भी बाज़ार में बिक रही है किसी वस्तु या मवेशी की तरह ...
Saturday, March 19, 2011
Tuesday, March 15, 2011
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए ....
मुन्नी ही बदनाम क्यों होती है , ये मुन्ना क्यों नहीं होता ..
मेरे पड़ोस की मुन्नी ..पड़ोस के मुन्ने के साथ पिछली रात को मां बाप को सोते छोड़ खिड़की से कूद कर भाग गई .. शंका पहले से रही होगी क्योंकि उनकी मुहब्बत का चर्चा आम था ..पर जो होना था वही हुआ ..जेसे भेंस चोरी होने के बाद खाली तबेले में अपने सर पिटते मुन्नी के माँ बाप घर में मातम मना रहे थे ...
वहीँ बाहर मुझे बाजु वाले महाशय ...मुहल्ले की चाय की पटरी पर मिले ..लोकल अख़बार में झांकते हुए... और मुझे आता देख वो चेहरे पर नकली दुःख का आवरण चढ़ा कर मुझसे मुखातिब होकर बड़े चुटीले अंदाज़ में बोले ..हें भई..जानते हो .?.अपनी गली के लास्ट घर के पहले वाले घर में जो छोकरी नहीं थी ..मेने जान बुज कर कहा कौनसी ...?
वो बोले अरे आप नहीं जानते वो जींस पहने स्कूटी चलाती थी और लटर पटर करती रहती थी ..चश्मा लगाती थी और मुहँ पर पूरा कपड़ा ढंक के निकलती थी .. मेने कहा अच्छा..वो लड़की जो जब भी राह में मिलते प्रणाम करती थी ..वो ..?
अरे हाँ वो मुन्नी .. वही पर.. वो मुझे प्रणाम नहीं करती थी ....वो उसके घर के ऐन सामने वाले घर में रहने वाले मुन्ने के साथ भाग गई ...
उनका ड्रामा इस कदर का था मानों इनकी लड़की भाग गई हो .. मेने सोचा इनको प्रणाम नहीं करती थी क्या इसलिए कसर निकल रहे हैं ..
अब में पूर्वाग्रहों से ग्रसित इस सामाजिक व्यवस्था के बारे सोच रहा था की ..लोग लड़की के भागने को ही इश्यु क्यों बनाते है ..अरे भई मुन्ना भी तो भागा है ..उसके लिए इस प्रकार टिप्पणी कर क्यों नहीं कहा जा रहा है ..
मेने यही बात निन्दारत निंदक महाशय से कही ..वो बोले ..अरे भई लड़के का क्या है ...उसके क्या फर्क पड़ेगा ..जिंदगी तो लड़की की बर्बाद होगी ना ..
मेने सोचा ...हमेशा लड़की की जिंदगी खराब होगी ये रट्टा सबके सामने मार मार के ही उसकी बदनामी कर देते है ..फिर तो जिन्दगी बर्बाद होनी ही है .
मुन्ने के माँ बाप कह रहे थे ..अरे छोरी का क्या है ..उसके माँ बाप का तो शादी का खर्चा बचा ..जीवन तो हमारे मुन्ने का ख़राब हुआ हमारा हुआ हाय रे......!!!! बिरादरी में नाक कटवा दी.. कमाने लायक छोरा हाथ से निकल गया ..अरे ना जाने क्या जादू कर दिया उस छोकरी ने हमारे मुन्ने पर ..सत्यानाश जाए उसका ..और उसको पैदा करने वालों का ..
कुल मिला कर सारा दोष लड़की का ...लड़की सुंदर हो तो ये आरोप की उसने लड़के पर जादू कर दिया और भगा ले गई
गरीब हो तो ये आरोप की लड़की के माँ बाप का शादी का खर्चा बचा ..
प्रगतिशील हो तो ये आरोप की ..अरे भई कोई जात बिरादरी भी कोई चीज होती है या नहीं ..पता नहीं किस खानदान से हैं .
पुलिस में जाओ तो थानेदार बड़े चुटीले अंदाज़ में कहेगा ,,,,हैं भई किसी के साथ चक्कर होगा ..आपने टाइम से शादी क्यों नहीं करवा दी ..होती तो आज ये नौबत नहीं आती ..और पुलिस वाले ..हमदर्दी की बजाय अपना इस बारे में ज्ञान बांटने लग जाते है ...मेरी गारंटी है ..इनका पुराना चक्कर होगा ..
अरे में सब जानता हूँ ..आजकल की लड़कियों को ..और कुछ करे नहीं करे पर बॉयफ्रेंड पहली फुर्सत में बना लेती है ..शाम को झील किनारे चले जाओ ..पता लग जाएगा ..की शहर से कितनी लड़कियां भगने वाली है ..
मेने सोचा ,,अरे क्यों मुन्नी के पीछे पड़े हो ..क्यों उसे ही बदनाम करते हो ..मुन्नी बेचारी सदियों से बदनाम होती आ रही है इन सब मुन्नों के लिए ..मुन्ने के साथ भागने से मुन्नी को मिलता क्या है ..केवल जिल्लत, रुसवाई, बदनामी ..पर मुन्नी इसलिए बदनाम होती है क्योंकि वो अपने मुन्ने को दिल की गहराईयों से टूट कर बेइन्तहा चाहती है ..कोई मुन्नी की भावनाओं को कोई समझेगा ,,क्या ..?
मेरे पड़ोस की मुन्नी ..पड़ोस के मुन्ने के साथ पिछली रात को मां बाप को सोते छोड़ खिड़की से कूद कर भाग गई .. शंका पहले से रही होगी क्योंकि उनकी मुहब्बत का चर्चा आम था ..पर जो होना था वही हुआ ..जेसे भेंस चोरी होने के बाद खाली तबेले में अपने सर पिटते मुन्नी के माँ बाप घर में मातम मना रहे थे ...
वहीँ बाहर मुझे बाजु वाले महाशय ...मुहल्ले की चाय की पटरी पर मिले ..लोकल अख़बार में झांकते हुए... और मुझे आता देख वो चेहरे पर नकली दुःख का आवरण चढ़ा कर मुझसे मुखातिब होकर बड़े चुटीले अंदाज़ में बोले ..हें भई..जानते हो .?.अपनी गली के लास्ट घर के पहले वाले घर में जो छोकरी नहीं थी ..मेने जान बुज कर कहा कौनसी ...?
वो बोले अरे आप नहीं जानते वो जींस पहने स्कूटी चलाती थी और लटर पटर करती रहती थी ..चश्मा लगाती थी और मुहँ पर पूरा कपड़ा ढंक के निकलती थी .. मेने कहा अच्छा..वो लड़की जो जब भी राह में मिलते प्रणाम करती थी ..वो ..?
अरे हाँ वो मुन्नी .. वही पर.. वो मुझे प्रणाम नहीं करती थी ....वो उसके घर के ऐन सामने वाले घर में रहने वाले मुन्ने के साथ भाग गई ...
उनका ड्रामा इस कदर का था मानों इनकी लड़की भाग गई हो .. मेने सोचा इनको प्रणाम नहीं करती थी क्या इसलिए कसर निकल रहे हैं ..
अब में पूर्वाग्रहों से ग्रसित इस सामाजिक व्यवस्था के बारे सोच रहा था की ..लोग लड़की के भागने को ही इश्यु क्यों बनाते है ..अरे भई मुन्ना भी तो भागा है ..उसके लिए इस प्रकार टिप्पणी कर क्यों नहीं कहा जा रहा है ..
मेने यही बात निन्दारत निंदक महाशय से कही ..वो बोले ..अरे भई लड़के का क्या है ...उसके क्या फर्क पड़ेगा ..जिंदगी तो लड़की की बर्बाद होगी ना ..
मेने सोचा ...हमेशा लड़की की जिंदगी खराब होगी ये रट्टा सबके सामने मार मार के ही उसकी बदनामी कर देते है ..फिर तो जिन्दगी बर्बाद होनी ही है .
मुन्ने के माँ बाप कह रहे थे ..अरे छोरी का क्या है ..उसके माँ बाप का तो शादी का खर्चा बचा ..जीवन तो हमारे मुन्ने का ख़राब हुआ हमारा हुआ हाय रे......!!!! बिरादरी में नाक कटवा दी.. कमाने लायक छोरा हाथ से निकल गया ..अरे ना जाने क्या जादू कर दिया उस छोकरी ने हमारे मुन्ने पर ..सत्यानाश जाए उसका ..और उसको पैदा करने वालों का ..
कुल मिला कर सारा दोष लड़की का ...लड़की सुंदर हो तो ये आरोप की उसने लड़के पर जादू कर दिया और भगा ले गई
गरीब हो तो ये आरोप की लड़की के माँ बाप का शादी का खर्चा बचा ..
प्रगतिशील हो तो ये आरोप की ..अरे भई कोई जात बिरादरी भी कोई चीज होती है या नहीं ..पता नहीं किस खानदान से हैं .
पुलिस में जाओ तो थानेदार बड़े चुटीले अंदाज़ में कहेगा ,,,,हैं भई किसी के साथ चक्कर होगा ..आपने टाइम से शादी क्यों नहीं करवा दी ..होती तो आज ये नौबत नहीं आती ..और पुलिस वाले ..हमदर्दी की बजाय अपना इस बारे में ज्ञान बांटने लग जाते है ...मेरी गारंटी है ..इनका पुराना चक्कर होगा ..
अरे में सब जानता हूँ ..आजकल की लड़कियों को ..और कुछ करे नहीं करे पर बॉयफ्रेंड पहली फुर्सत में बना लेती है ..शाम को झील किनारे चले जाओ ..पता लग जाएगा ..की शहर से कितनी लड़कियां भगने वाली है ..
मेने सोचा ,,अरे क्यों मुन्नी के पीछे पड़े हो ..क्यों उसे ही बदनाम करते हो ..मुन्नी बेचारी सदियों से बदनाम होती आ रही है इन सब मुन्नों के लिए ..मुन्ने के साथ भागने से मुन्नी को मिलता क्या है ..केवल जिल्लत, रुसवाई, बदनामी ..पर मुन्नी इसलिए बदनाम होती है क्योंकि वो अपने मुन्ने को दिल की गहराईयों से टूट कर बेइन्तहा चाहती है ..कोई मुन्नी की भावनाओं को कोई समझेगा ,,क्या ..?
Saturday, March 5, 2011
चापलूसी कैसे करें ..आदर्श चापलूस संहिता
चापलूसी का रिवाज हमारे देश में पुराने समय से ही चला आ रहा है .
और आज के इस गला काट प्रतिस्पर्धा के समय में आप अगर कहीं टिक सकते हैं तो वो दो तरीकों से
पहला ये की आप इतने लायक हो की आपके आला अधिकारीयों को यानि बोस को आपकी योग्यता के आगे सभी नालायक लगे .
दूसरा तरीका ये है की आप अपने वरिस्ट जनों की इतनी चापलूसी, चमचागिरी करें की वो इसका लोह...ा मान जाएँ और उनको ये लगने लग जाए की दफ्तर में काम नहीं होगा तो चलेगा पर चापलूसी नहीं हुई तो कम्पनी डूब जायेगी .. यानि सारा नफा नुकसान चापलूसी पर निर्भर हो जाएँ
आपको वफादारी और चापलूसी के वो झंडे गाड़ने होंगे की सभी चापलूस आपकी चापलूसी और वफादारी के आगे मुहँ छुपाते फिरे ..
और
इस बात की आपसे ट्यूशन करने पर मजबूर हो जाएँ..
मेने चापलूसी के बारे में एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग कहीं पढ़ा था जो ...हमारे वर्तमान में सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अपने वरिस्ट जनों की चापलूसी करने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत है ..
बात अंग्रेजी शासन काल की है जब ..मध्यप्रदेश के किसी जिले में कोई अंग्रेज जिला कलक्टर हुआ करते थे ..सभी कर्मचारी, अधिकारी उनकी जी भर के चापलूसी करके अपनी वफादारी साबित करने के भरपूर प्रयास करते रहते थे.
एक दिन उन्होंने एक थाली में कुछ वस्तुएं रख के उस थाली पर रुमाल ढँक दिया और सभी चापलूसों से पूछा की बताओ इस थाली में क्या है ..सभी चापलूस समवेत बोले ..हजूर इसमें गोल बैंगन हैं ..कलक्टर ने कहा बैंगन तो हैं पर गोल नहीं लम्बे वाले हैं . तो सब चापलूस बोले जी हाँ लम्बे वाले ही हैं ..अब कलक्टर को गुस्सा आया और बोला ..में जो कह रहा हूँ उसकी हाँ में हाँ क्यों मिला रहे हो अपनी भी तो राय दो ..इस पर सभी चापलूस बड़ी ही बेशर्मी से खिसिया कर बोले हजूर हम तो आपके पीछे हैं आप कहेंगे गोल हैं तो गोल ही होंगे और आप कहेंगे लम्बे हैं तो लम्बे ही होंगे ..इसे अंग्रेजी के सायीकोफेंसी कहते हैं ..
चापलूस तो आज के ज़माने की अधिसंख्य आबादी हो गई है ..किसी भी दफ्तर में चापलूसी करना आजकल शिस्टाचार और सदाचार की श्रेणी में आता है.. पर मुद्दे की बात तो ये की कौन सबसे बड़ा चापलूस और वफादार है ..इसको अपने बोस के आगे प्रमाणित करना सबसे अहम् कार्य है .. और आजकल रातदिन इसी की होड़ लगी रहती है ..
कोई अपने बोस के बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने आप को सबसे बड़ा चापलूस साबित करने का प्रयास करता है, तो कोई सब्जी तरकारी ला कर, तो कोई बोस के घर अपने गाँव से शुद्ध घी का डब्बा ला कर, तो कोई बिजली पानी के बिल जमा करवा के ..
में कभी कभी ये सोचता हूँ की अब किसी के माथे पर तो ये नहीं लिखा है की फलाना अपने बोस का सबसे लाडला वाफ्दर चापलूस है या ढिमका है..
और इसका समाधान ढूंढने के लिए में सोचता हूँ की अब ईश्वर को भी नहीं पता था की ग़ुलामी और शुद्रता के कलयुग में मापदंड ही बदल जायेंगे और मानव रूपी चापलूस प्राणी को अपनी चापलूसी और वफादारी को साबित करने के लिए कठिनाई आने लग जायेगी और इस कार्य में भी बनावटीपन और फर्जीवाडा होने की आशंका हो जायेगी ..क्योंकि बोस किसी के मन में क्या है ये तो नहीं जान सकते ..तो फिर असली चापलूस और वफादार कौन है है ये रहस्य आसानी से खुल नहीं पायेगा ..
मेरे मन में इसका समाधान सुझा वो ये था की अगर भगवान सबके पूंछ उगा दे तो इसका हल निकल आएगा ..भगवान नहीं भी उगा सके तो सभी चापलूस सर्जरी करवा कर पूंछ उगवा सकते हैं ..इससे फायदा ये होगा की सभी चापलूसों में पालतू कुत्तों के गुणधर्म विकसित हो जायेंगे.. दफ्तर में कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने और अच्छे कर्मयोगी चापलूसों का पता लगाने या उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी द्वारा पूंछ की सर्जरी के लिए मेडिकल एड भी दिए जाने का प्रावधान हो सकता है ..और पूंछ का घाव भरे तब तक के मेडिकल अवकाश की व्यवस्था भी ..इसके लिए अलग से हेड भी सृजित किया जा सकता है ..
सुबह दस बजे ज्योंही सभी बोस दफ्तर पहुंचेंगे सभी चापलूसों की पूंछे स्वत स्फूर्त यानि जिस प्रकार मालिक को देख कर कुत्ते की पूंछ स्वाभविक तौर पर हिलने लगती है उसी भाव से सभी चापलूसों की पूंछे भी हिलने लग जायेगी ..
इस स्वामिभक्त आचरण से सभी मालिक स्वत ही समझ जायेंगे की उनके समक्ष दूम हिलाने वाले चापलूस वास्तव में चापलूसी कर अपनी वफादारी का परिचय दे रहें हैं या नाटक कर रहें हैं ..
चापलूसी के इस अभिनव उपक्रम में जिसकी पूंछ सतत और तेजी से हिलती दुलती रहेगी वो उच्च स्तर का चापलूस प्रमाणित होगा..जिसे बोस दफ्तर के वार्षिक आयोजन पर अपने उल्लेखनीय कार्यों और नवाचार प्रयासों का उपयोग कर प्रगति कर दफ्तर को नवीनतम ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए पदोन्नत और सम्मानित कर सकेंगे..और जो सतत पूंछ हिलाने में असफल रहेंगे उनके बारे में ये मान लिया जाएगा की उनका आचरण दफ्तर के अनुशासन के विरुद्ध है इस कारण दफ्तर के कार्यों का नुकसान हुआ है अतः क्यों ना ऐसे कर्मियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए..
मुझे लगता है की इसके बाद सभी चापलूसों में इस बात की होड़ लग जायेगी की कौन कितनी देर तक अपनी पूंछ हिला कर बोस को अपनी चापलूसी और वफादारी का प्रमाण दे सकता है ..इस क्रम में कई चापलूस इस कार्य में इतने माहिर हो जायेंगे की उनको कई अन्य विभागों के बोस अपनी सरपरस्ती में लेने के लिए तेयार हो जायेंगे .
होगा ये की किसी कम्पनी के छोटे बोस के पास ज्यादा चापलूसी करने वाला चापलूस होगा तो बड़ा बोस अपने छोटे बोस से कहेगा ..यार शर्मा तेरा ये चापलूस तो बड़ी गज़ब की चापलूसी करता है यार ..अब देख ना में आधे घंटे से तेरे केबिन में बैठा हूँ ,,मेरे आते ही चाय नाश्ते का इंतजाम तो इसने किया ही पर इसने मेरे जूते उतार कर अपने रुमाल से चमकाए और तभी से लगातार अपनी पूंछ मेरे सामने हिला रहा है ..भई में तो इसकी चापलूसी का कायल हो गया ..में तेरे प्रमोशन का बंदोबस्त करवा देता हूँ तू मुझे तेरे इस चापलूस को मेरे यहाँ भेज दे ..अरे यार मेरे वाले को कोई तमीज़ ही नहीं है जब आता हु तो एक बार पूंछ हिला कर बेठ जाता है अरे भी कोई बात हुई ..पूंछ है किसलिए अरे भई अपने बोस को देख के हिलाने के लिए ही तो है..
कई चापलूस जो अपनी पत्नियों से थर्राते हैं उनकी तो डबल ड्यूटी हो जायेगी दफ्तर में बोस के आगे पूंछ हिलाओ तो घर जाते ही पत्नी के आगे ..
मुहल्ले की सभी पत्नियाँ जब कभी एक साथ बैठेंगी तो अपने अपने पतियों की पूंछ हिलाने की रफ्तार के बारे में चर्चा कर अभिभूत होंगी तो कोई अपने पति को कोसेगी की उसका पति बराबर पूंछ नहीं हिलाने के कारण टाइम से प्रमोशन नहीं पा सका ..
और आज के इस गला काट प्रतिस्पर्धा के समय में आप अगर कहीं टिक सकते हैं तो वो दो तरीकों से
पहला ये की आप इतने लायक हो की आपके आला अधिकारीयों को यानि बोस को आपकी योग्यता के आगे सभी नालायक लगे .
दूसरा तरीका ये है की आप अपने वरिस्ट जनों की इतनी चापलूसी, चमचागिरी करें की वो इसका लोह...ा मान जाएँ और उनको ये लगने लग जाए की दफ्तर में काम नहीं होगा तो चलेगा पर चापलूसी नहीं हुई तो कम्पनी डूब जायेगी .. यानि सारा नफा नुकसान चापलूसी पर निर्भर हो जाएँ
आपको वफादारी और चापलूसी के वो झंडे गाड़ने होंगे की सभी चापलूस आपकी चापलूसी और वफादारी के आगे मुहँ छुपाते फिरे ..
और
इस बात की आपसे ट्यूशन करने पर मजबूर हो जाएँ..
मेने चापलूसी के बारे में एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग कहीं पढ़ा था जो ...हमारे वर्तमान में सरकारी और गैर सरकारी विभागों में अपने वरिस्ट जनों की चापलूसी करने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत है ..
बात अंग्रेजी शासन काल की है जब ..मध्यप्रदेश के किसी जिले में कोई अंग्रेज जिला कलक्टर हुआ करते थे ..सभी कर्मचारी, अधिकारी उनकी जी भर के चापलूसी करके अपनी वफादारी साबित करने के भरपूर प्रयास करते रहते थे.
एक दिन उन्होंने एक थाली में कुछ वस्तुएं रख के उस थाली पर रुमाल ढँक दिया और सभी चापलूसों से पूछा की बताओ इस थाली में क्या है ..सभी चापलूस समवेत बोले ..हजूर इसमें गोल बैंगन हैं ..कलक्टर ने कहा बैंगन तो हैं पर गोल नहीं लम्बे वाले हैं . तो सब चापलूस बोले जी हाँ लम्बे वाले ही हैं ..अब कलक्टर को गुस्सा आया और बोला ..में जो कह रहा हूँ उसकी हाँ में हाँ क्यों मिला रहे हो अपनी भी तो राय दो ..इस पर सभी चापलूस बड़ी ही बेशर्मी से खिसिया कर बोले हजूर हम तो आपके पीछे हैं आप कहेंगे गोल हैं तो गोल ही होंगे और आप कहेंगे लम्बे हैं तो लम्बे ही होंगे ..इसे अंग्रेजी के सायीकोफेंसी कहते हैं ..
चापलूस तो आज के ज़माने की अधिसंख्य आबादी हो गई है ..किसी भी दफ्तर में चापलूसी करना आजकल शिस्टाचार और सदाचार की श्रेणी में आता है.. पर मुद्दे की बात तो ये की कौन सबसे बड़ा चापलूस और वफादार है ..इसको अपने बोस के आगे प्रमाणित करना सबसे अहम् कार्य है .. और आजकल रातदिन इसी की होड़ लगी रहती है ..
कोई अपने बोस के बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने आप को सबसे बड़ा चापलूस साबित करने का प्रयास करता है, तो कोई सब्जी तरकारी ला कर, तो कोई बोस के घर अपने गाँव से शुद्ध घी का डब्बा ला कर, तो कोई बिजली पानी के बिल जमा करवा के ..
में कभी कभी ये सोचता हूँ की अब किसी के माथे पर तो ये नहीं लिखा है की फलाना अपने बोस का सबसे लाडला वाफ्दर चापलूस है या ढिमका है..
और इसका समाधान ढूंढने के लिए में सोचता हूँ की अब ईश्वर को भी नहीं पता था की ग़ुलामी और शुद्रता के कलयुग में मापदंड ही बदल जायेंगे और मानव रूपी चापलूस प्राणी को अपनी चापलूसी और वफादारी को साबित करने के लिए कठिनाई आने लग जायेगी और इस कार्य में भी बनावटीपन और फर्जीवाडा होने की आशंका हो जायेगी ..क्योंकि बोस किसी के मन में क्या है ये तो नहीं जान सकते ..तो फिर असली चापलूस और वफादार कौन है है ये रहस्य आसानी से खुल नहीं पायेगा ..
मेरे मन में इसका समाधान सुझा वो ये था की अगर भगवान सबके पूंछ उगा दे तो इसका हल निकल आएगा ..भगवान नहीं भी उगा सके तो सभी चापलूस सर्जरी करवा कर पूंछ उगवा सकते हैं ..इससे फायदा ये होगा की सभी चापलूसों में पालतू कुत्तों के गुणधर्म विकसित हो जायेंगे.. दफ्तर में कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने और अच्छे कर्मयोगी चापलूसों का पता लगाने या उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी द्वारा पूंछ की सर्जरी के लिए मेडिकल एड भी दिए जाने का प्रावधान हो सकता है ..और पूंछ का घाव भरे तब तक के मेडिकल अवकाश की व्यवस्था भी ..इसके लिए अलग से हेड भी सृजित किया जा सकता है ..
सुबह दस बजे ज्योंही सभी बोस दफ्तर पहुंचेंगे सभी चापलूसों की पूंछे स्वत स्फूर्त यानि जिस प्रकार मालिक को देख कर कुत्ते की पूंछ स्वाभविक तौर पर हिलने लगती है उसी भाव से सभी चापलूसों की पूंछे भी हिलने लग जायेगी ..
इस स्वामिभक्त आचरण से सभी मालिक स्वत ही समझ जायेंगे की उनके समक्ष दूम हिलाने वाले चापलूस वास्तव में चापलूसी कर अपनी वफादारी का परिचय दे रहें हैं या नाटक कर रहें हैं ..
चापलूसी के इस अभिनव उपक्रम में जिसकी पूंछ सतत और तेजी से हिलती दुलती रहेगी वो उच्च स्तर का चापलूस प्रमाणित होगा..जिसे बोस दफ्तर के वार्षिक आयोजन पर अपने उल्लेखनीय कार्यों और नवाचार प्रयासों का उपयोग कर प्रगति कर दफ्तर को नवीनतम ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए पदोन्नत और सम्मानित कर सकेंगे..और जो सतत पूंछ हिलाने में असफल रहेंगे उनके बारे में ये मान लिया जाएगा की उनका आचरण दफ्तर के अनुशासन के विरुद्ध है इस कारण दफ्तर के कार्यों का नुकसान हुआ है अतः क्यों ना ऐसे कर्मियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए..
मुझे लगता है की इसके बाद सभी चापलूसों में इस बात की होड़ लग जायेगी की कौन कितनी देर तक अपनी पूंछ हिला कर बोस को अपनी चापलूसी और वफादारी का प्रमाण दे सकता है ..इस क्रम में कई चापलूस इस कार्य में इतने माहिर हो जायेंगे की उनको कई अन्य विभागों के बोस अपनी सरपरस्ती में लेने के लिए तेयार हो जायेंगे .
होगा ये की किसी कम्पनी के छोटे बोस के पास ज्यादा चापलूसी करने वाला चापलूस होगा तो बड़ा बोस अपने छोटे बोस से कहेगा ..यार शर्मा तेरा ये चापलूस तो बड़ी गज़ब की चापलूसी करता है यार ..अब देख ना में आधे घंटे से तेरे केबिन में बैठा हूँ ,,मेरे आते ही चाय नाश्ते का इंतजाम तो इसने किया ही पर इसने मेरे जूते उतार कर अपने रुमाल से चमकाए और तभी से लगातार अपनी पूंछ मेरे सामने हिला रहा है ..भई में तो इसकी चापलूसी का कायल हो गया ..में तेरे प्रमोशन का बंदोबस्त करवा देता हूँ तू मुझे तेरे इस चापलूस को मेरे यहाँ भेज दे ..अरे यार मेरे वाले को कोई तमीज़ ही नहीं है जब आता हु तो एक बार पूंछ हिला कर बेठ जाता है अरे भी कोई बात हुई ..पूंछ है किसलिए अरे भई अपने बोस को देख के हिलाने के लिए ही तो है..
कई चापलूस जो अपनी पत्नियों से थर्राते हैं उनकी तो डबल ड्यूटी हो जायेगी दफ्तर में बोस के आगे पूंछ हिलाओ तो घर जाते ही पत्नी के आगे ..
मुहल्ले की सभी पत्नियाँ जब कभी एक साथ बैठेंगी तो अपने अपने पतियों की पूंछ हिलाने की रफ्तार के बारे में चर्चा कर अभिभूत होंगी तो कोई अपने पति को कोसेगी की उसका पति बराबर पूंछ नहीं हिलाने के कारण टाइम से प्रमोशन नहीं पा सका ..
Wednesday, March 2, 2011
राजस्थान की जन कल्याणकारी सरकारी की नीति . 87 % माल को 1 % उड़ा रहे हैं ,,, 13 माल आ रहा है 99 % आमजनता के ..वाह रे सामाजिक न्याय
राजस्थान के कुल बजट का 87 % भाग राज्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन या अन्य सुविधाओं में ही खर्च हो जाता है. बचे हुए 13 % भाग से राज्य का विकास कैसे हो. सीधी गणित ये है की एक तरफ राज्य की कुल आबादी के केवल 1 % कर्मचारी, नेता राज्य के सालाना बजट की 87 % राशी डकार रहें है वहीँ 99 % आमजन के हिस्से में केवल 13 % राशी आ रही है..अब इस हालत में कैसे गरीबी बेरोजगारी दूर हो कैसे मजदुर किसान खुश रहे.
राज्य की आबादी लगभग 6 करोड़ है इनमें से कर्मचारियों की संख्या महज 6 लाख है.
ये जनता के साथ धोखा है, ये सरकारी लुट है, हमने जिन्हें राज्य के खजाने की जिम्मेदारी दी वे ही उसमे सेंध लगा रहें हैं .इनको शर्म ही नहीं आ रही है ..
साल के कुल 365 दिनों में से ये कर्मचारी 183 दिन की छुट्टी की मौज भी उड़ा रहे हैं ..दफ्तरों में अधिकांश कर्मचारी काम से जी चुराते हैं और रिश्वत खाते हैं वो और अलग से जनता पर सितम है ..
राज्य की आबादी लगभग 6 करोड़ है इनमें से कर्मचारियों की संख्या महज 6 लाख है.
ये जनता के साथ धोखा है, ये सरकारी लुट है, हमने जिन्हें राज्य के खजाने की जिम्मेदारी दी वे ही उसमे सेंध लगा रहें हैं .इनको शर्म ही नहीं आ रही है ..
साल के कुल 365 दिनों में से ये कर्मचारी 183 दिन की छुट्टी की मौज भी उड़ा रहे हैं ..दफ्तरों में अधिकांश कर्मचारी काम से जी चुराते हैं और रिश्वत खाते हैं वो और अलग से जनता पर सितम है ..
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