राजस्थान में वन, पर्यावरण और जैव विविधता के अस्तित्व पर वन विभाग और तस्करों की कुल्हाड़ी
राजस्थान के उदयपुर जिले की आदिवासी बाहुल्य कोटडा और झाडोल तहसीलों के जंगलों में वन विभाग की मिलीभगत से इस इलाके में विनाश की कगार पर पहुँच चुके सालर नाम की प्रजाति के पेड़ अब केवल 5 प्रतिशत ही बचे हैं, कभी इन जंगलों की सुन्दरता बढ़ाने वाला ये पेड़ संकट में पड़ गया हैं क्योंकि इस पेड़ के तने से निकलने वाले ओषधिय गुणों वाले गोंद पर इसका गैरकानूनी व्यापर करने वाले व्यापारियों की कुदृष्टि पड़ गई है.और वे वन विभाग की मिली भगत से इसका गोंद निकाल कर गुजरात के बाज़ार में बेच रहे हैं, इस पेड़ से गोंद निकालने का तरीका बड़ा ही विचित्र और निर्मम है, गोंद निकालने के लिए इसके तने में गहरे गहरे चीरे लगाये जाते हैं कुछ दिन बाद उन चिरों से गोंद निकलना शुरू हो जाता है पर पेड़ सुख जाता है क्योंकि इस पेड़ की जान इसके गोंद में ही होती है, और इसी कारण इस पेड़ का इस प्रकार के उपयोग पर सरकारी प्रतिबन्ध लगा दिया था, पर गैरकानूनी तरीके से चलने वाले इस व्यापर के कारण अब इस पेड़ की प्रजाति खतरे में पड़ गई है,
इस तहसील के तिलारनी, क्यारी, मेरपुर, मांडवा, कुकावास आदि गांवों के ग्रामीणों ने वन विभाग को इसकी सुचना भी दी पर या तो वन विभाग ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया या फिर वो भी इस गैर क़ानूनी काम में हिस्सेदार था, आख़िरकार लोग क्यारी पंचायत के सरपंच लाडूराम परिहार के पास गए (लाडूराम परिहार जंगल जमीन जन आन्दोलन और इज्जत से जीने के अधिकार अभियान(C S D ) से जुड़े हुए हैं) लाडूराम ने वन संरक्षक उदयपुर को दिनाक 8 अप्रैल को फ़ोन पर इसकी जानकारी दी तब उस समय वन संरक्षक महोदय किसी मीटिंग में व्यस्त थे और उनके निजी सचिव ने लाडूराम को बाद में बात करने को कहा पर देर रात तक भी फोन पर बात करने का प्रयास करने पर भी जेव विविधता और पर्यावरण का रोना रोने वाले तथा जंगल बर्बाद करने का ठीकरा आदिवासियों पर फोड़ने वाले विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी ने आदिवासियों की इस बात पर कार्यवाही करना उचित नहीं माना और इन वन संरक्षक महोदय ने इस मसले पर से पल्ला झाड़ने की कोशिस की, बाद में मिडिया में इस बात की खबर आने पर सुना है की पूरा विभागीय अमला मुह अँधेरे ही उदयपुर से 125 किलोमीटर दूर इन जंगलों में अपनी कारगुजारी छिपाने के लिए पहुँच चूका था,
इस इलाके के लोंगो ने वन अधिकार मान्यता कानून के तहत सामुदायिक वन अधिकार के दावे भी पेश कर रखे है पर वन विभाग उनको रोकने में लगा हुआ है लोंगो का कहना है की वन विभाग के कर्मचारी अगर ईमानदारी से काम करे तो भी जंगल नहीं बचा सकते क्योंकि मीलों में फैले हुए जंगल को तो वहां रहने वाले लोग ही बचा सकते हैं, पर वन विभाग लोंगो की इस बात से न तो इतफाक रखता है और न ही उनको वन बचाने में उनसे सहायता लेने में, हाँ वन विभाग यदा कदा लोंगो को अतिक्रमी बता कर बेदखल करने से नहीं चुकता है, तथा उनकी वन उपज को अवैध बता कर उन पर मुकदमा दर्ज करने से बाज़ नहीं आता, इस प्रकार के कई मामले सामे आ चुके है,
उल्लेखनीय है की दक्षिणी राजस्थान के जंगलों में कई प्रजातियों के पेड़ों का अस्तित्व खतरे में है, जिसमे सेमल नाम का पेड़ है इसके तने की होली बना कर जलाई जाती है इस कारण होली के अवसर पर इस पेड़ की भारी मात्रा में कटाई की जाती है इस कारण ये प्रजाति धार्मिक अन्धविश्वास और कर्मकांड की भेंट चढ़ रही है,
में कुछ पेड़ों और झाड़ियों के नाम उल्लेखित कर रहा हूँ जो इस प्रकार के गैरकानूनी व्यापर की भेंट चढ़ रही है जिस कारण राजस्थान के वनों से कुछ समय बाद इनको हम ढूढ़ते रह जायेंगे,
- पलाश (खाखरा ) इस पेड़ के तने में भी गोंद निकालने के लिए चीरा लगाया जाता है.तथा इसकी जड़ें पुताई करने के काम आती है साथ ही अन्य ओषधिय गुण भी होते है,
- धावडा इस पेड़ के तने में भी गोंद निकालने के लिए चीरा लगाया जाता है, दक्षिणी राजस्थान के जंगलों में कभी बहुताय में पाया जाने वाला पेड़ अब लगभग ख़तम होने के कगार पर है.
- कराया इस पेड़ का ताना फल सब कुछ काम आता है,
- गेंग्ची ये एक झाड़ी होती है जिसकी जड़ें जोड़ों के दर्द के लिए रामबाण दावा का काम करती है इसलिए इसे भी ढूंढ़ ढूंढ़ ख़त्म किया जा रहा है,
- धावडा इस इस पेड़ के तने में भी गोंद निकालने के लिए चीरा लगाया जाता है, दक्षिणी राजस्थान के जंगलों में पहाड़ों की सुन्दरता बढ़ाने वाला बहू उपयोगी तथा कभी बहुताय में पाया जाने वाला ये पेड़ अब लगभग ख़तम होने के कगार पर है. इसके गोंद का उपयोग महिलाओं को प्रसव के बाद आई कमजोरी को दूर करने के लिए किया जाता है,
- गोदल इस पेड़ के तने में भी गोंद निकालने के लिए चीरा लगाया जाता है, दक्षिणी राजस्थान के जंगलों में पहाड़ों की सुन्दरता बढ़ाने वाला बहू उपयोगी तथा कभी बहुताय में पाया जाने वाला ये पेड़ अब लगभग ख़तम होने के कगार पर है.
- कुर्वा इसकी जड़ें और छाल काम में आती है.
- सियां ये नदियों और नालों के किनारे पाई जाने वाली झाडी है इसकी जड़ें काम में आती है,
- सतावरी ये काफी जानी मानी झाड़ी है इसकी जड़ें आधा सर दुखने पर काम में ली जाती है इसके और भी कई गुण हैं,
- चन बैर इससे हम सभी परिचित होंगे इसके छोटे लाल बैर खाने के काम आते हैं पर इसकी जड़ों का गुण इस झाडी को भी ख़तम किये दे रहा है क्योंकि इसकी जड़ें दांतों के दर्द की दवा के रूप में काम आती है.
इन सभी पेड़ों के इस प्रकार के उपयोग पर क़ानूनी रोक है खास कर व्यापारिक रूप से किये जाने वाले उपयोग पर.
ये जानकारी लाडूराम ने अपने पारंपरिक ज्ञान के आधार पर दी जिसे में यहाँ लिख रहा हूँ.
ये पेड़ और झाड़ियाँ कभी इन जंगलों की शान हुआ करते थे तथा राजस्थान की जलवायु के अनुसार ये प्राकतिक रूप से जंगलों में मिल जाते थे तथा गर्मी के दिनों में ये मई महीने के बाद नए पत्ते आने पर मवेशियों के लिए खुराक राहगीरों और ग्रामीणों के लिए छाया का काम और शहरों में रहने वालों को ताज़ा हवा पहुचाने का काम करते थे, साथ ही जेव विविधता को बनाये रखते थे,
इन पेड़ों का ओषधिय उपयोग करना बुरा नहीं है पर वन विभाग ये बताये की इसका गैरकानूनी व्यापार करना और इतने बड़े पैमाने पर करना की इनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाये, तथा लापरवाही की हद ये की इनके नए पोधरोपन ही नहीं करना, सही बात तो ये है की बड़े बड़े आई , एफ , एस अफ़सर केवल गार्डन में विदेशी पोधे और मोनोकल्चर करना जानते हैं और स्थानीय लोंगो को मुर्ख समझते हैं, परिणाम ये हो रहा है की जंगलों में रहने वाले लोग जंगलों से दूर हो रहे हैं और जंगलों में अफसरों और तस्करों के डेरे जम गए हैं,
राजस्थान सरकार ने पिछले बरसात के मोसम हरित राजस्थान अभियान के तहत में डूंगरपुर जिले में एक ही दिन में लगभग 7 लाख पोधे लगा कर गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम लिखवा दिया, इससे पहले ये रिकॉर्ड पाकिस्तान के नाम था, पर कुछ ही दिनों के बाद समाचार पत्रों में छपा की पोधे सूखने का भी वर्ल्ड रिकॉर्ड हमारे ही नाम हुआ.
कुछ महीने पहले जापान से एक प्रतिनिधि मंडल उदयपुर तीन दिवसीय पर्यावरण विषय पर आयोजित कार्यशाला में भाग लेने के लिए आया (जापान हमे पेड़ लगाने के लिए अरावली परियोजना के तहत पैसा देता है और सुना है की भारत के जंगलों से ताज़ी हवाएं प्रशांत महासागर के रास्ते जापान जाती है जिससे वे लोग सेहतमंद रहते हैं) इस प्रतिनिधि मंडल को उदयपुर की एक पांच सितारा होटल में न केवल रुकवाया गया और कार्यशाला भी वहीँ की बल्कि राज्य से आये अन्य अफसरों ने भी इसका लाभ उठाया, इस फिजूलखर्ची की खुद मुख्यमंत्री ने उस कार्यशाला में ही आलोचना की थी.
कुल मिला कर वन विभाग के इस जंगल राज़ में जंगल को ही नुक्सान हो रहा है.
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